हिसार: क्रांतिकारियों ने डीसी-तहसीलदार समेत 45 अंग्रेज अफसरों को गोली से उड़ा हिसार को किया आजाद

Update: 2022-08-10 11:46 GMT

जनता से रिश्ता के सौजन्य से: आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष के इस खास मौके पर अमर उजाला ने आजादी की लड़ाई में हिसार के योगदान को शृंखलाबद्ध किया है। प्रस्तुत है इसकी दूसरी कड़ी..। 1857 में बनी डिप्टी कलेक्टर की पत्ननी की कब्र। लड़ाई का निर्णायक स्थल नागोरी गेट महालवाड़ी व्यवस्था का विरोध कर रहे हिसार क्षेत्र के किसान भी 1857 के विद्रोह में शामिल हो चुके थे। उधर अंबाला व मेरठ छावनी में क्रांति के बाद 11 मई 1857 को दिल्ली की गद्दी पर बहादुरशाह जफर आसीन हो गए थे। भट्टू के जमींदार व दिल्ली सुल्तान के रिश्तेदार मोहम्मद आजम ताजपोशी देखकर लौटे तो हांसी के कानूनगो हुकुमचंद जैन व मुनीर बेग, हिसार के डिप्टी डिप्टी कमिश्नर शहबाज बेग, जमींदार गुरुबख्श सिंह व अंग्रेजी सैनिक छावनी में घुड़सवार रजब बेग के साथ हिसार की लाल मस्जिद में बैठकर बगावत की योजना बनाई। 29 मई को हांसी छावनी व हिसार शहर तथा 30 मई को सिरसा को अंग्रेजों से आजाद भी करा लिया। हालांकि, महज 15 दिन बाद ही अंग्रेजी फौजों ने सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतारकर फिर इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष के इस खास मौके पर अमर उजाला ने आजादी की लड़ाई में हिसार के योगदान को शृंखलाबद्ध किया है। प्रस्तुत है इसकी दूसरी कड़ी..। सटीक योजना से मिली पहली सफलता

हिसार की लाल मस्जिद में 27 मई 1857 को हुई बैठक में तय हुआ कि 28 मई को लोगों को जागरूक किया जाएगा और 29 मई को सुबह 11 बजे बगावत होगी। सभी की जिम्मेदारी भी तय की गई। निर्धारित समय पर सैन्य अफसर रजब बेग के नेतृत्व में भिवानी की तरफ से हांसी सैनिक छावनी पर हमला हुआ। अंग्रेज अफसर स्कीनर वहां से भागकर राजगढ़ चला गया। छावनी पर कब्जे के बाद क्रांतिकारी एक बजे ही हिसार पहुंच गए। यहां कलक्टर (डीसी) वैडर वर्न व तहसीलदार थामसन को गोली मार दी गई। इसके बाद किले पर हमला कर हिसार को आजाद घोषित कर दिया गया। खजाने से एक लाख 70 हजार रुपये भी लूट लिए गए। इस बगावत में 45 अंग्रेज अफसर मारे गए। अगले दिन 30 मई को सिरसा में कस्टम विभाग के 13 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों ने बगावत कर दी। अंग्रेज अफसरों को भगाने के बाद क्रांतिकारियों ने रानियां के अपदस्थ नवाब जाविता खान के पुत्र नूर मोहम्मद को वहां की सत्ता सौंप दी। इस तरह दो दिन में ही डबवाली से दादरी (हिसार जिला) को आजाद घोषित कर दिया गया। जनरल वॉन कोर्टलैंड ने रोड रोलर के नीचे कुचलवा दिया विद्रोहियों को

अंग्रेजों ने हिसार क्षेत्र पर पुन: कब्जे की जिम्मेदारी फिरोजपुर के जनरल वॉन कोर्टलैंड को दी। जनरल वॉन ने बीकानेर, कश्मीर व पटियाला के नवाबों को साथ लेकर हिसार पर जबरदस्त आक्रमण किया। ओढ़ा में 15 से 17 जून तक हुई लड़ाई में करीब 600 क्रांतिकारी मारे गए। 20 जून को ब्रिटिश फौज सिरसा पहुंच गई। इसके बाद 17 जुलाई को हिसार पर आक्रमण किया। यहां अंग्रेजों को क्रांतिकारियों से जूझना पड़ा। 02 अगस्त को हिसार पर कब्जे के बाद हांसी पर भी दोबारा अंग्रेजों ने जीत हासिल कर ली। 19 अगस्त को क्रांतिकारियों ने हिसार के किले को फिर से घेर लिया। यहां के नागौरी गेट पर भीषण युद्ध हुआ, जिसमें 438 क्रांतिकारी मारे गए। इसके अलावा 235 शव इधर-उधर बिखरे मिले। युद्ध की समाप्ति के बाद बंदी बनाए गए 123 क्रांतिकारियों को जनरल वॉन के आदेश पर रोड रोलर के नीचे दबा दिया गया। 25 अगस्त को अंग्रेजों ने हांसी व तोशाम पर दोबारा कब्जा किया। इसके बाद 06 व 11 अगस्त को मंगाली में युद्ध हुआ। 30 सितंबर को जमालपुर व रोहनात में अंग्रेजों व क्रांतिकारियों के बीच संघर्ष हुआ। रोहनात के रूपा खाती व भिरड़ी दास बैरागी को तोप के मुंह पर बांधकर उड़ा दिया गया। इसके अलावा नोंदा राम जाट को रोड रोलर से कुचला गया। इसके अलावा रोहनात, मंगाली, हाजिमपुर, जमालपुर व पुट्ठी मंगलखान को नीलाम कर दिया गया। 16 नवम्बर को नसीमपुर की लड़ाई हुई। मुनीर बेग को जलाया, हुकुमचंद को दफनाया

1857 की क्रांति में हिसार क्षेत्र में अंग्रेजों को काफी नुकसान उठाना पड़ा। कुल 45 अंग्रेज अफसरों को क्रांतिकारियों ने मार दिया, जिसमें कलक्टर व तहसीलदार स्तर के अफसर भी शामिल थे। खास बात यह रही कि अंग्रेजों को स्थानीय कर्मचारियों व सैनिकों का कोई सहयोग नहीं मिला। क्षेत्र में दोबारा कब्जा पाने के लिए करीब आठ महीने तक अलग-अलग जगहों पर लड़ाई करनी पड़ी। विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने खूब कहर बरपाए। उस वक्त के प्रचलित लोक गीतों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि अंग्रेजों ने 42 बार यहां के क्रांतिकारियों को रोड रोलर के नीचे दबवा दिया। इसके अलावा विद्रोह के अगुवा रहे हांसी के हुकुमचंद जैन व उनके भतीजे फकीरचंद तथा मुनीर बेग व उनके भतीजे मुर्तुजा बेग को उन्हीं के घरों के सामने खुली फांसी दी गई, जिससे कि घरवाले भी दहशत में रहें। इतना ही नहीं हुकुमचंद जैन के शव को धार्मिक क्रियाकलापों के विपरीत जबरन दफनाया गया, जबकि मुनीर बेग के शव को जला दिया गया। इतने दमन के बाद भी क्रांतिकारियों के हौसले नहीं टूटे और क्रांति की मशाल जलती रही। - जैसा कि इतिहासकार डॉ. महेंद्र सिंह ने बताया

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