दवाओं व रेडिएशन के साइड इफेक्ट का खतरा समाप्त
विशेषज्ञों ने यह बात दावे के साथ कही कि कैंसर की जांच से लेकर इसके इलाज और इलाज के कारण होने वाले साइड इफेक्ट का पूर्ण समाधान आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के उपयोग से संभव है. इलाज, सर्जरी व रेडियोथेरेपी में एआई के उपयोग से ह्यूमन एरर पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा. यह एआई के इस्तेमाल का ही नतीजा है कि भारतीय चिकित्सक पहले जहां कैंसर की जांच तक ही पहुंच पाए थे, अब कैंसर क्यों है, वहां तक पहुंच चुके हैं. कैंसर के आनुवांषिक कारणों को भी ढूंढा जा चुका है. यदि एक व्यक्ति को एक तरह का कैंसर है तो उसको दूसरे तरह का कैंसर हो सकता है कि नहीं, इसका पता लगाने में भी हम सक्षम हो चुके हैं. कैंसरे रोगी अपने परिवार के किसी दूसरे व्यक्ति को भी यह रोग दे सकता है कि नहीं, इसका भी साफ-साफ पता किया जा सकता है. इस आधार पर कैंसर होने के पहले ही इलाज किया जा सकता है. इसका उदाहरण है कि हॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री एंजेलिना जॉली की मां को स्तन कैंसर था. ब्रका जीन की जांच के जरिए यह पता लगा लिया गया कि एंजेलिना को भी यह रोग होने की प्रबल आशंका है. एंजेलिना ने कैंसर होने के पहले ही अपना इलाज करा लिया. विशेषज्ञों ने इसी को प्रिवेंटिव ऑन्कोलॉजी बताया.
तैयार हो चुकी है दो तरह की खास दवाएं
कैंसर के इलाज के बारे में विशेषज्ञों ने बताया कि यह एआई के इस्तेमाल का ही नतीजा है कि जांच में जो जेनेटिक म्यूटेशन मिला, उसके लिए दो तरह की सटीक दवा मोनोक्लोनल एंटीबॉडी व इम्यूनोथेरेपी बन गई. रोगी दवा से ही ठीक होने लगे हैं. इन दवाओं का असर जबर्दस्त है और साइड इफेक्ट न के बराबर. पहले ऐसा होता था कि ब्रेन में कोई ट्यूमर हो गया या कहीं से कैंसर की बीमारी ब्रेन में चली गई तो रेडिएशन के बाद रोगी की सोचने-समझने की क्षमता कम हो जाती थी. इसको कॉग्नेटिव डिसआर्डर कहा जाता था. ऐसा ब्रेन के हिप्पोकैंपस क्षेत्र में किरणें ज्यादा चली जाने के कारण होता था. अब एआई के इस्तेमाल से ब्रेन के उस हिस्से को बंद करके रेडिएशन दिया जाने लगा है, तो रोगी की सोचने समझने की क्षमता कम होने की आशंका समाप्त हो गई. इसी तरह ब्रेस्ट कैंसर में पहले माइक्रोस्कोप से जो दिखता था उसके हिसाब से क्लासिफिकेशन होता था. अब एआई के इस्तेमाल के जरिए जीन के हिसाब से रोगियों का वर्गीकरण किया जाने लगा और रोगियों को अलग-अलग दवा दी जा रही है. क्योंकि ब्रेस्ट कैंसर एक तरह का ही नहीं होता.
नये-नये शोध के लिए तैयार हुई 25 लोगों की टीम
भारत सरकार की पहल पर कैंसर के इलाज के क्षेत्र में नये-नये शोध के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों के 25 लोगों की टीम तैयार हो चुकी है. इसमें एम्स रायपुर, देवी अहिल्या बाई विश्वविद्यालय इंदौर, एनआईटी वारंगल, आईआईटी पटना, बीआईटी सिंदरी, विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग व सिक्किम मनीपाल के छात्र, शोधार्थी व प्रोफेशनल्स शामिल हैं. इस टीम के समन्वयक की जिम्मेदारी एनआईटी जमशेदपुर कंप्यूटर साइंस विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कौशलेन्द्र कुमार सिंह को मिली है. कौशलेंद्र ने बताया कि टीम की पहली कार्यशाला एनआईटी जमशेदपुर में हुई. आगे भी निरंतर कार्यशाला व व्याख्यानों का आयोजन होता रहेगा. इसमें नये-नये शोध पत्र प्रस्तुत किए जाएंगे तथा कैंसर की जांच व इलाज को एकदम आसान बनाने तक यह क्रम चलता रहेगा. पहली कार्यशाला को प्रसिद्ध कैंसर सर्जन डॉ. शुभ्रांत कांति कुंडू, भारतीय प्राद्यौगिकी संस्थान, पटना के डॉ. राजीव कुमार झा, डॉ. जार्ज जिकाश, मनैहाटन कॉलेज, अमेरिका, देश के प्रसिद्ध कैंसर विशेषज्ञ डॉ. गीता कदयाप्रात, मैक्स अस्पताल दिल्ली, डॉ. मरिओस अन्टोनाककिस टेक्निकल यूनिवर्सिटी ग्रीस, डॉ. राजेश कुमार पांडये, आईआईटी बीएचयू वाराणसी ने संबोधित किया. आगे भी इसी तरह से देश व विदेश के विशेषज्ञ टीम का मार्गदर्शन करते रहेंगे.
कैंसर के इलाज में एआई का प्रयोग बहुत ही चमत्कारिक है. उदाहरण रेडिएशन के दौरान रोगी का शरीर एक-दो सेंटीमीटर भी हिल जाने से किरणें लक्षित स्थान के इधर-उधर पड़ जाती हैं और रोगी को खासा नुकसान होता है. एआई के इस्तेमाल से यह आशंका समाप्त हो जाती है. शोध के लिए बनी 25 लोगों की टीम कैंसर के इलाज की तीनों विधाओं दवा, रेडिएशन व सर्जरी के बीच समन्वय बनाकर बहुत सुखद परिणाम देगी. एनआईटी में हुई कार्यशाला में यह स्पष्ट हो गया कि भारत कैंसर के इलाज के क्षेत्र में अमेरिका व यूरोप के समकक्ष खड़ा होन की ओर अग्रसर है.