- हाउसिंग बोर्ड-आरडीए के मकानों की पूछ-परख ही नहीं
- बिल्डरों की घटिया निर्माण बनी उनके ही गले की हड्डी
- सरकारी जमीन को कब्जा करवाकर निजी प्रोजेक्ट में शामिल करने वाले बिल्डरों पर पड़ी मंदी की मारा
- कमाई के चक्कर में गुणवत्ताहीन सामग्री लगाकर बनाए मकान हो रहे खंडहर
- मंदी के दौर में औने-पौने में बिक रहे है मकान-दुकान
- तालपुरी, कचना, कमल बिहार, इंद्रप्रस्थ, सड्डू, हीरापुर, सोनडोंडरी, गुमा, मोहबाबाजार, जरवाय में बने सारे सरकारी और बिल्डरों की प्रापर्टी तीन साल से नहीं बिके
- राजधानी के बिल्डर साहूकारों से हुंडी-रुक्का के कर्ज में दबे, बैंकों के तगादे से जीना हुआ मुहाल
- कई बिल्डर तो प्रापर्टी बेचकर विदेश भागने की तैयारी में
जसेरि रिपोर्टर
रायपुर। राजधानी में इस समय बहुत ही आश्चर्यजनक और चौकाने वाले खबर सामने आ रहे है। जिसकी कल्पना आमजनता कभी नहीं कर सकती। राजधानी के बिल्डर कोरोना महामारी के बाद मंदी के दौर से उबरने के लिए लागत मूल्य से भी आधे कीमत पर फ्लेट बेचने के लिए तैयार है। खबरदारों ने बताया कि राजधानी के बहुत से बिल्डर जो कर्ज के गले-गले तक फंसे हुए है, 50 लाख के फ्लेट को 20 लाख और 30 लाख के फ्लेट को 15 लाख में बेचने के लिए तैयार है। उसके बाद भी जनवरी के बीत रहे मार्च के अंतिम सप्ताह तक एक भी लेवाल सामने नहीं आया। पूरे प्रदेश में राजधानी के बिल्डरों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। न तो नया प्रोजेक्ट शुरू कर पा रहे और न ही पुराने प्रापर्टी को बेच पा रहे है। किम कर्तव्य विमूढ़ होकर खामोश और उदास बैठे हुए है।
बिल्डरों के कब्जे में सरकारी जमीन
राजधानी में बिल्डरों ने पिछले 20 सालों में किसानों की जमीन के साथ सरकारी घासभूमि, कोटवारी भूमि, चारागाह की भूमि के आसपास के किसानों की खेत में को औने-पौैने दाम पर खरीदने का झांसा देकर किसान को टोकन मनी देकर जमीन हथियाने वालों 20 सालों में मालामाल हो गए। लेकिन प्रकृति का न्याय बिना आवाज के होता है। जिस तरह से बिल्डरों ने मसल पावर से किसानों आरै सरकरी जमीन को को बलात कब्जा कर अपने प्रोजेक्ट में शामिल किया, ठीक उसके उलट प्रकृति ने उनके साथ ऐसा खेल खेला की उनके अरबों की प्रापर्टी के कौडिय़ों में भी खरीदार नहीं मिल रहे है। कोरोना काल में महामारी के चलते दो साल तक सरकारी निर्माण एजेंसी आरडीए और हाउसिंग बोर्ड और निजी बिल्डरों के काम बंद होने के साथ उनके एक भी प्रापर्टी नहीं बिक पाए। प्रकृति का न्याय देखिए जिन बिल्डरों ने सरकारी जमीन को बलात हथिया कर उसमें प्रोजेक्ट बनाए आज तक नहीं बिक पाया। अब कोरोनाकाल की समाप्ति के दौर में जैसे-तैसे बेचने के लिए तैयार हुए तो लागत से आधे दाम पर भी बेचने के लिए सोशल मीडिया वाटसऐप, मीडिया के माध्यम से प्रोपोगंडा करने का बाद भी लेवाल आगे बढ़ते दिखाई नहीं दे रहे है। सरकार निर्माण एजेंसी हाउसिंग बोर्ड और आरडीए तो मृतप्राय हो चुकी है। सरकार उसे जिंदा करने के लिए लाख जतन कर रही है लेकिन वह तो कुपोषित