रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बिलासपुर रेलवे स्टेशन पर लिखी थी मास्टर पीस कविता, अब यात्रियों का करती है स्वागत

राष्ट्रगान रचयिता और महान साहित्यकार रवीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) का छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बिलासपुर (Bilaspur) से दर्द का नाता रहा है.

Update: 2021-11-03 18:51 GMT

बिलासपुर. राष्ट्रगान रचयिता और महान साहित्यकार रवीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) का छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बिलासपुर (Bilaspur) से दर्द का नाता रहा है. उन्होंने अपनी पत्नी के साथ उनकी बीमारी की चिंता में बिलासपुर रेलवे स्टेशन में बिताए 6 घंटों के अंतराल में "फांकी" कविता लिखी और उस दौरान अपने अनुभवों को लिखा. गुरुदेव द्वारा लिखी गई फांकि को आज भी बिलासपुर के रेलवे स्टेशन के गेट नंबर -2 में शिलालेख में 3 भाषाओं हिंदी, अंग्रेजी और बंगला में संजोकर रखा गया है. गुरदेव ने अपनी इस रचना में बिलासपुर का दो बार जिक्र किया है जिससे बिलासपुर शहर के निवासी अपने आप गौरवान्वित महसूस करते है और स्टेशन को शिलालेखों को अपनी अमूल्य धरोहर मानते हैं.बिलासपुर स्टेशन पर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने सन 1918 में कदम रखा था. इतिहासकारों और साहित्यकारों के मुताबिक रवीन्द्रनाथ टैगोर की धर्मपत्नी धर्मपत्नी मृणालिनी देवी क्षय रोग से ग्रसित थीं. उस जमाने में क्षय रोग को काफी गंभीर बीमारी माना जाता था. इस गंभीर बीमारी का इलाज सिर्फ शुद्ध आबोहवा वाले इलाकों में ही हो सकती थी. बताया जाता है कि ऐसे शुद्ध आबोहवा वाला सेनेटोरियम देश में सिर्फ तीन ही जगह था जिसमें से एक बिलासपुर जिले के पेंड्रा में स्थित है. रवीन्द्रनाथ टैगोर ने पेंड्रा सेनेटोरियम में अपनी धर्म पत्नी का इलाज कराने का फैसला लिया.

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 6 घंटे में लिखी थी कविता
रवीन्द्रनाथ टैगोर अपनी धर्मपत्नी को लेकर पश्चिम बंगाल से पेंड्रा के लिए ट्रेन से निकल पड़े. बात साल 1918 की है. वे बिलासपुर स्टेशन पहुंचे चूंकि पेंड्रा सेनेटोरियम के लिए पश्चिम बंगाल से सीधे ट्रेन न होने की वजह से टैगोर को बिलासपुर स्टेशन के यात्री विश्रामगृह में 6 घंटे बिताने पड़े. इस बीच एक गरीब बच्ची उनके पास आई और पैसे मांगने लगी. तब गुरुदेव ने उससे बाद में देने को कहा. जब गुरुदेव की पत्नी ने इसकी वजह पूछा तो गुरुदेव ने बाद में बताने की बात कही और पेंड्रा सेनेटोरियम के लिए रवाना हो गए.पेंड्रा स्टेशन ने पहुंचने के बाद गुरुदेव इस सेनेटोरियम के क्षयरोग वार्ड में अपनी धर्मपत्नी को इलाज के लिए भर्ती कराया. धर्मपत्नी के इलाज में गुरुदेव ने यहां 81 दिन बिताए. जानकर बताते हैं कि उन्होंने पेंड्रा जाकर इसका अवलोकन किया जिससे पता चला कि इन 81 दिनों में गुरुदेव क्या किया करते थे. जानकारी एकत्रित करने पर पता चला कि गुरुदेव इस बीच सेनेटोरियम के बाहर लगे पेड़ के चबूतरे में बैठकर सप्ताह के दो दिन शनिवार और रविवार को रंगमंच किया करते थे. इलाज के 81 दिनों बाद भी दुर्भाग्य से गुरुदेव की धर्मपत्नी की जान नहीं बच पाई.
पत्नी के निधन के बाद गुरुदेव ने लिखी फांकि
पत्नी की मृत्यु के बाद पेंड्रा से लौटकर आए रविन्द्रनाथ टैगोर को बिलासपुर स्टेशन में फिर वक्त गुजारना पड़ा और उन्हें उस बच्ची की याद आ गई जिसने उनसे पैसे मांगे थे. पत्नी ने उनसे ऐसा करने की वजह पूछा था. गुरुदेव ने अपनी पत्नी वियोग और उनके दर्द व बिलासपुर स्टेशन में बताए वो छह घण्टे को लेकर इसी स्टेशन में बैठकर "फांकि" नाम के कविता की रचना की थी. आप बिलासपुर स्टेशन के वीआईपी गेट नंबर -2 में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित 'फांकि" कविता को रेलवे द्वारा शिलालेख में धरोहर के रूप में संजोकर रखा गया है. हिंदी, अंग्रेजी और बंगला में लिखी कविता सभी का ध्यान अपनी ओर बरबस ही आकर्षित करती है.
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