- उरला, भनपुरी, खमतराई, सिलतरा, तिल्दा में संचालित फै क्ट्रियों के तौल कांटे का नहीं होता भौतिक सत्यापन
- अधिकारी के नुमाइंदे मोटी रकम लेकर करते है फैक्ट्री में तौलकांटा जांचने की खानापूर्ति
- विभाग ने कभी आइल कंपनी, पेट्रोल पंप में नहीं मारा छापा - आटो मोबालि से जुड़े सबसे बड़े उद्योग में कार और बाइक के लिए बनाए जाने वाले इंजन आइल बनाने वाली कंपनियों की गुणवत्ता और वजन को लेकर आए दिन टू व्हिलर मार्केट में नकली आइल कम वजन की शिकायत को लेकर विवाद की स्थिति निर्मित होती रहती है। आटो मार्केट में गुणवत्ताहीन और कम वजन वाला आइल सुर्खियों में रहता है। आइल तो लोकल मार्केट में मेन्यूफैक्चिरिंग होती है। जो राजधानी के आसपास औद्योगिक क्षेत्र में बनाया जाता है। वहां मापतौल विभाग ने जाकर कभी जांच नहीं किया है। इसी चरह सबसे अधिक आंकों से सामने पेट्रोल पंप में चोरी होने के बाद भी उपभोक्ता लूटपिट जाने की शिकायत करने के बाद नापतौल विभाग की आंख नहीं खुलती। पेट्रोल पंप में पंप कर्मी खुले आम डंडी मार देते है। उनका कहना है कि हमें तनख्वाह नहीं दिया जाता, चोरी के पेट्रोल से जो मिलता है वहीं पंप कर्मियों का मेहनताना होता है।
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। औद्योगिक क्षेत्र में मापतौल के नाम पर उपभोक्ताओं और करोड़ों की खरीदी करने वाले उद्योगपतियों को चूना लगाने का खेल नापतौल विभाग के संरक्षण में बेखौफ चल रहा है। मापतौल के लिए फैक्ट्री में लगे तौल कांटे के हिसाब से मापतौल विभाग के अधिकारियों को नजराना पहुंचाया जाता है। वहां के चर्चित अधिकारी के गुर्गे फैक्ट्रियों में जाकर हर महीने वसूली करते है। रजिस्टर में मापतौल की खाना पूर्ति कर उपभोक्ताओं और खरीददारों के साथ सरकारी शुल्क का बड़ी बेहरमी से गबन कर रहे है। नापतौल विभाग में चल रहे घल्लूघारा को कोई देखने वाला नहीं है, सारे बड़े अधिकारियों को जो रिपोर्ट दिखाई जाती है, उस पर ही चिडिय़ा बैठै कर बड़े अधिकारी खुश हो रहे है। नापतौल विभाग के अधिकारी उरला, सिलतरा, खमतराई भनपुरी, सिलयारी में लगे प्लांटों में लगे तौल कांटे का कभी निरीक्षण करने नहीं जाते। फैक्ट्री के मालिक और प्रबंधन गुणवत्ता और वजन को पूरी मनमानी करने से भी गुरेज नहीं करते। औद्योगिक क्षेत्र में चल रहे बड़ी-बड़ी कंपनियों की पैकेजिंग और मापतौल का अपना सिस्टम है जिस वजन का रेपर लगा होता है। जिसमें उत्पादित सामग्री की पैकेजिंग वजन की मानक प्रिंट की हुई बोरियों में होती है। जिसकी बराबर वजन की गारंटी फैक्ट्री या उत्पादित कंपनी देती है। कंपनी के तौल कांटे की क्या गारंटी कि जो माप है वह सही है। इसके जवाब में कंपनी के प्रबंधन का कहना है कि जिस कंपनी से तौल कांटा खरीदी गया है उस कंपनी ने सौ फीसद गुणवत्ता और सर्वश्रेष्ठ वजन मापने की गारंटी दी है। मापतौल विभाग ने कभी आकस्मिक निरीक्षण कर किसी भी कंपनी में उत्पादित माल और पैकेजिंग के वजन की जांच नहीं की है। उरला, सिलतरा, सिलयारी के तौल कांटे संबंधित फैक्ट्री से अटैचमेंट होते है। जो कम वजन होने पर भी तौल कांटे में सही वजन दिखाने लगता है।
कम तौल का खेल लगभग सभी फैक्ट्रियों में
उत्पादित माल का लिखित वजन रेपर में भले हो लेकिन फैक्ट्री में पैकेजिंग और माल की पैकिंजिंग करने वाले कर्मचारियों को फैक्ट्री में लगे तौल कांटे के वजन से ही माल पैकिंग मिलता है। फैक्ट्री से माल निकलने के बाद उसका वजन कम हो तो खरीदार को नुकसान तो होगा ही। यह सब मापतौप विभाग के मिली भगत से पूरे प्रदेश में इस तरह के कम वजन पैकेजिंग का राकेट चल रहा है।