पत्नी को मायके नहीं जाने दे रहा था पति, इस याचिका पर हाईकोर्ट में हुई सुनवाई

CG NEWS

Update: 2022-02-19 04:15 GMT

बिलासपुर। परिवार न्यायालय, कोरबा के फैसले के खिलाफ पेश याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा कि पत्नी को चार साल तक मायके नहीं जाने देना क्रूरता की श्रेणी में आता है। पत्नी के प्रति क्रूरता साबित होने पर पति दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना का दावा नहीं कर सकता है। कोरबा निवासी मोहम्मद इस्लाम का निकाह सिंगरोली मध्य प्रदेश में रहने वाली नाज बानो से 28 जून 2011 को हुआ था। करीब तीन साल बाद पहली संतान हुई। उसके बाद चार सालों तक पति ने नाज को काफी प्रताड़ित किया। पत्नी को मायके भी नहीं जाने दिया। जबकि मायके वाले बार-बार गुजारिश करते रहे।

समझाइश के बाद भी इस्लाम का बर्ताव नहीं बदला। इस बीच नाज ने अपने घर फोन कर बताया कि उसकी तबीयत खराब है। मायके वाले लेने पहुंचे तो पति ने उनको नाज से मिलने भी नहीं दिया। तब वे बलपूर्वक अंदर गए। उन्होंने देखा कि नाज की तबीयत काफी खराब है और वह शारीरिक रूप से कमजोर हो चुकी है। उन्होंने नाज को घर ले जाने की बात की तो पति ने विरोध करते हुए मारपीट की। उसके बाद पुलिस की सहायता और समझाइश से पत्नी को मायके ले जाया गया।

इसके बाद पत्नी के न लौटने पर इस्लाम ने दाम्पत्य जीवन की पुनर्स्थापना के लिए कुटुम्ब न्यायालय कोरबा में आवदेन लगाया। इसे खारिज कर दिया गया। इसकी अपील हाई कोर्ट में की गई। जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस रजनी दुबे की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई हुई। प्रकरण में पत्नी का पक्ष अधिवक्ता फैज काजी ने रखा।

कोर्ट ने सभी पक्षों का तर्क सुनने के बाद माना कि पति द्वारा पत्नी को चार सालों तक मायके न जाने देना और पत्नी द्वारा पति पर मारपीट का आरोप लगाना क्रूरता की श्रेणी में आएगा। यह दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना केदावे के विस्र्द्ध वैध प्रतिरक्षा है। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने पति की अपील को खारिज करते हुए परिवार न्यायालय कोरबा के निर्णय को बरकरार रखा है।


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