कवर्धा के चिल्फी वन परिक्षेत्र में मिला दुर्लभ उल्लू, देखने से होती है धन की वर्षा, तंत्र-मंत्र

वन विभाग द्वारा लगातार पैदल गश्त किया जा रहा है। इसी का परिणाम है कि टीम को चिल्फी परिक्षेत्र के दुर्लभ प्रजाति के दो उल्लू मिले हैं।

Update: 2020-12-06 05:21 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | छत्तीसगढ़/ कवर्धा डेस्क: वन विभाग द्वारा लगातार पैदल गश्त किया जा रहा है। इसी का परिणाम है कि टीम को चिल्फी परिक्षेत्र के दुर्लभ प्रजाति के दो उल्लू मिले हैं। वन्य प्राणी पशु चिकित्सक डा.राकेश वर्मा तथा डा.सोनम मिश्रा के नेतृत्व में रेस्क्यू किए गए बार्न उल्लूओं को प्राथमिक उपचार तथा भोजन व्यवस्था का प्रबंध वन विभाग की टीम द्वारा किया गया है।

वन विभाग के अफसरों ने बताया कि बार्न उल्लू दुर्लभ प्रजाति के पक्षी हैं, जिनको वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के शेड्यूल तीन में स्थान दिया गया है। बार्न उल्लू की औसत आयु चार वर्ष होती है, ऐसे भी उदाहरण हैं जिसमें बार्न उल्लू15 वर्ष तक जीवित रहे हैं। कैप्टिव ब्रीडिंग में बार्न उल्लू 20 वर्ष तक जीवित रह जाते हैं। प्राकृतिक अवस्था में जंगलों में 70 प्रतिशत बार्न उल्लू अपने जन्म के प्रथम वर्ष में ही प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। राज्य तथा देश के विभिन्न भागों में ग्रामीण अंचल में ऐसी मान्यता है कि बार्न उल्लू को पवित्र मानते हैं, जिससे घर तथा गांव में तरक्की, खुशहाली तथा उन्नति होती है। भोरमदेव अभ्यारण के चिल्फी परिक्षेत्र में रेस्क्यू किए गए बार्न उल्लू प्रजाति के दोनों पक्षियों को बचाने में प्रशिक्षु भारतीय वन सेवा के अधिकारी गणेश यूआर, परिक्षेत्र सहायक चिल्फी पूर्व देशमुख तथा स्थानीय वनरक्षक का महत्वपूर्ण योगदान रहा।


बेहद शर्मीला व शांत होता है
स्वभाव से बार्न उल्लू बेहद शर्मीला व शांत होता है। इसकी आवाज सामान्य उल्लू के समान नहीं होती है। इसकी आवाज काफी कर्कश होती है। यह कृषक मित्र है। रात में खलिहान में रुकता है। अनाज खाने के लिए आने वाले जंतुओं का शिकार करता है। यह खेत में लगे फसलों को कीट पंतग से भी बचाता है।                                    .
जोड़े में रहते हैं इस प्रजाति के उल्लू
इस प्रजाति के उल्लू अक्सर जोड़े में रहते हैं। ये सूखी जगह, पुराने मकानों में, घर व खंडहर, पुराने किलों में निवास करते हैं। ये पक्षी पीपल, बरगद, गुलर जैसे बड़े पेड़ों पर खोखले भाग में अपना निवास बनाते हैं। बार्न वाऊल रात्रिचर होते हैं। इनका भोजन मुख्य रूप से चूहे, मूस्टी होते हैं। प्रतिवर्ष चार से सात सफेद चिकने गोलाकार अंडे देते है। ऐसी स्थिति में नर भोजन का प्रबंध करता है और मादा अंडों को सुरक्षित रखने का कार्य करती है।
बार्न उल्लुओं को लकेर ये है मान्यता
राज्य तथा देश के विभिन्न भागों में ग्रामीण अंचल में बार्न उल्लू को पवित्र माना जाता है। माना जाता है कि इनसे घर तथा गांव में तरक्की, खुशहाली तथा उन्नति होती है। बार्न उल्लू को तथा उनके शरीर के विभिन्न अंगों को तंत्र मंत्र में भी उपयोग किया जाता है।
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