रायपुर। वीगंस ऑफछत्तीसगढ़, राज्य के विभिन्न शहरों से पशु अधिकार कार्यकर्ताओं समूह एवं शहर के सामाजिक कार्यकर्ता मरीन ड्राइव, तेलीबांधा, रायपुर में पशु अधिकारों और वीगन जीवन शैली के बारे में जन जागरूकता फैलाने एकत्रित हुए । ''फॉरगॉटन मदर्स'' वीगन-वाद को बढ़ावा देने के लिय एक अनूठा अभियान है एवं इसका मूल उद्देश्य प्रजाति आधारित भेदभाव यानी 'प्रजातिवाद' के मुद्दे को उजागर करना है । प्रजातिवाद,शोषण का सबसे मूलभूत प्रकार है जहाँ इंसानों द्वारा दूसरी प्रजाति के जानवरों का शोषण करने को सामान्य मान लिया गया है। इस मदर्स डे पर अखिल भारतीय आयोजन, वीगन इंडिया मूवमेंट के बैनर तले देश भर के 18 शहरों से सैकड़ों पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस अभियान का संचालन किया एवं वे सड़कों उतरे ताकि दुनिया के सबसे ज्यादा शोषित और उपेक्षित वर्ग यानी "जानवरों" पर हो रहे शोषण की असलियत समाज को दिखा सके।
ऐसी कई भावनाए है जो केवल मनुष्यो तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उन जानवरो द्वारा भी अनुभव की जाती है जो हमारे जैसे ही संवेदनशील प्राणी है । ''मातृत्व'' भी उन्ही भावनाओं में से एक है । जानवर भी हमारी तरह अपने बच्चों सेप्रेम करते है। वे अपने बच्चों की रक्षा करने की कोशिश करते है और अपनी संतान को खोने पर दर्द और दुख का अनुभव करते है ।
कार्यक्रम की शुरुआत एक पशु अधिकार मार्च से हुई जहा वीगन कार्यकर्ताओं ने पशु अधिकार के नारे लगाए एवं करुणा के संदेश दिए । इस कार्यक्रम के माध्यम से कार्यकर्ताओं का यही उद्देश्य था की उन सभी पशु माताओं की पीड़ा और दुख को उजागर किया जा सके जो मानवीय उदासीनता के कारण कष्ट सह रही है। महिला कार्यकर्ताओं ने, पशु माताओं की पीड़ा को दर्शाती संदेशों की तख्तियां पकड़ी हुई थी जिसमे लिखा था की, “मैं भी एक माँ हूँ।“
पशुपालन की संपूर्ण प्रक्रिया, मादा प्रजनन प्रणाली के शोषण पर आधारित है एवं फल फूल रहा है। "अरबों जानवरों को जबरदस्ती पैदा कर अस्तित्व में लाया जाता है क्यों की हम मांस, डेयरी और अंडो की मांग करते है। हम शायद ही कभी इस बात की परवाह करते है की इस मांग के कारण इन जानवरों को प्रतिदिन कितनी भयानक मानसिक एवं शारीरिक प्रताड़ना से गुज़रना पड़ता है", ये कहना था आनंदिता दत्ता का, जो आयोजकों में से एक है। इसी क्रम में उन्होंने कहा "ऐसे कई शोध हुए हैं जो साबित करते है की मनुष्य, सब्जी एवं फलों पर आधारित शुद्ध शाकाहारी आहार में स्वस्थ रह सकते हैं और ऐसा आहार पशु उत्पादों की तुलना में अधिक स्वास्थ वर्धक है एवं पर्यावरण के लिए भी हितकारी है'''
डेयरी उद्योग में एक मां और एक बछड़े को अलग करना एक मानक प्रथा है। इस उद्योग में हर साल गायों और भैंसों को कृत्रिम गर्भाधान के जरिए जबरदस्ती गर्भधारण कराया जाता है और उनके बच्चो को अपनी माँ से छीन कर अलग कर दिया जाता है ताकि वो अपने ही हक का दूध न पी पाए। नर बछड़ों को मार दिया जाता है क्योंकि वे दूध नहीं दे सकते। बूढ़े होने पर या दूध उत्पादन बंद करते ही गाय भैंसों को गोमांस या चमड़े के लिए काट दिया जाता है। डेयरी उद्योग की वजह से भारत गोमांस और चमड़े के प्रमुख निर्यातकों में से एक है।
शहर की सबसे कम उम्र की वेगन एक्टिविस्ट, आर्या सिंह, जो स्कूली छात्रा हैं, ने सड़कों पर रंगीन चाक से 'करुणा के संदेश' लिखे और सभी अन्य लोग उनके साथ चॉक-एक्टिविज्म में शामिल हुए। प्राकृतिक रूप में मुर्गियां साल में 10 - 12 अंडे देती हैं, लेकिन अंडा उद्योग द्वारा प्रति वर्ष उन्हें 200 अंडे देने के लिए मजबूर किया जाता है। वे छोटे पिंजरों में आजीवन कैद होती हैं और डीबेकिंग जैसी मानक बेहद क्रूर प्रथाएं झेलती हैं", शालिनी साहू, स्वयंसेवकों में से एक ने कहा जो स्वयं मेडिकल छात्रा हैं। इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कोरबा से, योग प्रशिक्षक श्री राम किशन साहू आए जो 9 साल से वीगन है।
“लोग देसी स्ट्रीट डॉग्स की पीड़ा को नज़रअंदाज़ करते हुए विदेशी नस्ल के कुत्तों की मांग करते हैं। ब्रीडर्स जबरदस्ती कुत्तों का प्रजनन करवाते हैं और उनके बच्चों को बेचते हैं। बाजार में बिकने वाले सभी पशुओं की माताएं अपना पूरा जीवन लगातार शोषण और बार-बार गर्भवती होने में बिताती हैं; नस्ल के कुत्तों की मांग पूरी करने के लिए उसके बच्चे छीन लिए जाते हैं। यह जरूरी है कि हम सड़क से साथी जानवरों को अपनाएं और ब्रीडर्स से उन्हें खरीद कर प्रजनन उद्योग का समर्थन ना करें", ऋषभ वर्मा ने कहा, जो एक एक्टिविस्ट और डॉग रेस्क्यूअर हैं। हर बार, जब हम किसी पशु पदार्थों का सेवन करते हैं या किसी भी तरह किसी जानवर का इस्तेमाल करते हैं, तब तब हम उनकी पीड़ा के लिए भुगतान कर रहे होते हैं और लगातार बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए और जानवरों को अस्तित्व में लाया जाता हैं। मदर्स डे पर, इन कार्यकर्ताओं ने लोगों से आग्रह किया कि वे सभी प्रजातियों की माताओं के साथ सहानुभूति रखें, उनके शोषण के लिए पैसे देना बंद करें और शुद्ध शाकाहारी (वीगन) रहें।
कई दर्शकों ने कहा कि इस आयोजन के दौरान चलाए गए वृत्तचित्र (डाक्यूमेंट्री) में जो सच्चाई दिखाई गयी उससे वे अनजान थे, उनकी आखें खुली और कार्यकर्ताओं के इस प्रदर्शन ने दर्शकों को इंसानी नैतिकता पर सवाल उठाने को मजबूर किया।