झारखंड विधानसभा में जल्द लागू होगा मॉब लिंचिंग विधेयक, आजीवन कारावास के साथ 25 लाख तक के आर्थिक दंड का प्रवाधान
झारखंड में मॉब लिंचिंग और भीड़ हिंसा रोकने के लिए कानून का प्रारूप तैयार है। झारखंड सरकार जल्द ही इस विधेयक के प्रारूप को कानून का रूप देगी।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। झारखंड में मॉब लिंचिंग और भीड़ हिंसा रोकने के लिए कानून का प्रारूप तैयार है। झारखंड सरकार जल्द ही इस विधेयक के प्रारूप को कानून का रूप देगी। इसकी तैयारी चल रही है। इस प्रस्तावित विधेयक का नाम द झारखंड (प्रीवेंशन ऑफ मॉब वायलेंस एंड मॉब लिंचिंग) बिल 2021 है। कैबिनेट से इसकी मंजूरी मिलते ही इसे विधानसभा में पेश किया जाएगा।
झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार पर अपनी पार्टी के साथ-साथ साझेदार दलों का भी दबाव है कि इस विधेयक को वर्तमान शीत सत्र में ही लाया जाए। झामुमो ने चुनाव के दौरान यह वादा भी किया था कि उनकी सरकार बनेगी तो मॉब लिंचिंग रोकने के लिए कानून बनाया जाएगा। सरकार ने इस कानून का ड्राफ्ट तैयार करवा लिया है। देश के अंदर झारखंड पहला राज्य होगा, जहां यह कानून बनेगा। इसके पहले पश्चिम बंगाल, असम और अरुणाचल प्रदेश में इस तरह के कानून लाने की तैयारी चल रही है।
कानून की जरूरत क्यों
झारखंड में पिछले कई सालों के दौरान मॉब लिंचिंग की कई घटनाएं हुई हैं, जो देश भर में चर्चित रहीं। इसलिए समाज के कमजोर तबके के लोगों के संवैधानिक अधिकार की रक्षा करने, भीड़ हिंसा (मॉब वायलेंस) और भीड़ हत्या (मॉब लिंचिंग) को रोकने तथा इस कार्रवाई के लिए दोषियों को दंडित करने में कानून में प्रावधान होगा।
नोडल ऑफिसर करेंगे लिंचिंग रोकने की मॉनिटरिंग
झारखंड सरकार ने राज्य में मॉब लिंचिंग रोकने के लिए विधेयक तैयार किया है उसके प्रारूप के अनुसार राज्य के अंदर लिंचिग रोकने की दिशा में मॉनिटरिंग और समन्वय के लिए आईजी स्तर के एक अधिकारी को नियुक्त किया जाएगा। इन्हें नोडल अफसर कहा जाएगा। इतना ही नहीं प्रारूप में मॉब लिंचिंग को परिभाषित किया गया है।
किसी ऐसी भीड़ द्वारा धार्मिक, रंगभेद, जाति, लिंग, जन्मस्थान, भाषा सहित कई ऐसे ही आधार पर हिंसा या हिंसक घटनाओं के कारण किसी की हत्या का कारण बन जाए, इस तरह की घटनाओं को मॉब लिंचिंग कहा जाएगा। दो या दो से ज्यादा लोगों के समूह को मॉब कहा जाएगा।
नोडल ऑफिसर स्थानीय खुफिया तंत्रों के साथ नियमित बैठक करेंगे। कम से कम महीने में एक बार होनेवाली बैठक में ऐसी सभी आशंकाओं, संभावनाओं प्रवृतियों को रोकने के लिए चिन्हित करेंगे। हरेक जिला में एसपी या एसएसपी अपने जिले में मॉब वायलेंस तथा मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं को रोकने की दिशा में कोऑर्डिनेट करेंगे, जिनकी सहायता के लिए डीएसपी स्तर के अधिकारी होंगे।
जिला के मजिस्ट्रेट अपने अधिकार क्षेत्र में ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होने की किसी भी आशंका पर उसे रोकने के लिए त्वरित कार्रवाई करेंगे। थानों के पुलिस अधिकारियों की इसे रोकने की बड़ी जिम्मेवारी दी गई है। थाना के प्रभारी अपने अधिकार क्षेत्र में ऐसी किसी भीड़ हिंसा या भीड़ हत्या की किसी भी आशंका, परिस्थितियों पर काबू पाने के लिए कानूनी अधिकार का उपयोग करते हुए त्वरित कार्रवाई करेंगे।
दंड का प्रावधान, गैर जमानतीय अपराध
मॉब लिंचिग और मॉब वायलेंस जैसे जघन्य अपराध के लिए कानून में कड़े दंड का प्रावधान है। यह गैरजमानतीय अपराध की श्रेणी में आएगा। अपराध के अनुसार ही दंड का प्रावधान किया गया है। इसमें आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान होगा। सामान्य हिंसा तथा पीड़ित के घायल होने की अवस्था में तीन साल की सजा के साथ एक लाख का आर्थिक दंड होगा, जिसे बढ़ाकर तीन लाख किया जा सकता है।
पीड़ित यदि गंभीर रूप से घायल या मरन्नासन होगा तो आजीवन कारावास, या दस साल की सजा तथा तीन से पांच लाख रुपए का आर्थिक दंड का प्रावधान होगा। पीड़ित की मॉब लिंचिंग या हिंसा में मौत हो जाती है तो इसके लिए जिंम्मेदार को आजीवन कारावास की सजा के साथ 25 लाख रुपए तक के आर्थिक दंड का प्रावधान होगा। दोषी की चल-अचल संपत्ति जब्त भी की जा सकती है।
क्या कहते हैं विधि विशेषज्ञ
झारखंड के प्रस्तावित इस विधेयक के बारे में विधि विशेषज्ञ तथा झारखंड उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता मोहम्मद शादाब का कहना है कि अभी भी इस प्रारूप में कई कमियां हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। उन्हें शामिल किया जाना चाहिए। विधि विशेषज्ञ कहते हैं, इस विधेयक के प्रारूप को तैयार करने जन साधारण से कोई मशवरा नहीं किया गया है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का पालन आवश्यक है।
क्या कहते हैं झामुमो महासचिव
झामुमो के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य का कहना है कि सरकार का यह वायदा है कि मॉब लिंचिंग रोकने के लिए कानून लाएगी। इसके विधेयक का ड्राफ्ट बनकर तैयार है। सबकी इच्छा है कि वर्तमान शीत सत्र में ही इसे लाया जाए। लेकिन अभी इसे कैबिनेट से पारित होना बाकी है। ऐसे कानून बार-बार नहीं बनते हैं। समय कम है और हड़ब़ड़ी में कोई काम सरकार नहीं करना चाहेगी।