कोर्ट रूम न्यूज़: हरियाणा सरकार के पंचायत चुनाव में पिछड़ा वर्ग ( ए ) को दिए गए आरक्षण के फैसले को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रवि शंकर झा व जस्टिस अरूण पल्ली पर आधारित बेंच ने हरियाणा सरकार को इस मामले में नोटिस जारी कर जवाब देने का आदेश दिया है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सवाल किया कि पंचायत चुनाव में आरक्षण की एक याचिका हाई कोर्ट में पहले ही विचाराधीन है तो यह याचिका क्या है। इस पर याची के वकील ने कोर्ट को बताया कि इस याचिका में पंचायत चुनाव में पिछड़ा वर्ग (ए) के लिए हरियाणा पंचायती राज (संशोधन) अध्यादेश 2022 लागु किया गया जो भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है।
सोनीपत निवासी सुरेश कुमार व अन्य द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि हरियाणा सरकार ने दो सितंबर को एक अध्यादेश जारी किया, जिसमें हरियाणा पंचायती राज अधिनियम की धारा नौ, धारा 59 और धारा 120 में बदलाव करते हुए पुराने कानून में संशोधन किया गया। इस संशोधन के तहत बीसी (ए) के लिए आरक्षण का प्रविधान किया गया है। याचिका में जानकारी दी गई कि ग्राम सभा क्षेत्र में बीसी (ए) की कुल जनसंख्या के आधे प्रतिशत के आधार पर आरक्षण दिया जाए तथा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित वार्डों के अलावा रोटेशन द्वारा वार्ड आवंटित किए जाएं। दलील दी गई कि ड्रा की प्रक्रिया और रोटेशन प्रक्रिया का पालन कैसे किया जाएगा, यह स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, जो पूरी तरह से अवैध, अनुचित और असंवैधानिक है। हालांकि, जहां तक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का संबंध है, यह जनसंख्या के अनुपात में किया जा रहा है, जबकि बीसी (ए) के लिए इसे जनसंख्या के आधे प्रतिशत में जोड़ा जा रहा है।
याचिका के अनुसार प्रत्येक ग्राम पंचायत, जिला परिषद और ब्लाक समितियों में पिछड़ा वर्ग-ए की जितने प्रतिशत आबादी होगी, उसकी 50 प्रतिशत सीटें पिछड़ों के लिए आरक्षित की जाएंगी। यह अध्यादेश एससी श्रेणी की तुलना में दिए जा रहे लाभ की सीमा को सीमित कर बीसी (ए) के प्रति पूरी तरह से भेदभावपूर्ण है, इसलिए इसे रद किया जाए। याचिकाकर्ताओं ने हरियाणा पंचायती राज (संशोधन) अध्यादेश 2022 को को भी रद करने की मांग की है।