झारखंड विधानसभा में मुख्यमंत्री प्रश्नकाल हो सकती है समाप्त, धारा 52 को भी किया जा सकता है विलोपित

झारखंड विधानसभा की कार्य संचालन नियमावली में से मुख्यमंत्री प्रश्नकाल समेत तीन प्रावधानों में बदलाव की तैयारी शुरू हो गई है।

Update: 2022-03-09 05:31 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। झारखंड विधानसभा की कार्य संचालन नियमावली में से मुख्यमंत्री प्रश्नकाल समेत तीन प्रावधानों में बदलाव की तैयारी शुरू हो गई है। स्पीकर की अध्यक्षता में हुई विधानसभा की नियम समिति की बैठक में यह तय हुआ कि कार्य संचालन नियमावली की धारा 52 को विलोपित किया जाए। साथ ही धारा 304(2) के तहत प्रतिदिन शून्यकाल की सूचना 15 को बढ़ाकर 25 किया जाए। इतना ही नहीं अल्पसूचित प्रश्न को 14 दिन पहले सभा सचिवालय में जमा करने के प्रावधान को भी विलोपित किया जाए।

समिति के सदस्य और झामुमो विधायक दीपक बिरुआ ने इस अनुशंसा को मंगलवार को सदन के पटल पर रखा। इसपर स्पीकर ने नियमन दिया कि समिति की अनुशंसा पर सभी विधायक 14 मार्च तक संशोधन दे सकते हैं। विधायक दीपक बिरुआ ने बताया कि
स्पीकर की अध्यक्षता में सम्पन्न नियम समिति की बैठक मे सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित हुआ है। उन्होंने कहा कि समिति में इस बात पर चर्चा हुई कि जब मुख्यमंत्री सत्रावधि के दौरान सदन में उपस्थित रहते हैं तो अलग से मुख्यमंत्री प्रश्नकाल का कोई औचित्य नहीं है। यह भी देखा गया है कि मुख्यमंत्री प्रश्नकाल में नीतिगत प्रश्न का अभाव रहता है। मुख्यमंत्री प्रश्नकाल का प्रावधान झारखंड के अलावा मध्य प्रदेश में है।
संसदीय मामलों के जानकार अयोध्यानाथ मिश्र का कहना है कि मुख्यमंत्री प्रश्नकाल एक आदर्श व्यवस्था है। मुख्यमंत्री सदन के माध्यम से नीतिगत प्रश्नों का जवाब जनता के समक्ष रखते हैं। यह जवाबदेह लोकतंत्र के लिए एक आदर्श व्यवस्था है।
वहीं झारखंड विधानसभा के पहले अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी कहते हैं कि 2001 में विधानसभा कार्य संचालन नियमावली बनाने के दौरान सोच-समझ कर मुख्यमंत्री प्रश्नकाल की व्यवस्था की गई थी। इसे विलोपित करने का फैसला उचित नहीं है। यह सत्ता पक्ष के मनोबल की कमी दर्शाता है।
कांग्रेस, भाजपा और माले ने किया विरोध
कांग्रेस विधायक ममता देवी, अनूप सिंह और बंधु तिर्की ने इसका विरोध किया है। इनका कहना है कि यह विधायकों के लोकतांत्रिक अधिकार को छीनने का प्रयास है। वहीं भाजपा विधायक मनीष जयसवाल, राज सिन्हा, नीलकंठ सिंह मुंडा, नवीन जयसवाल, भानु प्रताप शाही, अपर्णा सेन गुप्ता, नीरा यादव के अलावा माले के विनोद सिंह ने भी प्रस्ताव का विरोध किया है।
प्रस्ताव पेश: दल-बदल में स्पीकर नहीं ले सकेंगे स्वत: संज्ञान
विधानसभा की विशेष समिति ने दलबदल मामले में स्पीकर के स्वत: संज्ञान की शक्ति को विलोपित करने की सिफारिश की है। समिति की इस अनुशंसा के आधार पर झामुमो विधायक स्टीफन मरांडी ने मंगलवार को इससे जुड़ा प्रस्ताव सभा पटल पर रखा । इसपर सदस्यों से 14 मार्च तक आपत्ति मांगी गई है। समिति के सभापति स्पीफन मरांडी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में फैसला दिया था कि दलबदल अधिनियम के अंतर्गत कोई बाहरी भी इस विषय को उठा सकता है। झारखंड विधानसभा देश की पहली विधानसभा है जो इस निर्णय के आलोक में नियमावली में संशोधन कर रही है।
बता दें कि बाबूलाल मरांडी ने पिछले दिनों स्पीकर के स्वत: संज्ञान लेने के मामले को सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में उठाया था। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने स्पीकर के स्वत: संज्ञान के मामले में रोक लगा दी थी। हालांकि स्पीकर ने खुद ही इस वाद को वापस ले लिया था।
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