सहमति से बना शारीरिक संबंध रेप नहीं मान सकते: अदालत
तथ्यों से स्पष्ट है कि आरोपी ने शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध नहीं बनाया था
रांची: झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस गौतम चौधरी की अदालत ने दुष्कर्म के एक मामले में निचली अदालत के आदेश को निरस्त करते हुए युवक को बरी कर दिया। कोर्ट ने आदेश में कहा, तथ्यों से स्पष्ट है कि आरोपी ने शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध नहीं बनाया था, बल्कि युवती की सहमति से ही शारीरिक संबंध बना। इसलिए यह रेप नहीं माना जाएगा। पाकुड़ सिविल कोर्ट ने 2012 में मोहिदुल को युवती से रेप मामले में सात साल की सजा सुनाई थी। इस फैसले को उसने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
युवती ने 2007 में शादी का झांसा देकर यौन शोषण का केस किया था। कोर्ट ने आदेश में कहा है कि मामले में प्राथमिकी दर्ज कराने में छह माह की देरी हुई है। करीब छह माह तक दोनों को बीच शारीरिक संबंध बने और जब पीड़िता गर्भवती हो गई तब मामले का पता चला। पीड़िता ने बयान में बताया था कि आरोपी ने उससे शादी करने का वादा किया था। साक्ष्य में आया है कि अपीलकर्ता विवाह के पंजीकरण के लिए कोर्ट गया था, पर वहां अन्य लोगों ने रोक दिया। साक्ष्यों से दुष्कर्म करने का आरोप साबित नहीं होता है। गवाही को संयुक्त रूप से पढ़ने से पता चलता है कि पंचायत में शादी करने को कहा गया था, लेकिन दूसरों की आपत्ति के कारण ऐसा नहीं हो सका।