हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सड़क बनाने और मुआवजा से जुड़े मामले में अहम व्यवस्था दी है। अदालत ने सड़क बनाने के लिए भूमि के अधिग्रहण पर सरकार की ओर से मुआवजा न देना असांविधानिक ठहराया है। न्यायाधीश संदीप शर्मा ने तहसील रोहड़ू में 28 वर्ष पहले बनाई गई सड़क की लिए अधिग्रहित जमीन का मुआवजा अदा करने के आदेश दिए हैं। अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता रामानंद और अन्य दो दशकों से मुआवजे के लिए लड़ रहे हैं। अदालत ने सरकार से आशा जताई है कि याचिकाकर्ताओं को दो महीनों के भीतर मुआवजा दिया जाए।
अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि हालांकि संपत्ति का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, फिर भी अनुच्छेद 300-ए के तहत यह एक सांविधानिक अधिकार है। इस दृष्टिकोण से अनुच्छेद 300-ए के तहत किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है। यद्यपि राज्य के पास जनता की भलाई के लिए भूमि के मालिक की संपत्ति को लेने की शक्ति है, लेकिन सरकार इसकी क्षति की भरपाई करने के लिए बाध्य है। अदालत ने कहा कि हालांकि जिस व्यक्ति को संपत्ति से वंचित किया है उसे मुआवजा देने का अधिकार स्पष्ट रूप से प्रदान नहीं किया गया है। वर्ष 1995 में तहसील रोहड़ू में उधो-निवास-झाकड़-बरतु सड़क के निर्माण के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया था।
इसमें याचिकाकर्ताओं की भूमि का अधिग्रहण भी किया गया। वर्ष 1997 में अधिग्रहीत भूमि का मुआवजा दिया गया। लेकिन याचिकाकर्ताओं को मुआवजे की राशि से वंचित किया गया। इसके बाद उन्होंने सरकार के पास अपना पक्ष रखा कि उन्हें मुआवजा नहीं दिया गया है। हालांकि जिन लोगों को वर्ष 1997 में मुआवजा नहीं दिया गया था, उन्हें वर्ष 2014 में मुआवजा दिया गया है। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने दोबारा से मुआवजे के लिए आवेदन किया था। जिसे राज्य सरकार ने 29 सितंबर 2022 को खारिज कर दिया था। इस आदेश को याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी। अदालत ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर राज्य सरकार के 29 सितंबर 2022 के आदेशों को खारिज कर दिया।
कर्मचारियों को वरीयता लाभ न देने पर वन निगम को लगाई 30 हजार रुपये की कॉस्ट
प्रदेश हाइकोर्ट ने वन निगम के कर्मचारियों को वरीयता लाभ न देने पर 30 हजार रुपये की कॉस्ट लगाई है। अदालत ने निगम के प्रबंध निदेशक, निदेशक दक्षिण और क्षेत्रीय प्रबंधक चौपाल को कॉस्ट की राशि अदा करने के आदेश दिए हैं। अदालत ने कहा कि यदि अदालती आदेशों की अनुपालाना में कोताही बरती गई तो उस स्थिति में प्रतिकूल आदेश पारित किए जा सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने यह निर्णय सुनाया।
अदालत ने भाग चंद और भगवान दास की अपील का निपटारा करते हुए यह आदेश पारित किए। याचिकाकर्ताओं ने वर्ष 2016 में हाईकोर्ट की ओर से पारित आदेशों की अनुपालना के लिए याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने पाया कि 2 अगस्त 2016 को अदालत ने दैनिक भोगी टिंबर वाचर की वरीयता सूची को ठीक करने के आदेश दिए थे। अदालत ने पाया कि प्रतिवादी निगम की ओर से अदालत को बताया गया था कि याचिकाकर्ताओं की आपत्तियों के आधार पर दोबारा से वरीयता सूची जारी की जाएगी।
अदालत के समक्ष बयान देने और अदालती आदेशों के बावजूद भी जब निगम ने वरियता सूची को नहीं सुधारा तो उस स्थिति में याचिकाकर्ताओं को दोबारा से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। अदालत ने हैरानी जताते हुए कहा कि निगम ने अदालती आदेशों को लागू करने के लिए 35 साल की देरी की दलील दी थी। अदालत ने कहा कि निगम की गलती के लिए याचिकाकर्ताओं को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। अदालत ने अपील को स्वीकार करते हुए निगम को तीन महीनों में भीतर याचिकाकर्ताओं को वरीयता का लाभ दिए जाने के आदेश दिए है। अदालत ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं को सेवा से जुड़े सभी लाभ भी दिए जाएं।