पावर कंपनी मुख्यालय का नया रायपुर में स्थानांतरण पर तत्काल रोक लगाएं

Update: 2025-02-03 05:57 GMT

पावर कंपनी मुख्यालय को नवा रायपुर स्थानांतरित कर जनता पर 500 करोड़ के बोझ बढ़ाने की साजिश

छत्तीसगढ़ रिटायर्ड पावर इंजीनियर्स आफिसर्स एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र

रायपुर। राज्य विद्युत कंपनियों के मुख्यालय को नया रायपुर स्थानांतरित किये जाने बावत् स्थापित परंपराओं एवं प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हुए आनन फानन में कार्यवाही की जा रही है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार हालांकि यह खर्च लगभग 250 करोड़ का बताया जा रहा है. परंतु सभी जानते हैं कि वास्तव में यह खर्च कम से कम 500 करोड़ से ज्यादा होगा। छ.ग. रिटायर्ड पावर इंजीनियर्स आफिसर्स एसोसिएशन के महासचिव एस. जी. ओक ने सीएम विष्णुदेव साय को पत्र लिखकर इस तरह के अनावश्य़क भार बढ़ाने कार्य पर तुरंत रोक लगाने की अपील की है।

अनुपयोगी भवन के स्थान पर नया बहुमंजिला कार्यालय भवन बनाए

बिजली कंपनी स्वयं के अपने वर्तमान परिसर में पर्याप्त उपलब्धता वर्तमान गुख्यालय परिसर विद्युत कंपनियों के स्वयं के आधिपत्य में है एवं यह पूरी तरह से पर्याप्त है। पिछले कुछ वर्षों में परिसर कुछ कार्यालय भवन बनाये गये हैं। हाल ही में लगभग 2 करोड़ की लागत से उत्पादन कंपनी के तीन कार्यालय भवनों का उद्घाटन हुआ है एवं ई.आई.टी.सी. के एक भवन का रूपांतरण भी हुआ हैं। अगर कार्यालयों हेतु और भी स्थान की आवश्यकता है तो अभी भी परिसर में कुछ अत्यंत पुराने अनुपयोगी भवन हैं जिनके स्थान पर नया बहुमंजिला कार्यालय भवन निर्माण किया जा सकता है।

-उपभोक्ताओं पर बोझ डालना न्याय संगत नहीं

अनावश्यक वित्तीय बोझ जो कार्य मौजूदा परिसर में अधिकतम मात्र 05 करोड़ रुपये में आसानी से संभव है उसके लिये नवा रायपुर में लगभग 500 करोड़ रुपये खर्च कर के उपभोक्ताओं पर बोझ डालना न केवल अनावश्यक है बल्कि गैर जिम्मेदाराना भी है। इस संबंध में यह महत्वपूर्ण है कि वर्तमान में उत्पादन कंपनी एवं पारेषण कंपनी के लाभ को समायोजित करने के बाद भी राज्य विद्युत वितरण कंपनी 4500 करोड़ से अधिक के घाटे में है। जिसकी प्रतिपूर्ति आगामी टैरिफ से प्रस्तावित है। यही नहीं राज्य शासन भी धन संकट से गुजर रहा है, जिसके कारण विद्युत कंपनियों को देय सब्सिडी का भुगतान भी नियमानुसार नहीं हो पाया है। ऐसे में न तो नये भवन का खर्च टैरिफ पर आरोपित करना उचित होगा न ही इस हेतु शासन के द्वारा टैक्स पेयर्स के पैसे से कैपिटल सब्सिडी दिया जाना उचित होगा ।

प्रस्तावित स्थानांतरण से सभी की कठिनाई बढ़ेगी

मुख्यालय स्थानांतरण से असुविधा - वर्तमान मुख्यालय परिसर तक पहुँचना कार्मिकों / सेवा प्रदाताओं / उपभोक्ताओं / सेवानिवृत्त कार्मिकों सभी के लिये सुविधाजनक है जबकि प्रस्तावित स्थानांतरण से सभी की कठिनाई बढ़ जायेगी महत्वपूर्ण यह भी है कि प्रतिदिन विभागीय कार्यों से विभिन्न संयंत्रों एवं जिलों से दर्जनों कर्मचारी मुख्यालय आते हैं। नवा रायपुर में मुख्यालय स्थानांतरित किये जाने के बाद उनके आने जाने के लिए अलग से व्यवस्था करनी होगी जिसमें समय और साधन दोनों व्यर्थ होंगें।

