शिमला, 17 अक्तूबर : विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। मिशन रिपीट (Mission Repeat) को लेकर भाजपा अति संवेदनशील होकर चुनाव की रणनीति बना रही है। चुनावी मैदान में टिकट आवंटन ही सत्ता की चाबी है। जिसको लेकर भाजपा फूंक- फूंक कर कदम रख रही है। इसी के चलते रविवार को भाजपा आलाकमान ने हेलीकॉप्टर से चारों संसदीय क्षेत्रों में मत पेटियां भेज कर उम्मीदवारों के चयन के लिए भाजपा पदाधिकारियों का मतदान करवाया गया। इसके लिए पार्टी ने विशेष रूप से कांगड़ा, मंडी, हमीरपुर व शिमला में चार हेलीकॉप्टर के माध्यम से मतपेटियां भिजवाई। शाम होते होते वोटिंग के पश्चात ये मतपेटियां दिल्ली भाजपा कार्यालय मंगवाई गई। हमीरपुर को छोड़कर बाकी संसदीय क्षेत्रों में शान्तिपूर्वकक मतदान हुआ।
हमीरपुर मुख्यालय की सीट पर कुछ पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि उन्हें वोट डालने के लिए बुलाकर वोट नहीं डालने दिया गया। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस प्रकार की प्रक्रिया भाजपा ने पहली दफा टिकट आवंटन के लिए अपनाई है। इसके कई मायने निकाले जा रहे है। इसके पीछे सबसे बड़ी रणनीति यह मानी जा रही है कि इससे टिकट आवंटन प्रक्रिया को लंबा खींचा जा सके। कारण यह है कि इससे विद्रोह की स्थिति कम बनेगी। जिन प्रत्याशियों (Nominees) का टिकट कटेगा वह पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ निर्दलीय मैदान में नहीं उतर पाएंगे। न ही उनको दल बदल का समय मिल पाएगा। ये भी हो सकता है कि भाजपा की रणनीति हो कि पहले कांग्रेस के टिकटों के ऐलान होने दिया जाए।
यही नहीं जो कुछ उम्मीदवार कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए है, उनको टिकट की गारंटी नहीं है, क्योंकि अधिकतर विधानसभाओं में उन्हें मंडल के पदाधिकारियों का विरोध सहना पड़ रहा है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को ये बहाना मिल जाएगा कि आपको मंडल से बहुमत व समर्थन नहीं मिला है।
पार्टी के जो आंतरिक व गुप्त चुनाव करवाए गए है, उनके पैमाने पर पार्टी खरी नहीं उतरी है। ऐसे में माना जा रहा है कि प्रत्याशियों के चयन के लिए मतदान छलावा ही है। मकसद से भी हो सकता है कि कुछ विस सीटों पर जनाधार विहीन नेताओं का टिकट काटकर जीतने वाले उम्मीदवारों को पैराशूट (parachute) से उतारा जा सके।
कुल मिलाकर टिकट आवंटन में आंतरिक चुनाव को एक गुप्त हथियार के रूप में यूज कर आलाकमान की पसंद को ही सर्वोपरि व फाइनल माना जाए। इसके मायने साफ है कि उम्मीदवारों की अंतिम लिस्ट जारी होने के बाद किसी किन्तु-परन्तु की गुंजाइश न रहे। इसके अलावा सूत्रों से यह भी पता चला है कि प्रदेश की कई विधानसभाओं से उम्मीदवार बनने जा रहे प्रत्याशियों के खिलाफ संघ मुख्यालय में शिकायत गई है कि पिछले 5 सालों में इन उम्मीदवारों ने संघ के लोगों की सुनवाई नहीं की। संघ के दबाव के चलते नागपुर कार्यालय से इनपुट मिलने के बाद आंतरिक चुनाव की प्रक्रिया को अपनाना पड़ा।
बताया जा रहा है कि इसके चलते कई सिटिंग विधायकों व मंत्रियों की टिकटों पर तलवार लटक गई है। यदि, उनके टिकट कटते है तो आंतरिक चुनावों को ढाल बनाया जा सकता है। फ़िलहाल यह तो साफ है कि भाजपा सबसे अंत में प्रत्याशियों के टिकट फाइनल करेगी, क्योंकि भाजपा इंटरनल डेमेज से बचाना चाहती है।