चाईबासा : विस्थापितों के हक मारने का काम कर रहा रुंगटा माइंस, कुजू गांव के लोगों को नहीं मिला अब तक लाभ
रुंगटा माइंस सामाजिक कार्य कर समाज में एक अच्छा छवि बनाने का भले ही प्रयास करें. लेकिन उनकी इंटरनल बात करें तो स्थिति बद से बदतर है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क।
चाईबासा : विस्थापितों के हक मारने का काम कर रहा रुंगटा माइंस, कुजू गांव के लोगों को नहीं मिला अब तक लाभ
रुंगटा माइंस सामाजिक कार्य कर समाज में एक अच्छा छवि बनाने का भले ही प्रयास करें. लेकिन उनकी इंटरनल बात करें तो स्थिति बद से बदतर है. स्थानीय को कुचल कर अपना काम कर रहा है. कुजू गांव के पास स्थित चालियामा स्टील प्लांट में काम करने वाले विस्थापितों को मात्र नौ से लेकर 13 हजार तक की प्रति माह वेतन के रूप में पैसा देता है. जिससे ना ही उनका घर का गुजारा होता है ना ही खुद का ही गुजारा हो पाता है. जब स्टील प्लांट की स्थापना हुई तो इकरारनामा के तहत विस्थापितों को पैसा के अलावा नौकरी देने पर समझौता हुआ था. लेकिन विस्थापितों का हाल बेहाल हो गया है. भले ही रोजगार को लेकर लोगों ने अपना जमीन दे दिया हो लेकिन अब उन लोगों को पछतावा होने लगा है. ऐसा ही एक मामला कुजू गांव के एक परिवार का है जो बरसों से नौकरी की आस में बैठा हुआ है. लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिल रहा है.
70 डिसमिल चालियाम स्टील प्लांट को भिकुलाल गिरी के परिवार ने दिया था. इसके बदले में जमीन का पैसा और नौकरी देने की बात कही गई थी. उनके दो बेटे है. दोनों बेटा को नौकरी में रखने पर इकरारनामा हुआ था. लेकिन रुंगटा माइन्स की चालाकी से बेचारे अवगत नहीं हो पाए. भिकूलाल गिरी का एक बड़ा बेटा रितेश गिरी फिलहाल रूंगटा माइंस में ही कंप्यूटर ऑपरेटर पर कार्यरत कर रहा है. जिसे मात्र 9000 मासिक तनख्वाह दी जा रही है जो एक सामान्य से भी कम है. इसके अलावा उनका दूसरा बेटा आजाद गिरी जिसको नौकरी में रखने की बात पर इकरारनामा में हुआ था. लेकिन अब चार साल होने को है. उन्हें नौकरी नहीं मिला है. अब जमीनदाताओं ने जमीन देने के बाद अफसोस जताया है. जमीनदाताओं का कहना है कि जिस तरह से इकरारनामा हुआ था उसे पूरा करते हुए रुंगटा माइन्स द्वारा विस्थापितों को नौकरी तो दी जा रही है. लेकिन जिस तरह से वेतन देना चाहिए. उस तरह से कंपनी वेतन नहीं दे रही है. जिसके कारण लोगों का घर परिवार चलना मुश्किल हो जा रहा है. मेरा एक बेटा रुंगटा माइंस में कंप्यूटर ऑपरेटर है, जिन्हें मात्र 9000 रुपये ही दिया जाता है जो बहुत ही कम है. जमीन का पैसा तो दे दिया. लेकिन समझौता के तहत नौकरी भी देने की बात हुई थी. दो बेटा को नौकरी देने पर समझौता हुआ है. लेकिन अभी तक एक बेटा को नौकरी नहीं दिया गया है. 9000 रूपये किस आधार पर दे रहा है. यह हमें जानकारी नहीं है लेकिन अब हमें जमीन देकर अफसोस लग रहा है.
माइंस पर सरकार की निगरानी नहीं होने से विस्थापित हो रहे परेशान
रुंगटा माइन्स चालियामा के विस्थापितों पर सरकार अभी भी मौन है. जिसका नतीजा विस्थापित उठा रहे हैं. अपने से लड़ाई लड़कर अपना अधिकार ले रहे हैं. लेकिन सरकार इसमें किसी तरह की अहम भूमिका नहीं निभा रही है. विस्थापितों द्वारा लगातार उच्च अधिकारी के पास मांग पत्र सौंपा गया है. लेकिन विस्थापितों के हित पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं हुई है. बताया जाता है कि विस्थापितों की स्थिति बद से बदतर लगातार होती जा रही है. लेकिन रुंगटा माइन्स की ओर से किसी तरह का उचित कार्रवाई नहीं किया जा रहा है जो एक दुर्भाग्यपूर्ण है. विस्थापितों का मानना है कि सरकार इस मामले को लेकर गंभीरता से ले और संबंधित मांग संचालकों पर कार्रवाई कर विस्थापितों को अपना अधिकार दिया जाए.