डॉ. राठौर ने कहा देश की आजादी के बाद हमारा मुख्य प्रयास लोगों को खाद्यान्न सुरक्षा प्रदान करने के लिए खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाने पर केन्द्रित रहा और देश ने 1960-70 के दशक में हरित क्रान्ति लाकर इसे प्राप्त करने में भी सफलता हासिल की. लेकिन इसके परिणामस्वरूप खेती में रसायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों आदि रसायनों का प्रयोग बहुत ज्यादा बढ़ गया. आज स्थिति ऐसी बन गई है कि इन जहरीले रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से यह भूमि, जल व पर्यावरण में घुलने के साथ खाद्य श्रृंखला (फूड चेन) में प्रवेश कर गए हैं जो मानव जाति में गंभीर बीमारियों का कारण बन रहे हैं. उन्होंने किसानों से पारंपरिक खेती पद्धति से हटकर प्राकृतिक खेती अपनाने पर जोर देते हुए कहा कि इस खेती पद्धति में कृषि अवशेषों का प्रयोग होने से लागत कम आएगी जिससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी और कृषि उत्पादन की गुणवत्ता में भी वृद्धि होगी.
कृषि के लिए प्राकृतिक संसाधनों का बेतहाशा दोहन चिंता का विषय
उन्होंने खेती में जल प्रबंधन करने पर भी बल दिया. उन्होंने कहा कृषि में केवल 30′ जल का सही प्रयोग हो रहा है जबकि 70′ जल व्यर्थ बह जा रहा है. उन्होंने प्राकृतिक खेती में हरियाण कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की और कहा इस पद्धति को अपनाकर हरियाणा के किसान अन्य प्रदेशों के किसानों का मार्गदर्शन कर सकते हैं. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने अध्यक्षीय भाषण में कृषि में प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध हो रहे दोहन पर चिंता जताई और किसानों को कृषि उत्पादन के साथ इनकी गुणवत्ता सुधारने पर ध्यान देने को कहा.
कृषि की नई तकनीक को अपना कर प्राप्त कर सकते हैं अच्छी आय
उन्होंने कहा कृषि उत्पादों की गुणवत्ता के अधार पर किसान अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन्हे बेचकर अच्छी आमदनी हासिल कर सकते हैं. उन्होंने कहा पंजाब और हरियाणा के किसान कृषि उत्पादन में सदा अग्रणी रहे हैं और वे कृषि उपज की गुणवत्ता बढ़ाने में भी आगे रहेंगे. उन्होंने बताया हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने प्राकृतिक खेती को लोकप्रिय बनाने के लिए दीन दयाल उपाध्याय जैविक खेती उत्कृष्ट केन्द्र की स्थापना की है जहां जैविक और प्राकृतिक खेती की उत्पादन प्रौद्योगिकी विकसित किए जाने के साथ कृषि उत्पादन व इसकी गुणवत्ता को लेकर तुलनात्मक अध्ययन किए जा रहे हैं. प्रो. काम्बोज ने ग्रामीण युवाओं से आहवान किया कि वे नौकरी के पीछे भागने की अपेक्षा कृषि की नवीन प्रौद्योगिकियां एवं फसल पद्तियों को अपनाकर अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं.
प्राकृति खेती है उपयुक्त
एमएचयू के कुलपति प्रो. समर सिंह ने किसानों से पारंपरिक फसल चक्र से हटकर समन्वित कृषि पद्धति अपनाने का आहवान किया. उन्होंने कहा किसान सब्जियों व फलों की खेती करके अच्छी आमदनी ले सकते हैं. उन्होंने कहा हरियाणा सरकार द्वारा शुरू की गई भावान्तर योजना के चलते इनकी खेती से आर्थिक हानि होने की भी संभवना नहीं है. LUVAS के कुलपति डॉ. विनोद कुमार वर्मा ने भी प्राकृतिक खेती को उपयुक्त बताया और कहा कि इसमें गाय का गोबर और गोमूत्र का प्रयोग होने से इससे गौवंश को बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने कहा कि उनके विश्वविद्यालय ने गोवंश की नस्ल सुधार के लिए भूण्र प्रत्यारोपण तकनीक का प्रयोग शुरू किया है. इससे पूर्व विस्तार शिक्षा निदेशक एवं कृषि मेला के संयोजक डॉ. बलवान सिंह मंडल ने अतिथियों और किसानों का स्वागत किया और अनुसंधान निदेशक डॉ. रामनिवास ढांडा ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया.
एग्रो-इण्डस्ट्रियल प्रदर्शनी मेले का मुख्य आकर्षण
कृषि मेला में एग्रो-इण्डस्ट्रियल प्रदर्शनी लगाई गई थी जो किसानों के लिए विषेष आकर्षण रही. इस प्रदर्शनी में एचएयू, लुवास, एमएचयू करनाल और बाहरी कंपनियों की ओर से करीब 230 स्टाल लगाई गईं जहां विभिन्न फसलों की उन्नत किस्मों, आधुनिक तकनीकों सहित आधुनिक कृषि यंत्रों की किसानों को जानकारी दी गई. इस अवसर पर किसानों के लिए प्रश्नोत्तरी सभा का भी आयोजन किया गया, जिसमें कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के सवालों के जवाब दिए और उनकी समस्याओं का समाधान किया.
प्रगतिशील किसानों को किया गया सम्मानित
कृषि मेले के दौरान प्रत्येक जिले से एक प्रगतिशील किसान को कृषि क्षेत्र में किए गए बेहतर कार्य के लिए सम्मानित किया गया. इन किसानों को शॉल, प्रमाण-पत्र व स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया. कृषि मेला में आज पहले दिन हरियाणा तथा पड़ोसी राज्यों से करीब 45 हजार किसानों ने भाग लिया. किसानों ने विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित कृषि साहित्य में रूचि दिखाते हुए अपनी पसंद के कृषि प्रकाशन खरीदे.