झामुमो प्रकरण के बाद कुणाल के 'सियासत' पर सवालिया निशान लग गया

साल 2014 में बहरागोड़ा से विधानसभा चुनाव जीत कर झामुमो पार्टी से कैरियर की शुरुआत करने वाले कुणाल षाड़ंगी का सियासत पर सवालिया निशान लग गया है.

Update: 2024-04-02 06:30 GMT

जमशेदपुर : साल 2014 में बहरागोड़ा से विधानसभा चुनाव जीत कर झामुमो पार्टी से कैरियर की शुरुआत करने वाले कुणाल षाड़ंगी का सियासत पर सवालिया निशान लग गया है. झामुमो प्रकरण के बाद पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी के बारे में तरह-तरह की चर्चा चल रही है. कहा जा रहा है कि सांसद बनने की जल्दबाजी ने कुणाल षाड़ंगी की 'राजनीति' को खतरे में डाल दिया है. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि झामुमो में शामिल होने पर आम सहमति न बन पाने के बाद कुणाल षाड़ंगी की राजनीतिक स्थिति थोड़ी कमजोर हुई है.

झामुमो में आम सहमति न बन पाने की चर्चा
बताते हैं कि पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी जमशेदपुर संसदीय सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं. उन्होंने पहले भाजपा में ही टिकट हासिल करने के लिए हाथ पैर मारा. लेकिन, जब भाजपा ने दो बार से लगातार चुनाव जीत रहे सांसद विद्युत वरण महतो पर दोबारा अपना भरोसा जताया. तो कुणाल षाड़ंगी को लगा कि अब भाजपा में उनकी दाल गलने वाली नहीं है. राजनीतिक सूत्रों के अनुसार इसके बाद कुणाल षाड़ंगी ने झामुमो से टिकट पाने की कोशिश शुरू की. बताते हैं कि उनकी बात लगभग बन भी गई थी. लेकिन, कई विधायकों के एक गुट के विरोध ने कुणाल षाड़ंगी के झामुमो में वापसी की संभावना को फिलहाल खत्म कर दिया है. कुणाल षाड़ंगी को झामुमो में शामिल करने पर आम सहमति न बन पाने की खबर मीडिया में आने के बाद कुणाल ने बयान जारी कर राजनीतिक नुकसान को कम करने की कोशिश की और कहा कि उन्होंने कभी झामुमो में जाने की कोशिश नहीं की. लेकिन, उनका यह तर्क नहीं चल सका. लोगों ने इस पर सवाल खड़े कर दिए. लोगों कहना था कि जब शुरुआत में मीडिया में खबरें आ रही थीं कि कुणाल झामुमो में जाने वाले हैं. तभी उन्हें इस बारे में अपनी स्थिति साफ करनी चाहिए थी.
दिल्ली भेज दी गई है रिपोर्ट
राजनीतिक सूत्रों के अनुसार झामुमो प्रकरण के बाद भाजपा में भी कुणाल षाड़ंगी को लेकर तरह-तरह की बातें चल रही हैं. बताते हैं कि पार्टी के एक धड़े ने कुणाल षाड़ंगी के झामुमो प्रकरण से जुड़ी पूरी रिपोर्ट राष्ट्रीय नेतृत्व को भेज दी है. हालांकि, कुणाल षाड़ंगी पार्टी के नेताओं को यह विश्वास दिलाने की कोशिश पुरजोर कोशिश कर रहे हैं कि उन्होंने झामुमो में जाने की कोई कोशिश नहीं की.
साल 2014 में भाजपा के दिनेशानंद को हराया था
कुणाल षाड़ंगी ने झामुमो से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की थी. उन्होंने साल 2014 में भाजपा के दिनेशानंद गोस्वामी को हराया था. इस चुनाव में कुणाल षाड़ंगी को 57 हजार 297 वोट मिले थे. जबकि दिनेशानंद गोस्वामी 42 हजार 618 मत मिले थे.
झामुमो छोड़ने के बाद गिरा सियासी ग्राफ
साल 2019 के विधानसभा चुनाव में कुणाल षाड़ंगी ने झामुमो पार्टी छोड़ दी थी. यहीं से उनका सियासी ग्राफ गिरना शुरू हो गया. ग्रामीण इलाकों में झामुमो की पकड़ मजबूत है. साल 2009 के चुनाव में सांसद विद्युतवरण महतो खुद झामुमो से बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र के विधायक थे. विद्युत वरण महतो के भाजपा में जाने के बाद और लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र से कुणाल षाड़ंगी को झामुमो का टिकट मिला था और वह जीते भी थे. लेकिन, साल 2019 के चुनाव में कुणाल षाड़ंगी भाजपा में आ गए और भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े. जबकि झामुमो ने क्षेत्र के समाजसेवी समीर मोहंती पर भरोसा जताया और समीर मोहंती झामुमो से चुनाव जीतकर अब विधायक भी हैं. इस तरह, झामुमो पार्टी छोड़ने से कुणाल षाड़ंगी की राजनीतिक स्थिति कमजोर हुई है.


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