यहां फुटपाथ पर लगती है 5वीं से 10वीं तक के क्लास, 95 से 100 बच्चे हर रोज आते हैं पढ़ने, सिविल इंजीनियर फ्री में पढ़ाते हैं
देशभर में लाखों की संख्या में ऐसे परिवार हैं, जिनकी महीने की आमदनी इतनी कम है कि वे दो वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष करते हैं.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। देशभर में लाखों की संख्या में ऐसे परिवार हैं, जिनकी महीने की आमदनी इतनी कम है कि वे दो वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष करते हैं. ऐसे में दाना-पानी को संघर्ष कर रहे परिवारों के लिए बच्चों (Free Education in Gujarat) को पढ़ा पाना अत्यंत मुश्किल काम होता है. गरीबी के बीच बच्चों को पढ़ाना पहाड़ पर चढ़ाई करने के बराबर का काम है. ऐसा कहना अतिश्योक्ति नहीं होना चाहिए. लेकिन गुजरात में एक व्यक्ति गरीब बच्चों के लिए 'फरिश्ता' बनकर सामने आया है. ये व्यक्ति शिक्षा से वंचित रहने वाले गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहा है. इसके लिए उसने फुटपाथ पर ही स्कूल खोल दिया है.
दरअसल, ये व्यक्ति गुजरात के रहने वाले सिविल इंजीनियर निकुंज त्रिवेदी हैं. वडोदरा (Vadodara Footpath Teacher) के फुटपाथ पर निकुंज को गरीब बच्चों को पढ़ाते हुए देखा जा सकता है. निकुंज के इस काम के लिए उनकी हर जगह वाह-वाही होती है. निकुंज उन बच्चों को मुफ्त शिक्षा मुहैया कराते हैं, जिनके माता-पिता अपने बच्चों के लिए ट्यूशन फीस अफोर्ड नहीं कर सकते हैं. निकुंज वडोदरा में फुटपाथ पर प्राइवेट और सरकारी स्कूल के स्टूडेंट्स को पढ़ाते हैं. उनका मकसद लोगों और बच्चों के बीच शिक्षा के महत्व को लेकर जागरूकता फैलाना है.
95 से 100 बच्चे हर रोज आते हैं पढ़ने
समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए निकुंज त्रिवेदी ने कहा, 'यहां पर केजी से लेकर 10वीं क्लास तक के 95 से 100 बच्चे हर रोज पढ़ने आते हैं. इन स्टूडेंट्स में से कुछ सरकारी स्कूल में तो कुछ प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं. लेकिन उनके माता-पिता ट्यूशन फीस अफोर्ड नहीं कर सकते हैं. इसलिए मैं इन स्टूडेंट्स को फ्री में पढ़ाता हूं.' निकुंज ने बताया कि वह अलग-अलग सब्जेक्ट में बेसिक कॉन्सेप्ट को क्लियर करने का काम करते हैं. इसके अलावा, वह गुजराती, इंग्लिश और हिंदी में लिखकर भाषा पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं.
निकुंज ने बताया, 'मैं पांचवीं से दसवीं तक के स्टूडेंट्स को उनके सैलेबस के हिसाब से पढ़ाता हूं और छोटे स्टूडेंट्स की कॉन्सेप्ट क्लियर करता हूं. उन्हें गुजराती, इंग्लिश और हिंदी में लिखने को कहता हूं. लोग मेरी आर्थिक रूप से मदद करते हैं और मैं 5-6 स्टूडेंट्स की स्कूल फीस भी भरता हूं.' निकुंज ने यह भी कहा कि जिन स्टूडेंट्स को वह पहले पढ़ाते थे, वे अब उन्हें दूसरों को पढ़ाने में मदद कर रहे हैं.