कर्मचारियों के पेंशन राशि से बनवा दिया भवन, आडिटोरियम
रायपुर (जसेरि)। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में पूर्व कुलपति के कार्यकाल में पेंशन राशि का इस्तेमाल कर्मचारियों, शिक्षकों व अधिकारियों के पेंशन राशि देने, यात्रा भत्ता, अध्येतावृत्तियों, छात्रवृत्तियों, अध्ययनवृत्तियों और अन्य पुरस्कारों में कर ने के बजाय नियम विरूद्ध नए भवन, सडक़, आडिटोरियम आदि का निर्माण के लिए किया गया, जबकि नियमत: ऐसा नहीं किया जा सकता है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय (इंकृवि), रायपुर में पेंशन की राशि मनमानी तरीके से केवल निर्माण कार्य में खर्च करने का मामला सामने आया है। पिछले सालों में विश्वविद्यालय के कर्मचारी-शिक्षकों की पेंशन की राशि प्राप्ति मद (रिसीप्ट एकाउंट) से निकालकर इससे बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बनाई गई हैं। इसके अलावा सडक़ मरम्मत, म्यूजियम और आडिटोरियम बनाने में करीब 40 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए हैं।
प्राप्ति मद में 10 फीसद राशि अन्य मदों से बाकी पेंशन की राशि होती है। इतनी बड़ी राशि खर्च होने के बाद विश्वविद्यालय की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है। पूरे मामले में पूर्व कुलपति डा. एसके पाटिल समेत तत्कालीन कुलसचिव, लेखा नियंत्रक, उप लेखा नियंत्रक, प्रस्तुतकर्ता अधिकारी आदि घेरे में हैं। कर्मचारियों और प्राध्यापकों का आरोप है कि प्राप्ति मद से पेंशन की राशि का इस्तेमाल केवल निर्माण कार्य में करके पिछले सालों में कमीशनखोरी की गई है।विश्वविद्यालय के कर्मचारियों-अधिकारियों को अंदेशा है कि अगले दो साल विवि सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों, सहायक प्राध्यापकों, प्राध्यापकों को पेंशन देने के लायक नहीं रहेगा। बताया जाता है कि यहां रिसर्च का अनुदान भी बिजली के बिल जमा करने के लिए किया जा रहा है। प्राप्ति मद यह एक विश्वविद्यालय निधि का खाता है, जिसमें विश्वविद्यालय में केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा किए गए अनुदान एवं विवि के समस्त स्रोतों में विद्यार्थियों की फीस, कृषि फार्म से आय, तकनीकी कार्यों से प्राप्त आय, दान इत्यादि शामिल हैं। इस राशि का उपयोग वित्तीय संकट में होता है।
लेखा-जोखा नियंत्रक के प्रस्ताव को कुलपति विवि के बोर्ड में पास कराते हैं फिर खर्च किया जाता है।
पेंशन में अंशदान कटौती को लेकर सरकार ने मांगी जानकारी। इधर कृषि विकास एवं किसान कल्याण तथा जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने कृषि विवि के कुलसचिव को पत्र लिखकर पेंशन नियम के अंतर्गत पेंशन दायित्व को लेकर जानकारी मांगी है। 29 नवंबर, 2021 को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि प्रोविडेंट फंड, ग्रेच्युटी इत्यादि के संबंधित अध्याय पांच के अनुसार नहीं है, जिसमें विश्वविद्यालय का अंशदान एवं कर्मचारियों के अंशदान की कटौती के बारे में परिभाषित किया गया है। इस नियम के अनुसार विश्वविद्यालय का अंशदान एवं उतनी ही राशि का अंशदान संबंधित कर्मचारियों के वेतन से कटौती की जानी चाहिए, जबकि विश्वविद्यालय द्वारा विश्वविद्यालय के अंशदान राशि की ही कटौती वेतन से की जा रही है, कर्मचारी के अंशदान की कटौती नहीं की जा रही है। नियम के प्रविधान के अनुसार कटौती किन कारणों से नहीं की जा रही है और कब से नहीं की जा रही है? स्पष्ट औचित्य के साथ प्रस्ताव उपलब्ध कराने को कहा गया है।प्राप्ति मद का किस तरह इस्तेमाल किया गया है, इसकी जांच कराएंगे और आगे की कार्रवाई तय की जाएगी। - जीके निर्माम, कुलसचिव, इंकृवि, रायपुर
प्रकरण संज्ञान में नहीं
यह प्रकरण मेरे संज्ञान में नहीं है। जब मैं कुलसचिव था, तब इस तरह राशि खर्च करने का प्रस्ताव मेरे समक्ष प्रस्तुत नहीं किया गया।
-प्रभाकर सिंह, पूर्व कुलसचिव, इंकृवि, रायपुर
डिटेल जानकारी नही
इस मामले में मुझे अभी डिटेल जानकारी नहीं है, मामले की जानकारी लेंगे।
- डा. एसएस सेंगर, कार्यवाहक कुलपति, इंकृवि, रायपुर
खर्च करने का फैलाया जा रहा भ्रम
इस तरह से पेंशन की राशि खर्च करने का भ्रम फैलाया जा रहा है। यह आरोप गलत है। कोई भी राशि खर्च करने से पहले बोर्ड की सहमति ली जाती है।
-डा. एसके पाटिल, पूर्व कुलपति, इंकृवि, रायपुर
नहीं ली गई जानकारी
जबसे शिक्षकों को पता चला है कि भविष्य में पेंशन मिलने से संकट खड़ा होने वाला है, तब से संघ का दबाव आ रहा है। इतनी बड़ी राशि जिनकी सैलरी से काटी गई है, उसे खर्च करने से पहले न तो किसी सहमति ली गई और न ही जानकारी दी गई है। अब कर्मचारियों-अधिकारियों को अपने भविष्य को लेकर चिंता और रोष है।
- गजेंद्र चंद्राकर, महासचिव शिक्षक संघ, इंकृवि, रायपुर