सिरमौर में बढ़ रहा गिद्धों का कुनबा, वन विभाग जल्द करेगा गणना
जनपद सिरमौर में गिद्दों का कुनबा बढ़ना पर्यावरण संरक्षण के लिए शुभ संकेत माना जा रहा है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जनपद सिरमौर में गिद्दों का कुनबा बढ़ना पर्यावरण संरक्षण के लिए शुभ संकेत माना जा रहा है। इन दिनों जिले के विभिन्न क्षेत्रों के आसमान में अच्छी खासी संख्या में गिद्ध देखे जा सकते हैं। गिद्धों की बढ़ती संख्या का फिलहाल विभाग के पास आंकड़ा नहीं है। वन विभाग जल्द गिद्धों की गणना शुरू करेगा। यह भी पता लगाएगा कि जिले में किन-किन प्रजातियों के गिद्धों ने डेरा जमाया है।
जिला मुख्यालय नाहन के समीप बालासुंदरी गोसदन के समीप काफी संख्या में गिद्ध पेड़ों में बैठे देखे गए हैं। उधर, विभाग भी इस बात को स्वीकार कर रहा है कि गिद्धों की संख्या में पिछले कुछ समय से बढ़ोतरी हो रही है। यह पर्यावरण के लिए अच्छा संकेत है। विशेषज्ञों की मानें तो गिद्धों की घटती संख्या चर्चा का विषय रही है। कुछ साल पहले इनकी संख्या में गिरावट की वजह डाइक्लोफेनिक दवा मानी गई, जो पशु के मरने के बाद गिद्धों की मौत का कारण बन रही थी। इसका प्रयोग पशुओं में बुखार, सूजन और दर्द की समस्या से निपटने में किया जाता था।
पशुओं का मांस नोंचने के बाद गिद्ध भी काल का ग्रास बन रहे थे। लिहाजा, इनकी संख्या लगातार घट रही थी। दवा पर प्रतिबंध के बाद अब फिर गिद्धों का कुनबा बढ़ने लगा है। पशुपालन विभाग की उपनिदेशक डॉ. नीरू शबनम ने बताया कि कुछ सालों पहले तक पशुओं के लिए डाइक्लोफेनिक दवा का प्रयोग जाता था, लेकिन 2006 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। गिद्दों की संख्या में हो रही बढ़ोतरी में यही एक बड़ा कारण हो सकता है।
वन विभाग के नाहन वन वृत्त की अरण्यपाल सरिता द्विवेदी ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से जिला सिरमौर में गिद्धों की संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। यह पर्यावरण के लिए शुभ संकेत है। आने वाले दिनों में जिला में वन विभाग गिद्दों की कितनी प्रजातियां हैं और इनकी संख्या को लेकर गणना करेगा।
प्रदेश में होती थीं गिद्धों की कई प्रजातियां
भारत में लगभग हर प्रजाति के गिद्ध पाए जाते हैं। इनमें यूरेशियन ग्रीफन, हिमालयन ग्रीफन, व्हाइट-बैक्ड और सलेंडर बिल्ड जैसी प्रजातियां प्रमुख हैं। इन प्रजातियों के गिद्धों की अच्छी संख्या वाले राज्यों में हिमाचल प्रदेश भी शुमार था। धीरे-धीरे इनकी संख्या घटने लगी और एक समय में स्थिति चिंताजनक बन गई। अब दोबारा गिद्धों की संख्या बढ़ना पर्यावरण संरक्षण के लिए काफी लाभदायक माना जा रहा है।