क्या थी मजबूरी तेरी जो रास्ते बदल लिए तूने, हर राज कह देने वाले, क्यों इतनी सी बात छुपा ली तूने
जनता से रिश्ता बेवडेस्क।
जाकिर घुरसेना/ कैलाश यादव
पिछले एक साल से चल रहे किसान आंदोलन का मुख्य कारण था तीनों कृषि बिल जिसमें सैकड़ों आंदोलनकारी किसान शहीद हो गए। हाल ही में हुए पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव और उपचुनाव में भाजपा को तगड़ी शिकस्त मिलने के बाद केंद्र की मोदी सरकार डर गई कि आने वाले दिनों में चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में असर दिखा सकता है। किसानों के प्रति सहानुभूति रखते हुए तीनों कृषि बिलों को वापस लेने का फैसला लिया यह आम जनता के समझ में नहीं आ रहा है। जिस पर देश भर खट्टी-मीठी प्रतिक्रिया मिल रही है। जब बिल को वापस लेना ही था तो 750 लोगों की जान क्यों लिए । जनता में खुसुर-फुसुर है कि केंद्र सरकार के लिए कृषि बिल वापस लेने का फैसला अब गले की हड्डी बन गई है। किसानों ने 6 और मांग कर आंदोलन की चेतावनी दी है। किसानों ने अब आंदोलन के दौरान मरे साढ़े सात सौ किसानों के परिवारों के लिए मुआवजा की मांग को मुद्दा बनाकर आंदोलन जारी रखने का ऐलान किया है। ऐसे में मोदी सरकार का फैसला चुनावी हार का डर और किसानों की सहानुभूति से भटक कर किसानों की मौत की ओर मुड़ गया है। अब क्या होगा यह तो वक्त बताएगा। इसी बात पर किसी शायर ने ठीक ही कहा है क्या थी मजबूरी तेरी जो रास्ते बदल लिए तूने। हर राज कह देने वाले, क्यों इतनी सी बात छुपा ली तूने
सलमान खुर्शीद के बाद मनीष का किताबी बम
चुनावी आहट आते ही नेताओं का जुनून बढ़ जाता है, कोई अपनी सरकार को ही कोसने लगता है तो कोई अपने किताब में विवादित अंश लिखकर सुर्खियों में बने रहना चाहते है। ताजा मामला सलमान खुर्शीद के बाद अब कांग्रेस के नेता मनीष तिवारी अपने किताब में यूपीए सरकार को 26/11 के हमले को लेकर घेर दिया है। मनीष तिवारी ने अपने किताब में लिखा है कि मनमोहन सिंह की सरकार ने मुबंई हमले में कोई कार्रवाई नहीं की। जनता में खुसुर-फुसुर है कि चुनाव आते ही नेताओं की नींद खुल जाती है और गड़े मुर्दे उखाडऩे में लग जाते है। माना जा रहा है कि मनमोहन सरकार की आलोचना के बहाने कांग्रेस के उच्च नेतृत्व पर हमला करने की मंशा साफ दिखाई दे रही है। मनीष तिवारी मनमोहन सरकार में स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री रहे थे,तब यह मामला क्यों नहीं उठाया? क्या कांग्रेस हाई कमान को नीचा दिखाने के लिए किताब लिखा जा रहा है। जनता में खुसुर-फुसर है कि नेताओं का कोई इमान धरम नहीं होता, जिसका खाते है उसका ही बजाने लगते है। यही काम छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी में हो रहा है जो लोग मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सहारे उंचे मुकाम पर पहुंचे है वही लोग भूपेश बघेल की जड़ काटने में लगे है।
राजीव भवन में वर्चस्व की लड़ाई
राजनीति में कोई किसी का गुरू या चेला नहीं होता। ऊपर चढऩे के लिए नीचे वाले को दबाना राजनीति का सिद्धांत है, जिस पर चल नेता बड़े ओहेदेदार बनते है। कांग्रेस सरकार के तीन साल की उपलब्धियों को उनके ही नए नवेले नेता बट्टा लगा रहे है। राजीव भवन में लगाताार नेताओं की वर्चस्व की लड़ाई को लेकर आमने-सामने होने की खबर सुर्खियों में है। अब शहर अध्यक्ष ने महिला नेत्री से दुव्र्यवहार और भेदभाव की खबर सुर्खियों में आने के बाद राजीव भवन में कर्मचारियों से दुव्र्यवहार करने का मामला सामने आया है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि क्या यहीं कांग्रेस की संस्कृति है। इस घटना पर भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश प्रभारी किरण बघेल ने कहा कि यह शर्मनाक है कि महिला को पार्टी के काम के साथ आंसू बहाना पड़े।
आंसू तो भाजपा में भी बहाना पड़ रहा है
दूसरी ओर इनकी पार्टी भाजपा के एक आशिक मिजाज नेता ने आरंग में सभा के बाद महिला नेत्री की खूबसूरती की तारीफ के कसीदे पढ़े और बाद में उसके साथ दुव्र्यवहार किया, जिसके कारण महिला नेत्री को भी आंसू बहाना पड़ा। राजनीति के हमाम में किसको क्या कहे, सभी नेता चारित्रिक रूप से एक ही रंग में रंगे हुए है।
भाजपा को भूपेश का पलटवार
भाजपाइयों के धरना प्रदर्शन पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पलटवार करते हुए कहा कि भाजपा की स्थिति दयनीय है, भाजपा के साथ न तो किसान है और नहीं कोई समाज है। वह मात्र धर्मांतरण और साम्प्रदायिकता को मुद्दा बना रहा है। भाजपा के पास कोई मुद्दा नहीं है जिसे लेकर सरकार पर अटैक कर सके। भाजपा ने कवर्धा घटना की न्यायिक जांच की मांग को लेकर भाजपा ने सीएम हाउस घेरने निकले, लेकिन उन्हें बीच में ही रोक दिया गया। जनता में खुसुर-फुसर है कि पक्ष और विपक्ष अपनी रोटी सेंकने के लिए कहीं भी आग लगा सकते है। जनता चाहती है कि सरकार महंगाई से मुक्त करें ताकि आमजनता अपने बाल बच्चों के साथ चैन की रोटी खा सके भाजपा-कांग्रेस की राजनीति चलती रहे। कौन सी पार्टी क्या कर रही इसका हिसाब तो चुनाव के समय होगा।