42 लाख टन खाद्यान्न की कम उपज, SYL न बनने का असर- 10 लाख एकड़ सिंचाई क्षमता बेकार
चंडीगढ़। SYL Canal Dispute: हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्रियों के बीच एसवाईएल नहर निर्माण के मसले पर हुई बातचीत सिरे नहीं चढ़ पाने का सबसे अधिक असर हरियाणा पर पड़ा है। इस बातचीत के सफल नहीं होने की वजह से ही हरियाणा अपने हिस्से का 1.88 एमएएफ (मिलियन एकड़ फीट) पानी नहीं ले पा रहा है। पंजाब और राजस्थान हर वर्ष हरियाणा के लगभग 2600 क्यूसिक पानी का प्रयोग कर रहे हैं।
हरियाणा के किसानों को सालाना 19 हजार 500 करोड़ रुपये का नुकसान
यदि यह पानी हरियाणा में आता तो 10.08 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई हो सकती है। इस पानी के न मिलने से दक्षिणी हरियाणा में भूजल स्तर काफी नीचे जा रहा है। एसवाईएल न बनने की वजह से 42 लाख टन खाद्यान्न का कम उत्पादन हो रहा है, जिस कारण हरियाणा के किसानों को सालाना 19 हजार 500 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान पहुंच रहा है।
1.88 मिलियन एकड़ फीट पानी नहीं मिल पा रहा हरियाणा को
हरियाणा ने बार-बार कोशिश की है कि एसवाईएल नहर निर्माण का मुद्दा हल हो जाए, लेकिन पंजाब की अकाली दल और कांग्रेस सरकारों के बाद अब आम आदमी पार्टी की सरकार ने भी प्रदेश के हितों की अनदेखी की है। वैसे तो पंजाब हमेशा हरियाणा को अपना छोटा भाई मानता आया है, लेकिन जब भी हरियाणा के हितों की रक्षा और पानी देने की बात होती है, उसे यह कहकर पूरी तरह से अनदेखा कर दिया जाता है कि बड़े भाई के पास छोटे को देने के लिए पानी नहीं है।
एसवाईएल नहर के न बनने से हरियाणा के किसान को फसल सींचने के लिए महंगे डीजल का प्रयोग करना पड़ता है और बिजली से नलकूप चलाकर सिंचाई करना उनकी मजबूरी हो जाती है, जिससे उन्हें हर वर्ष 100 करोड़ रुपये से लेकर 150 करोड़ रुपये तक अतिरिक्त खर्च करने पड़ते हैं।
पंजाब क्षेत्र में एसवाईएल के न बनने से हरियाणा में 10 लाख एकड़ क्षेत्र को सिंचित करने के लिए सृजित सिंचाई क्षमता बेकार पड़ी है। यदि पंजाब अपने हिस्से की नहर बना दे तो हरियाणा के सिंचाई संसाधनों का सही तरीके से इस्तेमाल हो सकेगा। पानी की कमी का ही नतीजा है कि हरियाणा को हर वर्ष 42 लाख टन खाद्यान्नों की हानि उठानी पड़ती है। यानी इतना खाद्यान्न कम पैदा होता है।
यदि हरियाणा के पास उसके हिस्से का भरपूर पानी हो तो अनाज के पूल में 42 लाख टन की बढ़ोतरी संभव है, जो कि बड़ी मात्रा है। यदि 1981 के समझौते के अनुसार 1983 में एसवाईएल बन जाती, तो हरियाणा 130 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्नों व दूसरे उत्पादों का उत्पादन करता। 15 हजार रुपये प्रति टन की दर से इस कृषि पैदावार का कुल मूल्य 19 हजार 500 करोड़ रुपये बनता है।
जब तक पानी नहीं, तब तक रायल्टी दे पंजाब
पंजाब सतलुज, रावी और ब्यास नदियों से जल की आपूर्ति के लिए हरियाणा से रायल्टी देने की मांग करता है। पंजाब ने रायल्टी की मांग इस गलतफहमी में की है कि जल के हिस्से का अधिकार राइपेरियन सिद्धांत से मिलता है। इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं है। यह अधिकार बेसिन राज्य होने के आधार पर निर्धारित होते हैं। सिंधु जल संधि के अंतर्गत भारत को तीन पूर्वी नदियों का पानी मिला, जिसे बाद में 24 मार्च, 1976 की भारत सरकार की अधिसूचना द्वारा इसे और आगे दो उत्तराधिकारी राज्यों में आवंटित कर दिया गया।
सर्वोच्च न्यायालय के दो आदेशों 15.1.2002 और निर्णय एवं आदेश दिनांक 4.6.2004 के बावजूद पंजाब अपने क्षेत्र में एसवाईएल कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न कर हरियाणा के हिस्से के पानी का गैर-कानूनी ढंग से उपयोग कर रहा है। हरियाणा के हिस्से के पानी का गैर कानूनी ढंग से प्रयोग करने के लिए पंजाब द्वारा हरियाणा को रायल्टी दी जानी चाहिए।