जातीय राजनीति में यूपी-बिहार को पीछे छोड़ सबसे आगे है गुजरात
राजनीति में जातिवाद शब्द का नाम सुनते ही जेहन में सबसे पहले यूपी और बिहार याद आता है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। राजनीति में जातिवाद शब्द का नाम सुनते ही जेहन में सबसे पहले यूपी और बिहार याद आता है. क्योंकि इन राज्यों में जातियों के आधार पर क्षेत्रीय दल चुनाव में बड़ी भूमिका अदा करते हैं. ऐसा नहीं कि जातिवाद केवल इन्हीं 2 राज्यों में है. यदि तुलना करें तो इन दोनों ही राज्यों से ज्यादा जातिवाद गुजरात में है. यहां80 के दशक से ही जातिवाद चरम पर है. यूपी-बिहार तो वैसे ही जातिवाद के नाम पर बदनाम है. असल में जातिवादी फार्मूला तो गुजरात में कांग्रेस की ही देन है. कांग्रेस गुजरात के विधानसभा चुनाव में हार्दिक पटेल ,अल्पेश ठाकुर और जिग्नेश मेवानी को युवा तिकड़ी के तौर पर एक खास थ्योरी पर काम कर रही थी, लेकिन हार्दिक पटेल के अलग होते ही कांग्रेस की ये पूरी तिकड़ी बिखर गई. गुजरात में चाहे पाटीदार आंदोलन हो या ऊना की घटनाएं ये सब जातिवादी नमूना भर हैं. 1980 के दौर में कांग्रेस के राज में ही "खाम थ्योरी" के माध्यम से जातिवाद खूब चरम पर पहुंचाया गया. इसी के बलबूते 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे बड़ी सफलता भी मिली. अब विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में फिर कांग्रेस भाजपा अपने जातिवादी फार्मूले को पूरी तरीके से फिट करने में लगे हैं.