शांता की तल्ख टिप्पणी, बोले-संपन्न लोगों को मुफ्त वस्तुएं देना गलत, सरकार के आर्थिक तंत्र की बर्बादी

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Update: 2022-08-13 09:06 GMT
पालमपुर। राजनीति में मुफ्त की रेवड़ियां बांटे जाने को लेकर शांता कुमार ने तल्ख टिप्पणी की है। बकौल शांता कुमार देश के माननीयों और प्रमुख नेताओं द्वारा यह सिद्धांत पर तय किया गया कि भुखमरी की कगार पर रहने वालों को मुफ्त सहायता दी जानी चाहिए, अति गरीब लोगों को मुफ्त नहीं, सस्ते भाव पर आवश्यक वस्तुएं दी जानी चाहिए और अन्य सभी लोगों को कुछ भी नि:शुल्क नहीं दिया जाए। अच्छे भले संपन्न लोगों को मुफ्त वस्तुएं देकर भीखमंगा बनाने का प्रयत्न एक महापाप है, उनके स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ है और आत्मनिर्भरता के विपरीत एक कदम है। यही नहीं, सरकार के आर्थिक तंत्र की बर्बादी है। देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि राजनीति देश के लिए नहीं, केवल और केवल कुर्सी के लिए की जा रही है। भारतीय राजनीति में मुफ्त की रेवड़ियां बांटने के प्रश्न पर एक गंभीर बहस आरंभ हो रही है। मामला देश के उच्चतम न्यायालय तक भी पहुंच गया है। भारत में वर्षों पहले गंभीरता से विचार करके ठीक निर्णय लिया गया था। उसकी दृष्टि से यह बहस बिल्कुल व्यर्थ है।
गरीबों के लिए आरंभ हुईं अंत्योदय योजनाएं
स्वामी विवेकानंद जी देश के गरीबों के लिए खून के आंसू बहाते रहे। उन्होंने दरिद्र नारायण का मंत्र दिया, महात्मा गांधी जी ने उसी आधार पर अंत्योदय का मंत्र दिया जबकि दीनदयाल उपाध्याय जी ने पंक्ति में सबसे पीछे के व्यक्ति की मदद का मंत्र दिया। इन्हीं मंत्रों के आधार पर 1977 में जनता सरकारों ने अंत्योदय योजनाएं आरंभ कीं। हिमाचल और राजस्थान में एक साथ अंत्योदय योजनाएं आरंभ की गई थीं। हिमाचल में एक लाख सबसे निर्धन परिवारों को चयनित कर लोक कल्याण की सभी योजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर उन परिवारों की ओर केंद्रित किया गया था तथा कुछ और सुविधाएं भी दी गईं। एक वर्ष के पश्चात 40 प्रतिशत परिवार गरीबी रेखा के ऊपर हो गए थे।
मुफ्त नहीं, अपितु सस्ते भाव पर दिया अनाज
केंद्र में खाद्य मंत्री था, अनाज के भंडार भरे थे, रखने को स्थान नहीं था। परंतु प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में किसी को मुफ्त अनाज बांटने की बात नहीं सोची गई। सबसे गरीब 10 करोड़ लोगों को चयनित कर अंत्योदय योजना आरंभ की गई। मुफ्त अनाज नहीं, अपितु सस्ते भाव पर 35 किलो अनाज 2 रुपए किलो गेहूं और 3 रुपए किलो चावल की दर से देना आरंभ किया गया। कुछ समय पश्चात सरकार के समक्ष एक विषय आया कि कुछ लोग इतने अधिक गरीब हैं कि 2 और 3 रुपए के भाव पर भी राशन नहीं खरीद सकते, तब अटल बिहारी वाजपेयी से परामर्श करके अन्नपूर्णा योजना आरंभ की गई और भुखमरी की कगार पर जी रहे अति गरीब परिवारों को 20 किलो अनाज नि:शुल्क दिया जाने लगा।
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