राज्य की भौगोलिक बनावट भूगर्भीय जल संकट का मौलिक कारण

Update: 2023-06-20 13:00 GMT

धनबाद न्यूज़: झारखंड गंभीर जल संकट के दौर से गुजर रहा है. भूगर्भ का हाल बहुत बुरा है. राजधानी रांची समेत राज्य के कई शहरों में भूगर्भ जल लगातार नीचे जा रहा है. रांची के कई मुहल्लों में जलस्तर 500 से 600 फीट नीचे जा चुका है. शहर के आधा दर्जन से ज्यादा इलाके ड्राई जोन बन चके हैं. इसी तरह राज्य के कई जिले ड्राई जोन के तहत आते हैं.

जमशेदपुर, हजारीबाग, धनबाद, सिमडेगा, खूंटी ड्राई जोन इलाके में आते हैं. पर्यावरण के जानकार और भूगर्भ विशेषज्ञ डॉ नीतिश प्रियदर्शी का कहना है कि झारखंड की भूगर्भीय संरचना ज्यादातर कायांतरित चट्टानों से निर्मित हैं, जो वस्तुत अपारगम्य है व इसमें पानी को रोककर रखने की क्षमता बहुत कम होती है. इनमें भंडारित जल, जो इन चट्टानों के अपर्दित हुए ऊपरी चट्टानों में जमा है, इनकी गहराई ऊपरी सतह से बमुश्किल 10 मीटर है.

ऊपर से अंधाधुंध बड़ी-बड़ी इमारतों के बनने से भूमिगत जलस्रोतों पर दोहरी मार पड़ी है. दो बोरिंग के बीच की दूरी कम-से-कम एक किलोमीटर होनी चाहिए, लेकिन झारखंड में यह घटकर पांच मीटर तक सिमट गयी है. इसके चलते भी भूमिगत जल का स्तर खतरनाक स्थिति से भी अधिक गिर रहा है.

भू वैज्ञानिक के अनुसार, आजकल रूफ टॉप वाटर हार्वेस्टिंग या ग्राउंड वाटर रीचार्जिंग की बात की जा रही हैं.

कुछ हद तक तो यह काम कर सकता है, लेकिन झारखंड की चट्टानों की संरचना को देखते हुए हम इस पर निर्भर नहीं रह सकते, क्योंकि झारखंड की चट्टानों में पानी सोखने की क्षमता ज्यादा नहीं है. यह केवल उन्हीं स्थानों पर सफल हो सकता है, जहां की चट्टानों में लंबी दरार या फॉल्ट मौजूद हो.

77 साल पहले ब्रिटिश भू वैज्ञानिक का सर्वेक्षण आज भी प्रासंगिक डॉ प्रियदर्शी बताते हैं, यह जानकर आश्चर्य होगा कि रांची के भूमिगत जल का सर्वे आजादी के पहले ही हो चुका था. यह वर्ष 1946 की बात है, जब ब्रिटिश भूवैज्ञानिक जेबी ऑडेन ब्रिटिश सेना के हेडक्वार्टर की स्थापना के लिये स्थान का चयन कर रहे थे. तब उन्होंने कहा था कि रांची की कायान्तरित चट्टानें सालों भर भूमिगत जल देने में सक्षम नहीं हैं. गर्मी शुरू होते ही भूमिगत जल सूख जाएगा. भूमिगत जल वास्तव में वर्षाजल ही है, जो गुरुत्वाकर्षण के कारण भूमि में समा जाता है. इधर, हाल के वर्षों में झारखंड में वन कटाई तथा बदलती जलवायु के चलते वर्षा अनियमित हो गई है, जिसका असर भूमिगत जल पर पड़ने लगा है. यही नहीं पर्याप्त वर्षा होने के बावजूद 40 फीसदी वर्षा जल ऊपर से बहकर निकल जाता है. देर अब भी नहीं हुई है.

रांची के कई इलाके हो चुके हैं ड्राई जोन

रांची का मोरहाबादी, लालपुर, कांके रोड, रातू रोड, पिस्का मोड़, हरमू, एचईसी का इलाका ड्राई जोन हो चुका है. 500-600 फीट से नीचे चला गया है. जमशेदपुर, हजारीबाग, धनबाद, सिमडेगा, खूंटी का इलाका ड्राई जोन में आता है. पाकुड़, गोड्डा, सहित अन्य इलाके हल्के ड्राई जोन में आते हैं. राजधानी के तीन डैमों की सफाई बरसों से नहीं हो पायी है. गाद नहीं हटाए जाने से पानी न तो शुद्ध मिल पा रहा है और न ही प्राकृतिक जल अवशोषित कर पा रहा है. राजधानी के डैमों की सफाई नहीं हो रही है.

1000

1946

में ब्रिटिश भूवैज्ञानिक के शोध में पता चला था कि रांची का क्षेत्र भूमिगत जल देने में अक्षम है

मीटर होनी चाहिए दो बोरिंग के बीच दूरी, पर यह घटकर पांच मीटर तक सिमट गयी है

खंडित चट्टान

जमीनी सतह

ऊपरी तह का पानी

असंतृप्त क्षेत्र

भूजल

बजरी

भूजल पृथ्वी की सतह के नीचे मिट्टी के कणों और खंडित चट्टान के बीच की जगहों को भरता है

● झारखंड की भूगर्भीय चट्टानों के अपारगम्यता की वजह से इसमें पानी रोकने की क्षमता नहीं होती

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