होकर दिन-ब-दिन मरनासन्न स्थिति में पहुंच रही है। तो निजी बिल्डरों की तो हालात और भी दयनीय है। सरकारी जमीनों पर कब्जा कर अपने रसूख का बेजा इस्तेमाल कर 15 साल भाजपा और पिछले 3 साल से कांग्रेस शासन में सरकारी जमीनों पर झुग्गी बसवाया फिर उन झुग्गियों को खाली करवा कर उस जमीन को अपने नाम करवा कर उसमें बडे-बड़े बहुमंजिला फ्लैट बनाकर बेचते रहे। कोरोनाकाल की महामारी बिल्डरों पर कहर बनकर टूटा। बिल्डरों के तैयार बहुमंजिला के साथ आधे-अधूरे प्रोजेक्ट धराशायी हो गए । क्योंकि इस दौरान पिछले दो साल से उनकी एक भी प्रापर्टी नहीं बिकने से कंगाली की कगार पर खड़े हो गए। जैसे ही कोरोनाकाल की समाप्ति होने का दौर शुरू हुआ बिल्डरों ने आफर पर आफर देकर निवेशकों को लुभाने के बाद भी आज तक एक भी प्रापर्टी का लेवाल नहीं मिल पाया। युद्ध के मुहाने पर खड़े विश्व की स्थिति को देखते हुए न तो निवेशक निवेश करने तैयार है और न ही जरूरतमंद लोग फ्लैट खरीदने में रूचि दिखा रहे है।
हाउसिंग बोर्ड आरडीए की हालत पतली
सरकारी निर्माण एजेंसी के रूप में काम करने वाली दोनों प्रमुख एजेंसियां सरकारी सफेद हाथी साबित हो रहे है। गठन से लेकर अब तक आफसरशाही की शिकार रही। स्व वित्त पोषित संस्था होने के कारण सरकार के विभागीय मंत्रियों की भी दखलांदाजी नहीं होने से वहां से अफसरों ने ऐसा भर्राशाही चलाया कि अपने फायदे के लिए हाउसिंग बोर्ड और आरडीए को गिरवी रख दिया। दोनों निर्माण एजेंसी अरबों के कर्ज में दब गई और अधिकारी मालामाल होकर निकल गए। सरकार कुछ नहीं कर पाई। कागजी खानापूर्ति मामले को ठंडे बस्ते में डाल दी या खात्मे में डाल दी।
बिलासा और तालपुरी के घाटे से आज तक नहीं उबर पाई
हाउसिंग बोर्ड का भिलाई में तालपुरी प्रोजकेट और बिलासपुर में बिलासा परिसर आज तक सफल नहीं हो सका। इन दोनों प्रेजेक्टों को वहां के तत्कालीन अधिकारियों ने जबरदस्ती थोपा ताकि उनका घर और खानदान आबाद हो जाए। तालपुरी प्रोजेक्ट के मकान आज भी आधे बिके और आधे अधिकारियों के परिजनों के कब्जे में है। वहीं हाल बिलासा परिसर बिलासपुर की दुर्गति हुई। जहां दूर-दूर तक कोई शहरी आबादी से संपर्क नहीं वहां अधिकारियों ने अपनी मनमानी और हठधर्मिता का परिचय देते हुए करोड़ों रूपए का प्रोजेक्ट शुरू कराया,अधिकारियों को तो फायदा मिल गया लेकिन हाउसिंग बोर्ड अरबों रुपए कर्ज में डूब गई। जिसका खामियाजा आज तक हाउसिंग बोर्ड को झेलना पड़ रहा है। अब तक तो ये दोनों प्रोजेक्ट खंडहर में तब्दील हो चुका है। जिसकी खरीदी-बिक्री में लोगों की रूचि आज तक सामने नहीं आ पाई। लोग सरकार की इन योजनाओं से कुछ भी खरीदना पसंद नहीं कर रहे है। जिसके कारण ये दोनों प्रोजेक्ट बिना रखरखाव के जीर्णशीर्ण होकर ढहने के कगार पर खड़े है। जिसके चलते हाउसिंग बोर्ड के विज्ञापन निकलने के बाद भी लोग इस ओर ध्यान ही नहीं दे रहे है। वहीं हाल आरडीए का है, उसके भी कमल बिहार सभी फेस सभी सेक्टर, इंद्रप्रस्थ, रायपुरा, बोरिया में बना प्रोजेक्ट आज तक नहीं बिक सका।
