बिलासपुर। ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट(जेएमएफसी) प्रथम श्रेणी ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि कर्ज लेने के बाद तय समय पर राशि वापस लौटाने के एवज में दिए गए चेक के बाउंस होने के मामले में आरोपी ने अपना पक्ष स्पष्ट रूप से नहीं रख पाया है। चेक की राशि को ध्यान में रखते हुए व प्रकरण के लंबे समय से पेंडिंग रहने की स्थिति में परिवादी को बतौर क्षतिपूर्ति छह लाख स्र्पये भुगतान करने का निर्देश आरोपी को दिया है। क्षतिपूर्ति की राशि के एवज में आरोपी को एक साल की सजा भी भुगतनी पड़ेगी। जीनत विहार गणेश नगर थाना तोरखा बिलासपुर निवासी सचिन कुमार ने ओमप्रकाश जांगड़े से पारिवारिक कारणों का हवाला देते हुए जनवरी 2021 में पांच लाख 71 हजार स्र्पये का कर्ज लिया था। कर्ज लेते समय सचिन ने ओमप्रकाश को छह महीने के भीतर राशि वापस करने का भरोसा दिलाया था। इसके एवज में 16 जून 2021 को भारतीय स्टेट बैंक का चेक भी ओमप्रकाश को दिया था। चेक देते समय कहा था कि नगद राशि ना लौटा पाने की स्थिति में वह चेक जमा कर राशि बैंक से ले सकता है।
सचिन ने जब छह महीने तक राशि नहीं लौटाई तब ओमप्रकाश ने चेक से भुगतान के लिए चेक एसबीआइ में जमा कर दिया। बैंक खाते में पर्याप्त राशि ना होने के कारण चेक बाउंस हो गया। चेक बाउंस होने के बाद ओमप्रकश जांगड़े ने अपने वकील के जरिए सचिन को लीगल नोटिस भेजा। नौ जुलाई 2021 को नोटिस सचिन ने प्राप्त कर लिया। नोटिस का जवाब भी नहीं दिया और राशि का भुगतान भी नहीं किया। ओमप्रकाश ने वकील के जरिए जेएमएफसी प्रथम श्रेणी के कोर्ट में परिवाद पेश किया।
कोर्ट के समक्ष ओमप्रकाश ने बयान दिया कि सचिन के साथ उसका मित्रतापूर्ण मधुर संबंध है। पारिवारिक कार्य हेतु रकम की आवश्यकता होना बताते हुये पांच लाख 17 हजार) स्र्पये की मांग की। मित्रता पर भरोसा करते हुए उसने रकम दे दी। चेक बाउंस हो गया है। राशि लौटाने में सचिन अब आनाकानी कर रहा है. सचिन ने कोर्ट के समक्ष गवाही देते हुए कहा कि उसने वाहन के संबंध में रवि जायसवाल को 2 लाख 20 हजार स्र्पये का चेक दिया था जिसे ओमप्रकाश ने हासिल कर लिया और बैंक में जमा कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसला में लिखा है कि दस्तावेजों के आधार पर यह स्थापित होता है कि अभियुक्त ने परिवादी को विधिवत प्रवर्तनीय ऋण या अन्य दायित्व के लिये चेक दिया था।
लिहाजा अभियुक्त सचिन कुमार को धारा 138 अधिनियम के आरोप में दोषसिद्ध किया जाता है। चेक की राशि को ध्यान में रखते हुये तथा प्रकरण की लंबित अवस्था पर विचार करने उपरांत क्षतिपूर्ति के रूप में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 (3) के तहत अभियुक्त छ: लाख रूपये परिवादी को प्रदान करेगा। क्षतिपूर्ति की राशि के व्यतिक्रम में अभियुक्त को मूल दंडादेश के अतिरिक्त एक महीने का कारावास भी भुगतना पड़ेगा।