चल पड़ी विकास की गाड़ी, चला रही कोरबा की नारी...

Update: 2021-11-14 12:30 GMT

कोरबा। मानव सभ्यताओं के विकास में महिलाओं की भागीदारी पुरातन काल से लेकर आज भी जारी है और जब तक जीवन है तब तक जीवनदायिनी मातृशक्ति ही इसकी संवाहक बनी रहेगी। कोरबा जिले में शासन की महत्वपूर्ण योजनाओं से जुड़कर महिलाओं ने विकास की गाड़ी को गति दे दी है। गांवो से लेकर शहरों तक, घर-गृहस्थी से लेकर आजीविका तक हर क्षेत्र में कोरबा की महिलाएं पुरूषों के साथ कांधे से कांधा मिलाकर अपने और अपने जिले-प्रदेश की उत्तरोत्तर प्रगति में योगदान दे रहीं हैं। महिलाओं की सहनशीलता, संवदेनशीलता और कर्मठता ने ही कोरोना जैसी महामारी से लड़ने का हौसला दिया है और छोटे-छोटे अवसरों को आजीविका के बड़े साधन के रूप में विकसित होने का मौका भी प्रदान किया है। सरकार की गोबर खरीदी योजना और गोबर से गमले, आकर्षक मूर्तियांे, कलाकृतियों से लेकर अगरबत्ती और गोबर काष्ठ बनाना जैसे कामों से जुड़कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तेज करने का महिलाओं का प्रयास इसका जीवंत उदाहरण है। छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे देश में बिजली उत्पादन के लिए जाने जाने वाले कोरबा जिले को पर्यटन के मानचित्र पर भी अब सशक्त पहचान मिल गई है, परंतु जिले की यह पहचान किसी और के कारण नहीं बल्कि यहां की मातृ शक्ति से है। टीम कोरबा में शामिल प्रशासनिक अधिकारियों-कर्मचारियों के साथ-साथ जिले के महिला स्व सहायता समूहों की सदस्यों का भी इसमें बड़ा योगदान है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने भी जिले में महिलाओं को मजबूत और अधिकार सम्पन्न बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। महिला स्वास्थ्य या पोषण का मामला हो, रोजगार और आजीविका से जुड़ने की गतिविधियां, खेल-कूद हो या खेती-किसानी और पशुपालन... हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी ने शासकीय योजनाओं और कार्यक्रमों की सफलता तय की है।

राज्य सरकार ने जब नरवा-गरवा-घुरवा-बाड़ी विकास कार्यक्रम शुरू किया तो कोरबा जिले में इसके क्रियान्वयन की मैदानी स्तर पर जिम्मेदारी महिलाओं के हिस्से आई। गौठान समितियों के माध्यम से गौठानों के संचालन से लेकर गौठानों को आजीविका के बहुआयामी केन्द्र के रूप में विकसित करने में महिलाओं का बड़ा योगदान रहा। कोरबा जिले में संचालित लगभग 250 गौठानों का पूरा प्रबंधन महिलाओं के हाथ में है। इन गौठानों मंे डे-केयर के रूप में पशुओं की देखभाल के साथ-साथ वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन, गोबर खरीदी, गोबर से विभिन्न उत्पादों का निर्माण, मुर्गी पालन, रेशम धागाकरण, मछली पालन, सब्जी उत्पादन, चारा उत्पादन जैसी सभी गतिविधियां महिला स्व सहायता समूहों की सदस्यो द्वारा संचालित हैं। गौठानों में चारागाह के प्रबंधन से लेकर सब्जी उत्पादन का काम भी महिला समूह ही कर रहे हैं। 91 गौठानों को इन महिलाओं ने ही मल्टी एक्टिविटी सेंटर के रूप में विकसित कर दिया है। 717 महिला स्वसहायता समूहों द्वारा इन मल्टी एक्टिविटी सेंटरों में आजीविका गतिविधियों का संचालन किया जा रहा है। इससे इन महिलाओं को अच्छी आय भी हो जा रही है। पिछले वर्ष 44 गौठानों में 179 एकड़ रकबे में चारागाह विकसित किए गए हैं जिससे 54 हजार से अधिक पशुओं को खाने के लिए हरा चारा मिला है।

मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की महत्वकांक्षी योजनाओं में से एक गोधन न्याय योजना भी है। कोरबा जिले में इस योजना के संचालन का पूरा दारोमदार महिला स्वसहायता समूहों पर ही टिका है। 215 गौठानों में अब तक डेढ़ लाख क्ंिवटल से अधिक गोबर की खरीदी की जा चुकी है। इसके बदले 10 हजार से अधिक गोबर संग्राहकों को लगभग तीन करोड़ रूपए का भुगतान भी हो गया है। इसमें से करीब सवा करोड़ रूपए सीधे समूह की महिलाओं को मिला है। खरीदे गए गोबर से महिलाओं ने गौठानों में लगभग 29 हजार क्ंिवटल वर्मी खाद बनाया है जिसकी बिक्री से तीन करोड़ 72 लाख रूपए मिले हैं। स्वसहायता समूहों की तीन हजार 712 महिलाएं इससे लाभान्वित हुई हैं।

कोरबा जिले में नौ हजार 906 महिला स्व सहायता समूहों के माध्यम से लगभग एक लाख 15 हजार महिलाओं का एक बड़ा और मजबूत संगठन है। हरे कृष्णा स्व सहायता समूह, धन लक्ष्मी स्व सहायता समूह, पूजा स्व सहायता समूह, सरस्वती स्व सहायता समूह, साईं स्व सहायता समूह, बेबी स्व सहायता समूह, जय संतोषी मां स्व सहायता समूह और ऐसे मातृ शक्ति प्रेरित नामों के कई समूह कोरबा जिले को महिला सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ाने में लगे हैं। लगभग 53 हजार बाड़ियां भी जिले में विकसित की गई हैं। 124 सामुदायिक बाड़ियां चारागाहों में और 56 सामुदायिक बाड़ियां वन अधिकार पत्रों से मिली भूमि पर भी बनाई जा चुकी हैं। इन बाड़ियों में दो हजार से अधिक किसान और महिलाएं सब्जी उत्पादन में लगीं है। छह हजार से अधिक परिवारों को संतुलित पोषण आहार के साथ-साथ महिला समूहों की सदस्यों को औसतन तीन से साढ़े तीन हजार रूपए प्रतिमाह की आय भी इन बाड़ियों से हो रही है।

कोरबा जिले में सतरेंगा पर्यटन स्थल के संवर्धन और उसे अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने में महिलाओं की विशेष भूमिका रही है। महिला समूहों द्वारा यहां आने वाले पर्यटकों के खाने-पीने के लिए सर्वसुविधा युक्त सतरेंगा कैफेटेरिया का संचालन किया जा रहा है। इडली, दोसा, चाउमीन के साथ छत्तीसगढ़ के पारंपरिक फरा, चीला, ठेठरी-खुर्मी व्यंजनों से पर्यटकों का पेट ही नहीं बल्कि मन भी संतृप्त हो रहा है। सतरेंगा में संचालित होने वाले रिसॉर्ट में भी स्थानीय युवतियों को ही काम पर रखा गया है। कैफेटेरिया से लेकर साफ-सफाई तक की समितियों मे महिलाओं को शामिल कर पर्यटन से रोजगार की अवधारणा को सतरेंगा मंे ही मूर्तरूप मिला है। सतरेंगा को पर्यटको के लिए विकसित कर देने से लगभग 30 स्थानीय महिला स्व सहायता समूहों की 250 से अधिक महिलाओं को आजीविका के अलग-अलग साधन मिले हैं और वे हर महीने पांच हजार से लेकर 10 हजार रूपए तक की आय प्राप्त कर रहीं हैं।

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