निजी बिल्डरों का आफर भी नहीं कर रहा काम
दो साल कारोबार में मंदी से उबरने के लिए बिल्डरों ने पुराने प्रापर्टी को बेचने लिए नए-नए तरकीब निकाले, जिसमें केवल, टीवी, रेडियो, मोबाइल से एसएमएस, फोन करके रोज लाकों लोगों को एसएमएस करवा रहे है। उसके बाद भी लोगों को बिल्डरों का आफर रास नहीं आ रहा है। हताशे को दौर से उबरने बिल्डरों ने डोर-टू-डोर भी प्रचार-प्रसार करवा रहे है कि आपने कहीं मकान खरीदने का प्लान तो नहीं बनाया है, यदि बनाया है तो हमारे पास आकर्षक सस्ता सुंदर टिकाऊ परोजेक्ट है जिसमें आप इनवेस्ट कर लाखों रुपए बचा सकते है। क्योंकि इतने सस्ते दाम पर फ्लेट भी नहीं मिलेगा हम तो आपको एक हजार स्क्वेयर फीट में बना बनाया बंगला दे रहे है।
बैंक फाइनेंस की गारंटी
बिल्डरों के दलाल घर-घर जाकर पूछ रहे है कि ये आपका खुद का मकान है या किराए-भाड़े का,यदि भाड़े का है तो मकान मालिक बनाने का झांसा दे रहे है। कहते है बस आपको मामूली टोकन मनी देनी होती बाकी हम बैंक से फाइनेंस करवा देंगे। खासकर ऐसे मसय में पहुंचते है जब घर के पुरुष काम पर निकल गए होते है। वो महिलाओं की विधानसभा लगाकर दीदी-आंटी से संबोधन कर भैया और अंकल से सेलरी के बारे में जानकारी लेते है फिर 80 से 90 परसेंट बैंक फाइनेंस की बात उनके दिमाग में भर रहे है।
नानाप्रकार के प्रलोभन से ग्राहकों को फंसाने की मार्केटिंग
बिल्डरों ने लोगों को फंसाने के लिए मार्केटिंग का बेजा इस्तेमाल कर रहे है। घर-घर जाकर मार्केटिंग वाले ग्राहकों को विदेश यात्रा, 6 माह तक किश्त की छूट, पार्टी में शामिल होने, लांचिग प्रोजेक्ट में बुलाकर स्पाट विजिट कराने के साथ खाने-पीने और पिकनिक मनाने का आमंत्रण दे रहे है। न्यूनतम ब्याजदर, रजिस्ट्री से पजेशन तक किराया देने का भी आफर चल रहा है।
घटिया निर्माण से विश्वास खोया
निजी बिल्डरों के साथ हाउसिंग बोर्ड और आरडीए ने भी घटिया निर्माण सामग्री का उपयोग कर जनता का विश्वास को दिया है। किसी भी बहुमंजिला निर्माण की लाइफ कम से कम 30 साल होती है, यहां तो बिल्डरों और हाउसिंग बोर्ड और आरडीए के मकान 3-4 साल में ही इस स्थिति में आ चुके है। जिसेक कारण लोगों का विश्वास हाउसिंग बोर्ड और आरडीए के साथ निजी बिल्डरों से उठ गया है। जिसके कारण जो दाम हाउसिंग बोर्ड और आरडीए अपने मकानों का तय किए है उस रेट पर खरीदार नहीं मिल रहे है। जबकि इसके उलट निजी बिल्डरों अपनी प्रापर्टी के दाम लागत से भी आधे कीमत की कर दी है उसके बाद भी लेवाल उधर नजर तक नहीं डाल रहे है। निजी बिल्डरों में मकान -फ्लैट की खरीदारी पर पिछले तीन साल पहले तक जो सुवदिा देने का वादा किया ता, वह आज तक नहीं दे पाए जिसके कारण लोगों ने बिल्डरों के प्रोजेक्टों की हाट-बाजार आसपास के पड़ोसियों से, रिश्तेदारों और मोहल्लेवासियों से बिल्डरों के काले कारनामों को चिट्ठा खोल दिया जिसके कारण लोग अब बिचकने लगे है। बिल्डरों के झांसे में आने से बच रहे है।
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