नाहन: सिरमौर जिला के पांवटा उपमंडल की ग्राम पंचायत मुगलावाला के सिरमौरी ताल में बुधवार रात्रि को बादल फटने की घटना के बाद जो तबाही हुई है, इस घटना ने जिला सिरमौर के लोगों को सिरमौर रियासत की याद दिला दी है। रियासतकाल के दौरान सिरमौरी ताल सिरमौर रियासत की राजधानी हुआ करती थी। 12वीं शताब्दी में जब सिरमौर रियासत का वर्चस्व चरम पर होता था, तो उस दौरान एक नटनी ने श्राप दिया था कि सिरमौर रियासत की राजधानी भारी बारिश का शिकार होकर जमींदोज हो जाएगी। इसका खामियाजा तत्त्कालीन रियासत को भी भुगतना पड़ा था तथा नटनी के श्राप के बाद 12वीं शताब्दी के बाद सिरमौरी ताल में गिरि नदी में ऐसी तबाही आई कि सिरमौर रियासत का मुख्य केंद्र बिंदु सिरमौरी ताल पूरी तरह से तहस-नहस हो गया। सिरमौर रियासत के मात्र अवशेष वहां पर रह गए थे, जो अब तक मौके पर संजोकर रखा गया है। बुधवार रात्रि को जो तबाही सिरमौर रियासत की तत्कालीन राजधानी माने जाने वाले सिरमौरी ताल में आई है, उसमें फिर से दशकों पुरानी यादों को ताजा कर दिया है। पूरे क्षेत्र में भय का माहौल है तथा जो पांच सदस्यों का परिवार जमींदोज हुआ है, उनके सगे-संबंधी उनके घर व शरीर को मलबे में तलाश रहे थे। गौर हो कि सिरमौर रियासत के दौरान सिरमौरी ताल में सिरमौर रियासत के शासक का केंद्र होता था।
बताया जाता है कि शासन काल के दौरान एक नटनी को सतौन व सिरमौरी ताल के समीप पहाड़ी पर स्थित पौका गांव से टोका गांव तक रस्सी पर चलने की शर्त रखी गई थी। जब नटनी रस्सी पर चलने लगी, तो उस रस्सी को काट दिया गया था तथा इस दौरान नटनी ने सिरमौरी रियासत की तबाही का श्राप दिया था। बुधवार को मानों नटनी का श्राप एक बार फिर से सिरमौर जिला के पांवटा उपमंडल के छोटे से गांव सिरमौरी ताल पर फिर से टूट पड़ा हो। चारों ओर तबाही का मंजर बयां कर रहा था कि सदियों बाद फिर से सिरमौरी ताल पर नटनी का श्राप कहर बनकर टूटा है। गिरि नदी के समीप बसे सिरमौरी ताल की जमीन सोना उगलती है। किसान इसी जमीन पर अपनी आजीविका कमाते हैं, परंतु बुधवार रात को जो तबाही किसानों के खेतों व घरों में हुई है, उससे सिरमौरी ताल गांव के किसानों के जख्म वर्षों तक नहीं भर पाएंगे। किसानों के खेत-खलिहान तबाह हो गए हैं। भले ही इस हादसे में एक अभागा कुलदीप सिंह का परिवार हमेशा के लिए जिंदा दफन हो गया है, परंतु आसपास के लोगों को अभी भी भय है कि मलबे के नीचे कोई और व्यक्ति भी हो सकता है। मलबे की तबाही कई बीघा भूमि पर स्पष्ट नजर आ रही थी। इस हादसे में 63 वर्षीय कुलदीप सिंह उसकी पत्नी 57 वर्षीय जीतो देवी, कुलदीप सिंह की 31 वर्षीय बहू रजनी, 10 साल का पोता नितेश व आठ साल की पोती दीपिका बेमौत मारी गई है। बारिश की हालत यह थी कि गुरुवार दोपहर बाद बचाव का कार्य रोकना पड़ा।
जिला प्रशासन की ओर से उपायुक्त सिरमौर सुमित खिमटा व पुलिस अधीक्षक रमन कुमार मीणा ने स्वयं राहत की कार्यों की अगवाई की। तबाही का मंजर पांवटा साहिब-शिलाई-गुम्मा नेशनल हाई-वे-707ए पर कई किलोमीटर तक साफ देखा जा रहा था। रात के अंधेरे में भी लोग बचाव के लिए हाथ आगे बढ़ा रहे थे। उधर, सिरमौर जिला के सतौन में हुई भारी तबाही पर नाहन के विधायक अजय सोलंकी, पूर्व विधायक व भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डा. राजीव बिंदल, नाहन व पांवटा साहिब के पूर्व विधायक कुश परमार, भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष विनय गुप्ता, जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष आनंद परमार, कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता रूपेंद्र ठाकुर आदि ने गहरा शोक व्यक्त किया है। (एचडीएम)
छह-सात मील बहाल
पंडोह। मंडी पंडोह के बीच निर्माणाधीन फोरलेन पर छह मील और सात मील के पास खतरे का परिचायक बनी सडक़ पर एनएचएआई और केमएसी कंपनी ने डबल लेन रास्ता बहाल कर दिया है। यहां खतरनाक चट््टानों व मलबे को दो दिन की मेहनत के बाद हटा दिया गया है। शुक्रवार से मार्ग पर यातायात पूरी तरह से बहाल रहेगा। हालांकि अगर बारिश या किसी अन्य वजह से पहाड़ी से चट्टाने गिरने व मलबे का खतरा अभी भी बना हुआ है, लेकिन अब इस प्वाइंट पर फिलहाल डबल लेन टै्रफिक चल सकेगा। एएसपी सागर चंद्र शर्मा ने बताया कि फिलहाल छह और सात मील से डबल लेन यातायात बहाल कर दिया गया है।
32 मील में आधा मार्ग धंसा
जवाली। प्रदेश का सबसे महत्त्वपूर्ण पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग कई दिनों से आफत बन गया है, पर स्थानीय प्रशासन मार्ग की जरूरत के लिहाज से सक्रिय नहीं है। गुरुवार को लगातार तीसरे दिन 32 मील में भारी ल्हासा गिरने के कारण नेशनल हाईवे का ब्राहल खड्ड की तरफ वाला आधा मार्ग धंस गया है तथा आधे मार्ग को खोलकर ही वाहनों की आवाजाही हो रही है। इतनी ज्यादा पहाड़ी गिर गई है कि फोरलेन कंपनी की पोकलेन मलबा हटाती है तो मात्र 10-15 मिनट के लिए मार्ग खुलता है तथा अभी दो-तीन वाहन ही निकलते हैं और दोबारा फिर से मलबा नेशनल हाई-वे पर आ जाने से मार्ग बंद हो जाता है। इस कीचडऩुमा मात्र 50 से 80 मीटर मार्ग से गुजरने को ही 15 मिनट का समय लग जा रहा है।