हनुमान जी में सेवा, भक्ति और ज्ञान का भंडार - अरोड़ा

Update: 2023-04-09 02:32 GMT

महासमुंद। बालयोगी विष्णु अरोड़ा ने कहा कि भगवान हनुमान जी न केवल तन और मन से शक्तिशाली हैं बल्कि कुशाग्र बुद्धि वाले हैं। तन की पवित्रता सेवा कर्म से, मन की पवित्रता भक्ति से तथा बुद्धि की पवित्रता ज्ञान से होती है। हनुमान जी की चरित्र में सेवा, भक्ति व ज्ञान तीनों भाव दिखता है। जीवन में सफलता के लिए हनुमान जी को आदर्श बनाना चाहिए।

दादाबाड़ा में आयोजित श्री मारूति महायज्ञ के तीसरे दिन आज शनिवार को प्रवर्चनकर्ता बालयोगी विष्णु अरोड़ा ने हुनमान चरित्र पर व्याख्यान देते हुए कहा कि परमात्मा ने हमें तन, मन और बुद्धि दी है। तन से ज्यादा शक्तिशाली मन होता है। जहां तन की शक्ति खत्म होती है वहीं से मन की शक्ति प्रारंभ होती है। वहीं अगर बुद्धि नहीं होगी तो हम मनुष्य नहीं कहलाएंगे। उन्होंने कहा कि तन की पवित्रता सेवा कर्म से, मन की पवित्रता भक्ति से तथा बुद्धि की पवित्रता ज्ञान से होती है। गीता में भी इन तीनों चीजों का वर्णन मिलता है। हनुमान जी हमारे आराध्य इसलिए हैं कि हनुमान जी के चरित्र में तीनों का भाव देखने को मिलता है। लिहाजा उन्हें अपना आदर्श बनाना चािहए। बालयोगी अरोड़ा जी ने शास्त्रों व ग्रंथों का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारे ऋषि-मुनियों ने हनुमान जी की बुद्धि की तुलना देवताओं के गुरू बृहस्पति से की है और ब्रम्हा बनने का योग्य भी समझा है। उन्होंने रामायण के एक प्रसंग के बारे में बताते हुए कहा कि जब भगवान राम और हनुमान जी मिले तो राम जी ने साधारण सवाल पूछा कि आप कौन हो तो हनुमान जी ने इस साधारण सवाल का अलौकिक जवाब दिया। हनुमान जी ने कहा कि अगर आप देह की दृष्टि से सवाल कर रहे हैं तो मैं सेवक हूं और आप मेरे स्वामी, अगर जीव की दृष्टि से सवाल कर रहे हैं तो मैं जीव हूं और आप ब्रम्हा और अगर आप आत्मदृष्टि से सवाल कर रहे हैं तो जो आत्मा मुझमें हैं वहीं आत्मा आप में हैं। इससे हनुमान जी के अदभूत ज्ञान की झलक मिलती है। उन्होंने भगवान हनुमान जी के जन्म की पहल घटना का जिक्र करते हुए कहा कि हनुमान जी को भूख लगनेे पर सूर्य को निगल लिया था। ग्रंथों के अनुसार जब हनुमान जी को खाना खिलाने के लिए उनकी माता अंजना फल लाने चली गई। जब बालक हनुमान को भूख लगी तो सूर्य को फल समझकर निगल लिया। उसी समयय राहू, सूर्य पर ग्रहण लगाना चाहते थे। सूर्य के नहीं मिलने पर राहू, इंद्र के पास गए और बताया कि सूर्य का कही पता नहीं चल रहा है। तब इंद्र ने हनुमान जी पर व्रज से प्रहार किया। इससे वे नीचे गिर गए और उनकी ठुड्डी टूट गई। पवन देव ने जब अपने पुत्र हनुमान की यह दशा देखी तो उन्हें क्रोध आ गया और अपनी गति रोक दी। इससे पृथ्वी में हाहाकर मच गया। बाद इसके सभी देवता ब्रम्हा जी के साथ गए और हनुमान जी को आशीर्वाद देने के साथ ही कई वरदान दिए गए। इस प्रसंग के माध्यम से पं अरोड़ा जी ने तार्किक बाते रखते हुए कहा कि हनुमान जी का ज्ञान रूपी सूर्य को पांखड़ियों से बचाने का लक्ष्य रहा था। इसलिए इंद्र ने व्रज का प्रहार किया तो उन्हें क्षमा मांगनी पड़ी। राहु और हनुमान जी दोनों ने सूर्य को मुंह पर रखा लेकिनराहू असुर था। उन्होंने मन की ताकत बताते हुए कहा कि सच्चे मन से साधना करने से परमात्मा की प्राप्ति होती है। इसके लिए उन्होंने महाराज खटवांग का उदाहरण देते हुए बताया कि एक बार महाराज खटवांग जी असूरों से युद्ध कर रहे थे तभी देवताओं ने उन्हें बताया कि उनके जीवन का दो घड़ी ही शेष है। बाद इसके वे तत्काल सच्चे मन से साधना में जुट गए और उन्हें परमात्मा को प्राप्त कर लिया। जीवन के किसी भी क्षेत्र में सच्चे मन से कर्म करने से मंजिल मिलना तय होता है। जहां मन साथ देता है वहां सफलता की संभावना बढ़ जाती है। प्रवचन उपरांत यजमान विनोद सेवनलाल चंद्राकर सहित उपस्थित धर्मप्रेमी विशेष आरती में शामिल हुए।

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