जम्मू-कश्मीर में 'रियल एस्टेट' सेक्टर में होगा 18300 करोड़ का निवेश, सरकार ने ऐतिहासिक करार दिया
जम्मू स्थित कन्वेंशन सेंटर में प्रदेश का पहला रियल एस्टेट सम्मेलन हुआ।
जम्मू स्थित कन्वेंशन सेंटर में प्रदेश का पहला रियल एस्टेट सम्मेलन हुआ। इसका शुभारंभ केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पूरी, पीएमओ में राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने किया। अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद प्रदेश में पहली बार रियल एस्टेट निवेशक सम्मेलन होने जा रहा है।
सोमवार को हुए कार्यक्रम में जम्मू-कश्मीर सरकार ने आवास और वाणिज्यिक परियोजनाओं के विकास के लिए 18,300 करोड़ रुपये के 39 समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के बाद देश के रियल एस्टेट निवेशकों के लिए केंद्र शासित प्रदेश में कारोबार का द्वार खुल गया है। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने जम्मू-कश्मीर रियल एस्टेट शिखर सम्मेलन में एमओयू पर हस्ताक्षर को ऐतिहासिक करार देते हुए कहा कि यह केंद्रशासित प्रदेश के परिवर्तन की दिशा में एक बड़ा कदम है। उन्होंने कहा कि सरकार ने पहले ही रियल्टी कानून रेरा लागू कर दिया है और यूटी में मॉडल टेनेंसी एक्ट को अपनाया है। उन्होंने जोर दिया कि सरकार संपत्तियों के पंजीकरण पर स्टांप शुल्क कम करने और परियोजनाओं के तेजी से अनुमोदन के लिए सिंगल-विंडो सिस्टम स्थापित करने पर विचार करेगी।
रोजगार के पैदा होंगे द्वार
सिन्हा ने कहा कि इस करार से जम्मू-कश्मीर में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के अवसर पैदा होंगे। घोषणा की कि इसी तरह का एक रियल एस्टेट शिखर सम्मेलन अगले साल 21-22 मई को श्रीनगर में आयोजित किया जाएगा। विकास के नाम पर स्थानीय लोगों की जमीन हड़पने के विपक्षी दलों के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर सिन्हा ने कहा कि यह डर पैदा करने और लोगों को भड़काने का प्रयास है।
कोई जनसांख्यिकीय परिवर्तन नहीं
उन्होंने कहा कि कोई जनसांख्यिकीय परिवर्तन नहीं होगा। उपराज्यपाल ने कहा कि रियल एस्टेट डेवलपर्स को यूटी के स्थानीय बिल्डरों के साथ साझेदारी करने के लिए कहा गया है। सिन्हा ने कहा कि सरकार ने परियोजनाओं के विकास के लिए 6,000 एकड़ भूमि की पहचान की है। इसके अलावा कृषि भूमि के उपयोग में बदलाव के लिए भी नियम बनाए हैं।
उन्होंने कहा कि सरकार नई औद्योगिक नीति के तहत परियोजनाओं के विकास के लिए अपनी जमीन भी देगी। जिन लोगों के पास जमीन है, उन्हें यह तय करने की आजादी होनी चाहिए कि वह इसका इस्तेमाल कैसे करना चाहते हैं।