अंधेरे में टेंडर जारी, भविष्य की कोई योजना नहीं

वर्तमान परिसर की आज की तारीख में 100 करोड़ से अधिक होगी, परंतु आश्चर्य कि जो अधिकारी नवा रायपुर में नये भवन का टेंडर जारी किये हैं, उन्हें खुद नहीं पता कि नया भवन बनने के बाद मौजूदा परिसर का क्या किया जाएगा। बाये हाथ को पता नहीं कि दाया हाथ क्या कर रहा हैं। यह भी जो ऊत्पादन कंपनी अपने कार्यालयों की रंगाई-पोताई के लिए भी पारेषण कंपनी पर निर्भर हैं, वह नये मुख्यालय भवन के निर्माण की जवाबदारी ली हुयी है, वो भी तब जबकि यह कंपनी अपने नये उत्पादन गृहों के निर्माण के लिये कुछ नहीं कर पा रही है। वहीं दूसरी ओर जिस पारेषण कंपनी को मुख्यालय भवन प्रणाली का अनुभव है अलग-थलग है। इस सब से चारों तरफ बहुत तरह की चर्चाएं गर्म है।

मुख्यालय स्थानांतरण विद्युत अधिनियम की भावना के विपरीत मूलतः विद्युत क्षेत्र को शासन के प्रभाव से परे एवं स्वतंत्र नियामक के अंतर्गत लाने के उद्देश्य से लाया गया था। आश्चर्य की बात हैं कि छ.ग.रा.वि.कं. का उच्च प्रबंधन अधिनियम की भावना के विपरीत नियामक आयोग जो की रायपुर शहर में स्थित हैं, उससे दूर और मंत्रालय जो कि नवा रायपुर में स्थित हैं, उसके पास जाने की कवायद में लगा हैं। संभवतः इसका एक मात्र उद्देश्य सत्ता केंद्रों को खुश करने का हैं। मुख्यमंत्री आप स्वयं समझ सकते है कि प्रदेश के आम गरीब जनों से सीधे जुड़े होने के नाते समझ सकते हैं, कि मात्र एक दो उच्च अधिकारीयों की सुविधा के लिए प्रदेश की जनता पर 500 करोड़ का बोझ लादना कतई न्यायोचित नहीं हैं।

देश में कहीं भी मुख्यालय मंत्रालय परिक्षेत्र में नहीं हैं

उपरोक्त संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि पूरे भारतवर्ष में किसी भी प्रदेश में विद्युत मंडल का मुख्यालय मंत्रालय परिक्षेत्र में नहीं है। कई राज्यों में तो दूसरे शहरों तक में है । मध्यप्रदेश में भोपाल के स्थान पर जबलपुर, गुजरात में गाँधीनगर के स्थान पर वड़ोदरा, पंजाब में चंडीगढ़ के स्थान पर पटियाला, हरियाणा में चंडीगढ़ के स्थान पर पंचकुला में पूर्ववर्ती विद्युत मंडलों (वर्तमान में उत्तरवती कंपनियों) का मुख्यालय है जहाँ पर उसी शहर में है, वहाँ भी मंत्रालय परिक्षेत्र में न होकर शहर के अन्य हिस्से में है। ऐसे में मंत्रालय के निकट विद्युत कंपनियों के मुख्यालय होने का तर्क बेबुनियाद है।

आश्चर्यजनक बात यह भी है कि किसी भी अधिकारी के पास इसका उत्तर नहीं है। कि प्रस्तावित स्थानांतरण का उद्देश्य क्या है ? केवल एक ही जवाब है कि जो कुछ किया जा रहा है वह ऊपर से आदेश के तहत किया जा रहा है। किसी को भी यह नहीं पता कि आखिर " ऊपर से आदेश" का अर्थ क्या है ।

एसो. ने कहा है कि अगर बिजली कंपनियों के पास 500 करोड़ रुपये अतिरिक्त उपलब्ध ही हैं, तो बेहतर होगा कि या तो यह राशि पेंशन फंड में जमा करा दी जाये या विद्युत कर्मियों को प्रोत्साहन के रूप में दी जाये या विद्युत उपभोक्ताओं के हित में खर्च की जाये, परंतु अनावश्यक खर्च न की जाये ।

उपरोक्त परिपेक्ष्य में बिजली कंपनियों का प्रस्तावित मुख्यालय स्थानांतरण निश्चित रूप से न केवल सभी के लिये कष्टप्रद है वरन् शासन की छवि के लिये हानिकारक भी है, कृपया तत्काल हस्तक्षेप कर जिम्मेदार अधिकारियों को मुख्यालय स्थानांतरण बाबत् चल रही समस्त गतिविधियों पर अविलम्ब रोक लगाने के लिये आदेशित करें ताकि एक ओर उपभोक्ता हितों की रक्षा की जा सके वहीं दूसरी ओर शासन की छवि धूमिल होने से बचाई जा सके।

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