ज्योति : नीता ने 98.21 परसेंटाइल से यूजीसी नेट (UGC NET) में सफलता कर खुद को असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए क्वाॅलिफाई कर लिया है। उनकी सफलता से पति और परिवार के साथ पूरा गांव उत्साहित है। सुनीता कहती हैं पति के बिना सफलता अधूरी रह जाती। चाहती हैं कि गांव की हर बेटी और बहू के हाथ में जिम्मेदारी के साथ किताब और कलम रहे। कुछ साल पहले जब सुनीता की शादी हुई, तो उन्हें लगा था कि अब चौका-बर्तन में ही उनके दिन गुजरेंगे। ससुराल में पति, सास-ससूर के साथ जेठ-जेठानी भी थे। संयुक्त परिवार होने से जिम्मेदारी ज्यादा थी। इस बीच दो बच्चियों का जन्म हुआ। पति से अपने की मन की बात कह सुनाई। बताया कि वह पढ़ी-लिखी है और आगे भी पढ़ना चाहती है। फिर क्या था पति ने कभी पीछे मुड़ कर देखने नहीं दिया। सुनीता और संदीप की एक बिटिया पांच और दूसरी लगभग दो साल की है। पत्नी की पढ़ाई में खलल न पड़े, इसके लिए संदीप खुद रात जग कर दोनों बच्चियों की देखभाल करते थे। गांव में अलग कमरा लेकर ट्यूशन पढ़ाते थे। घर पर कोलाहल से बचने के लिए पत्नी को ट्यूशन सेंटर पर बुला लेते थे। पत्नी जब पढ़ाई करती, तब वह घर पर बच्चों की देखभाल करते थे। यहां तक कि जब कभी उपहार देना होता, तो पति कोर्स की किताबें भेंट करते थे।उनकी सफलता से पति और परिवार के साथ पूरा गांव उत्साहित है। सुनीता कहती हैं पति के बिना सफलता अधूरी रह जाती। चाहती हैं कि गांव की हर बेटी और बहू के हाथ में जिम्मेदारी के साथ किताब और कलम रहे। कुछ साल पहले जब सुनीता की शादी हुई, तो उन्हें लगा था कि अब चौका-बर्तन में ही उनके दिन गुजरेंगे। ससुराल में पति, सास-ससूर के साथ जेठ-जेठानी भी थे। संयुक्त परिवार होने से जिम्मेदारी ज्यादा थी। इस बीच दो बच्चियों का जन्म हुआ। पति से अपने की मन की बात कह सुनाई। बताया कि वह पढ़ी-लिखी है और आगे भी पढ़ना चाहती है। फिर क्या था पति ने कभी पीछे मुड़ कर देखने नहीं दिया। सुनीता और संदीप की एक बिटिया पांच और दूसरी लगभग दो साल की है। पत्नी की पढ़ाई में खलल न पड़े, इसके लिए संदीप खुद रात जग कर दोनों बच्चियों की देखभाल करते थे। गांव में अलग कमरा लेकर ट्यूशन पढ़ाते थे। घर पर कोलाहल से बचने के लिए पत्नी को ट्यूशन सेंटर पर बुला लेते थे। पत्नी जब पढ़ाई करती, तब वह घर पर बच्चों की देखभाल करते थे। यहां तक कि जब कभी उपहार देना होता, तो पति कोर्स की किताबें भेंट करते थे।