गुरु गोविंद सिंह का प्रकाश उत्सव, सिख समाज ने निकाला नगर कीर्तन जुलूस

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Update: 2025-01-04 12:58 GMT
Raipur. रायपुर। प्रकाश पर्व सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। सिख धर्म के दो प्रमुख गुरुओं, गुरु नानक देव जी और गुरु गोबिंद सिंह जी के जन्मदिवस को विशेष रूप से प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। प्रकाश पर्व सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, नगर कीर्तन 2025 जिसे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। सिख धर्म के दो प्रमुख गुरुओं, गुरु नानक देव जी और गुरु गोबिंद सिंह जी के जन्मदिवस को विशेष रूप से प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है।
वही रायपुर के केनाल रोड पर आज सिख समाज द्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी के जन्मदिवस के अवसर पर नगर कीर्तन जुलूस निकाला गया है। जिसमें दोनों पार्टियों के पार्षदों के साथ-साथ कार्यकर्ता भी शामिल हुए है और गुरु गोविंद सिंह साहेब के जन्मोत्सव में हिस्सा लिया है। 

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शनिवार को सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह महाराज के 358वें प्रकाश उत्सव पर नगर कीर्तन का आयोजन किया गया। इस दौरान जमकर तलवारबाजी और अन्य
कलाओं
का भी प्रदर्शन किया गया। वहीं काफी लोग नगर कीर्तन में शामिल हुए और शहरभर में नगर कीर्तन निकाला गया। नगर कीर्तन में जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल के जयकारे लगे।गुरु गोविंद सिंह जी महाराज के 358वें प्रकाश उत्सव का शनिवार को शुभारंभ हुआ। प्रकाश उत्सव के तहत तीन दिनों तक अलग-अलग कार्यक्रम किए जाएंगे। जिसमें अनेक लोग शामिल होंगे। नगर कीर्तन के दौरान बाबा बंदा सिंह बहादुर के शस्त्र व चोले की भी झांकी निकाली गई।


साल 2025 में गुरु गोबिंद सिंह जी का प्रकाश पर्व 6 जनवरी, 2025 सोमवार को मनाया जाएगा। गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना, बिहार में हुआ था। उन्होंने मात्र दस वर्ष की आयु में गुरु की गद्दी संभाली और सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु बनें। गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, यह तिथि हर साल बदलती रहती है, लेकिन इस अवसर को पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाया जाता है। प्रकाश पर्व का अर्थ है- अंधकार को दूर कर सत्य, ईमानदारी, और सेवा का प्रकाश फैलाना।

गुरु नानक देव जी और गुरु गोबिंद सिंह जी ने समाज में ज्ञान, सत्य, और न्याय का प्रकाश फैलाया। उन्होंने लोगों को यह सिखाया कि जीवन में सत्य और धर्म का पालन करना ही सच्चा प्रकाश है। इस दिन गुरुद्वारों को भव्य तरीके से सजाया जाता है, नगर कीर्तन निकाले जाते हैं, और श्रद्धालु अरदास, भजन-कीर्तन, तथा प्रभात फेरी में शामिल होकर गुरु जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। गुरु गोबिंद सिंह जी न केवल एक महान संत और आध्यात्मिक गुरु थे, बल्कि वे एक कुशल योद्धा, कवि, और विचारक भी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में जागरूकता और आध्यात्मिकता का संचार किया। उनके द्वारा रचित ग्रंथों में जाप साहिब, अकाल उस्तति, और चंडी दी वार प्रमुख हैं।


गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना बैसाखी के दिन 1699 में की थी। यह एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसने सिख धर्म को एक नई दिशा और पहचान दी। खालसा पंथ का मुख्य उद्देश्य अन्याय, अत्याचार और अंधकार को समाप्त करना था। गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुगलों और उनके अत्याचारियों के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ीं। उन्होंने कभी अन्याय के आगे सिर नहीं झुकाया और न ही अपने अनुयायियों को झुकने दिया। उन्होंने सिखों को आत्मसम्मान और निडरता का पाठ पढ़ाया। उनकी प्रसिद्ध वाणी "वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह" आज भी हर सिख के हृदय में जोश और आत्मविश्वास का संचार करती है।
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