अक्षय तृतीया पर विशेष: सुराही में समायें पक्षियों के सुर

Update: 2021-05-11 12:37 GMT

विजय मिश्रा

रायपुर। सृष्टिकी रचना के साथ ही मनुष्य का अटूट रिश्ता पेड़-पौधों , जीव-जन्तुओं और पशु-पक्षियों के साथ जुड़ा हुआ है। ऐसी कहावत प्रचलित है कि मुसीबत के समय मनुष्य की परछाई भी उसका साथ छोड़ देती है, किंतु जनमानस में अनेक लोककथायें प्रचलित है, जिनमें पशु-पक्षियों ने प्राण छुटने तक मनुष्य का साथ दिया। ऐसी प्रेरक और मार्मिक कथाओं को जानने सुनने के बावजूद मानव समुदाय, पशु-पक्षियों के प्रति अत्याचार करने से बाज नहीं आता है।

ऐसे ही अत्याचार का एक बड़ा उदाहरण खुबसूरत पक्षियों को पिंजरे में कैद करके रखना भी है। पक्षियों को पिंजरे में कैद करते समय मतिभ्रष्ट मनुष्य भूल जाता है कि खुले आकाश में बिचरते हुए खगवृंद अनेक दृष्टि से मानव समुदाय के लिये बहुपयोगी है। मानव मित्र ये पक्षी फसलों के कीड़ों को खाकर न केवल फसलों की रक्षा करते हैं, अपितु फूलों के परागकण को एक फूल से दूसरे फूल में पहुंचाने का भी कार्य करते हैं फलस्वरूप फल और बीज का निर्माण होता है। फल खाकर उसके भीतर निहीत बीजो का विकरण दूर-दूर तक बीट के माध्यम से पक्षी ही करते है। ऐसे कार्य पक्षियों के बिना संभव नहीं है। मानव समुदाय की जिंदगी को खुशनुमा बनाने में पक्षियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसलिये विद्वानों का कहना है कि ''परिंदे जिनके करीब होते हैं, वे बड़े खुशनसीब होते हैं''।

इन अर्थो में कह सकते है कि मनुष्य के तन-मन-धन सब को संवारने में पक्षी परिवार का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसीलिए बुद्धिमत्ता इसी में है कि पक्षियों को पिंजरे में कैद करके रखने के बजाय आंगन में दाना पानी रखना आरंभ करें। साथ ही साथ घर आंगन आस-पास उगे वृक्षों में सुराही को बांधकर लटका दे। ऐसे लटके हुये सुराही में गौरेया, गिलहरी, उल्लू, पहाड़ी मैना, जैसे अनेक प्राणी बड़ी सहजता से अपना बसेरा बना लेते हैं। ऐसे में बिना कैद किये हुये भी आसपास चहकते हुए पक्षी आपके परिवार के सदस्य बन जाते हैं। धरा को हरा बनाने का संकल्प लेते हुये धरती के आभूषण पशु, पक्षी, पेड़ पौधे की हिफाजत करें।

छत्तीसगढ़ में बैशाख शुक्ल की तृतीया (इस वर्ष 14 मई )को अक्षय तृतीया (अक्ती) का पर्व मनाया जाता है। इस दिन मिट्टी के घड़े अथवा सुराही दान में देने की प्रथा प्रचलित है। इस पर्व पर मटके, सुराही दान देने का उद्देश्य यहीं है कि दीन हीन निर्धनजनों का परिवार ग्रीष्मकाल में सहजता से शीतल जल से प्यास बुझा सके। इस पर्व पर दो चार सुराही पक्षियों के बसेरा बनाने के लिये पेड़-पौधों, घरों की मुंडेर पर लटका दें। गर्मी बीत जाने के बाद प्रायः सुराही मटके को अनुपयोगी मानकर फेक दिया जाता है। इन्हे भी सुरक्षित स्थान पर लटका देने से यह भी पक्षियों का बसेरा बन सकते है। याद रखें ये सभी कार्य किसी ईबादत से कम नहीं है।

घर-आंगन में लटके ऐसे सुराहियों में गौरेया को घर बनाना विशेष पसंद है। बचपन में देखा करता था घर की दीवारों पर लगे फोटो फ्रेम के पीछे बड़ी सहजता-निर्भयता से गौरेया घर बना लेती थी। अब तो ऐसी स्थिति में लोग घर को कचरा और खराब कर रही है, कहते हुये गौरेया को पनाह देने में हिचकते हैं। कई ऐसी घटनायें भी देखने को मिली है जब घर के अंदर घूमते हुये पॅखे से टकरा कर गौरेया की जान चली गई है। गाॅव शहरों में कटते पेड़, खेतों में कीटनाशक दवाईयों का छिड़काव, खेतों को प्लाट में बदलने की कार्यवाही से गाॅव शहरों में क्रांकिटों का जाल बिछता चला जा रहा है, जिससे पक्षियों की वंश वृद्धि लगभग रूक सी गई है। अतः कहना होगा कि ''थम गई है पक्षियों की ताल अपने गाॅव में, बह रहा है क्रांकिटों का जाल अपने गाॅव में''।

पक्षियों से दूर होते इंसान की जिंदगी आज नीरस हो चली है। कोयल, कौआ, फाक्ता, बुलबुल, कबूतर जैसे पक्षियों से बढ़ती दूरी मानव समुदाय के लिए अनेक अर्थों में हानिकारक सिद्ध हो रही है। लुप्त होते पक्षियों को बचाने का उत्तम उपाय यही है कि उन्हें पिजरें में कैद करना तत्काल बंद कर दें और अपने करीब रखने के लिए घर आंगन के पेड़ पौधे, मुंडेर पर सुराही, मटकी बांधने के साथ ही हर सुबह दाना-पानी देना आंरभ करें। इससे बारहों महीना चैबीस घण्टे पक्षियों के कलरव से आपका मन आनंदित होगा और पक्षियाॅ भी आपको आशीष देते हुये कहेंगे- समाज उसे ही पूजता है जो अपने लिए ही नहीं दूसरों के लिए भी जीता है।

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