800 किलोमीटर का सफर तय कर झारखंड पंहुचती है प्रवासी पक्षी, प्रतिबंध के बावजूद होता है शिकार

ठंड के मौसम शुरू होते ही विदेशी मेहमानों के लिए आदर्श स्थल झारखंड बन जाता है. झारखंड में सर्दी की दस्तक के साथ ही हजारों प्रवासी पक्षियों का आना शुरू हो गया है.

Update: 2021-11-15 08:07 GMT

जनता से रिश्ता। ठंड के मौसम शुरू होते ही विदेशी मेहमानों के लिए आदर्श स्थल झारखंड बन जाता है. झारखंड में सर्दी की दस्तक के साथ ही हजारों प्रवासी पक्षियों का आना शुरू हो गया है. हजारों किलोमीटर सफर तय कर झारखंड के पलामू के साथ साथ विभिन्न इलाकों में पहुंचते हैं और तीन महीने तक अपना बसेरा यहीं बनाते है.यह भी पढ़ेंःदेवघर में विदेशी मेहमानों की अटखेलियां, अनुकूल वातावरण और मौजूद वनस्पति के लिए पहुंचते हैं साइबेरियन पक्षीप्रवासी पक्षी का जिक्र होने पर अमूमन साइबेरियन क्रेट और उसकी प्रजाति का जिक्र होता है, लेकिन एक नन्ही पक्षी भी है, जो लार्क परिवार का है. इसका वैज्ञानिक नाम Ashy crowned sparrow lark है. झारखंड और स्थानीय भाषा में इस पक्षी को बगेरी कहते है, जो गौरैया पक्षी की तरह दिखता है. ठंड के दौरान यह लार्क यानी बगेरी पक्षी तिब्बत और यूरोपियन देशों से बड़ी संख्या में झारखंड आते हैं, जिसका पलामू टाइगर रिजर्व के साथ साथ गढ़वा के इलाके में जमावड़ा लगता था. अब बगेरी विलुप्त के कगार पर है. सरकार ने बगेरी की शिकार पर प्रतिबंध लगा रखा है. इसके बावजूद बड़े पैमाने पर इनका शिकार किया जाता है.

बाजार में दर्जन के भाव से बिकता है बगेरी
झारखंड में दो प्रकार के बगेरी होते है. एक प्रवासी और दूसरा स्थानीय होता है. स्थानीय बगेरी धान और ईख की खेतों में दिखता है, जबकि प्रवासी बगेरी झील, नदी और तालाब के किनारे देखने को मिलता है. ठंड के शुरु होते ही प्रवासी बगेरी पहुंचने लगता है और शिकार भी शुरू हो जाता है. शिकारी बड़ी संख्या में प्रवासी बगेरी का शिकार कर बाजार में दर्जन के भाव से बेचते है. बाजार में स्थानीय बगेरी 250 से 300 रुपये दर्जन, जबकि प्रवासी बगेरी 700 से 1000 रुपये दर्जन तक बिकता है. झारखंड में पलामू का चैनपुर हरिहरगंज और गढ़वा का रंका मेराल में बडे पैमाने पर बगेरी बेचे जाते है. पलामू के सन्नी शुक्ला कहते हैं कि बगेरी का शिकार दुखद है. सरकार को इसके लिए जरूरी कदम उठाने की जरूरत है.
बगेरी से फसलों का होता है लाभ
देश में गौरैया प्रजाति का पक्षी बगेरी विलुप्त के कगार पर है. बगेरी फसलों में लगे कीड़े को खा जाती है. पक्षियों के संरक्षण को लेकर लंबे समय से काम कर रहे डॉ कौशिक मल्लिक बताते हैं कि ठंड के दौरान तिब्बत और यूरोपियन देशों से बगेरी झारखंड में पहुंचते हैं. बगेरी फसलों में लगे कीड़े को खा जाती है, जिससे फसलों को लाभ पहुंचता है. उन्होंने कहा कि खेतों में लोग अधिक कीटनाशक का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस कीटनाशक से बगेरी जैसे पक्षियों को नुकसान पंहुचता है. खेतों में कीटनाशक का छिड़काव और शिकार दोनों बगेरी को विलुप्त कर रहा है.
वन कर्मियों को किया जाएगा तैनात
पलामू टाइगर रिजर्व किला में ठंड के दौरान प्रवासी पक्षी का बड़ा जमावड़ा लगता है. पीटीआर के इलाके में 160 से भी अधिक प्रजाति के पक्षी मौजूद हैं. पलामू टाइगर रिजर्व के निदेशक कुमार आशुतोष बताते हैं कि टाइगर रिजर्व का इलाका प्रवासी पक्षियों के स्वागत के लिए तैयार है. उन्होंने बताया कि प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा में वन कर्मियों को विशेष रूप से तैनात किया जाएगा.


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