मुस्लिम उम्मीदवारों की कसक, मतदाता झामुमो-कांग्रेस से उम्मीद लगाए बैठा
मुस्लिम मतदाताओं को मुस्लिम उम्मीदवारी की कसक है. अभी तक किसी भी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में मुस्लिम नेता को टिकट नहीं दिया है.
जमशेदपुर : मुस्लिम मतदाताओं को मुस्लिम उम्मीदवारी की कसक है. अभी तक किसी भी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में मुस्लिम नेता को टिकट नहीं दिया है. यही नहीं, कोई भी मुस्लिम नेता उम्मीदवारी की कतार में नहीं है. इससे मुसलमानों में सियासी हालात के प्रति नाराजगी फैल रही है. लोगों को लग रहा है कि वह सिर्फ वोट देने वाले मतदाता तक ही सीमित रह जाएंगे. लोकसभा में झारखंड से उनका कोई प्रतिनिधित्व नहीं रहेगा. जमशेदपुर संसदीय क्षेत्र पर भी मुसलमानों की खासी आबादी है. जमशेदपुर के मानगो, जुगसलाई समेत ग्रामीण इलाकों में भी मुस्लिम मतदाता अच्छी खासी तादाद में हैं. इसके बावजूद, उम्मीदवारी को लेकर मुस्लिम नेताओं की चर्चा तक नहीं होने से मुसलमान खुद को राजनीतिक तौर से कमजोर समझने लगे है. अधिकतर मुसलमान झामुमो को वोट देते आए है.
इसलिए झामुमो से उम्मीद लगाना वाजिब भी है. झामुमो में बाबर खान, शेख बदरुद्दीन समेत कई वरिष्ठ मुस्लिम नेता मौजूद है, जिनको पार्टी टिकट दे सकती है. झामुमो का अपना वोट बैंक और मुस्लिम मतदाता मिलकर लड़ाई को रोचक बना सकते हैं. लेकिन, पार्टी में ऐसी कोई सुगबुगाहट नहीं होने से मुस्लिम मतदाताओं के दिल टूट रहे हैं. लोगों का कहना है कि क्या राजनीतिक दलों को सिर्फ मुस्लिम मत चाहिए और मुसलमानों को लोकसभा में प्रतिनिधित्व देना किसी को गवारा नहीं है.
जमशेदपुर सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की प्रभावी संख्या
लोगों की निगाह जमशेदपुर संसदीय सीट समेत कई लोकसभा सीट पर है. जमशेदपुर संसदीय सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 2 लाख से ऊपर है. गोड्डा सीट से मुस्लिम उम्मीदवार जीते रहे हैं. यहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 4 लाख के आसपास है. कभी यहां से फुरकान अंसारी ने जीत दर्ज की थी। लेकिन वह साल 2004 के बाद हुए कई चुनाव में लगातार हारते रहे हैं. कहा जा रहा है कि लोकसभा की 14 सीटों में से कहीं से तो मुस्लिम उम्मीदवार होना चाहिए.
गोड्डा से हुए हैं दो मुस्लिम सांसद
अब तक गोड्डा से दो मुस्लिम सांसद हुए हैं. इस लोकसभा सीट से सबसे पहले मौलाना समीनउद्दीन साल 1980 के लोकसभा चुनाव में जीते थे. साल 1984 के चुनाव में भी मौलाना समीनउद्दीन ने ही दूसरी बार जीत दर्ज की थी. साल 2004 के चुनाव में फुरकान अंसारी को जीत मिली थी.
डमी उम्मीदवार करते हैं कबाड़ा
गोड्डा संसदीय सीट से लगातार भाजपा के निशिकांत दुबे जीत दर्ज करते आ रहे हैं. मुसलमानों को आत्म मंथन करना होगा कि गोड्डा की सीट पर उन्हें बराबर क्यों हार मिल रही है. साल 2009 के चुनाव में फुरकान अंसारी 6407 मतों से हारे थे. लेकिन इस चुनाव में तीन ऐसे मुस्लिम उम्मीदवार थे जिन्होंने 23 हजार 4 00 मत प्राप्त किए थे. राजनीतिक दलों की यह रणनीति होती है कि ऐसी सीटों पर जहां मुस्लिम मतदाताओं की खासी तादाद है वहां कई मुस्लिम उम्मीदवार खड़े कर दिए जाते है. ताकि वोट बंट जाएं और तगड़े मुस्लिम उम्मीदवार को हराया जा सके. ऐसे में मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका काफी अहम हो जाती है. लेकिन, चुनाव आने पर मुस्लिम उम्मीदवारी का राग अलापने वाले नेता ऐसे नाजुक मौके पर रहस्यमय चुप्पी साध जाते है.
मतदान प्रतिशत गिरने से भी नुकसान
लोकसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं का मतदान प्रतिशत भी गिरा है. मुस्लिम मतदाता अक्सर वोटिंग के प्रति उदासीन रहते है. उनकी सोच है कि उनके एक वोट से क्या फर्क पड़ता है. हालांकि, जिला प्रशासन लगातार मतदाता जागरूकता अभियान चलाता है. इस तरह की उदासीनता भी मुस्लिम नेतृत्व को राजनीति में कमजोर बना रही है.
मुसलमानों में प्रभावी नेतृत्व का अभाव
मुसलमानों में प्रभावी नेतृत्व का अभाव है. अक्सर देखा जाता है कि मुस्लिम उम्मीदवार जीतने के बाद आम अवाम से दूर हो जाते है. नाजुक मौके पर पार्टी के दबाव के चलते आम जनता के हमदर्द नहीं बन पाते हैं. इन सब से भी मुस्लिम मतदाताओं का रुझान काम हो रहा है. इसलिए मुस्लिम नेतृत्व को आत्म मंथन कर कमी को दूर करना होगा.