पदमा अपने ग्राम पंचायत में विकास कार्याे को बढ़ावा देते हुए न सिर्फ गांव के लोगों को मनरेगा के तहत् रोजागर उपलब्ध कराने के साथ ही अपने गांव में विभिन्न योजना से लोगों को लाभ प्रदान करने में उनकी सहायता भी की। गांव में डबरी, कुंआ, तालाब, भूमि समतलीकरण, सामुदायिक भवन सहित अन्य सामुदायिक एवं हितग्राही मूलक कार्याे को ग्रामीणों तक पहुचा कर उन्हें योजना से लाभ पहुँचा रही है। जिससे ग्राम के सभी लोगों को रोजगार के साथ ही सुविधा भी मिल रही। साथ ही ग्रामीण महिलाओं को एनआरएलएम बिहान से जोड़कर उन्हें विभिन्न आजीविका कार्याे से जोड़कर रोजगार उपलब्ध कराकर उनकी आर्थिक स्थिति में बढ़ोत्तरी कर रही है।
पदमा बताती है कि गांव में अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद उनके पास कोई रोजगार नहीं था। परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ न होने के कारण उन्हें आगे की पढ़ाई भी बीच में रूक गई। पदमा में अपने आस पास के क्षेत्र में परिवर्तन एवं विकास लाने की इच्छाषक्ति शुरूआत से ही रही थी जिसके पश्चात् गांव के सरपंच ने उन्हें मेट बनने की सलाह दी। जिस पर पदमा ने तत्काल मनरेगा में मेट का काम करना शुरू कर दिया। मेट बनने के बाद मे लम्बे समय पंचायत में कार्य करने बाद मुझे रोजी मिलने लगी तथा परिवार की स्थिति ठीक होने लगी तब मै आगे पढ़ाई भी धीरे-धीरे जारी रखी। जिससे उसकी पारिवारिक स्थिति में भी काफी सुधार आने लगा। उन्होंने बताया कि मेट के रूप में चयन प्रशिक्षण ग्राम सरंपच, सचिव एवं रोजगार सहायक द्वारा प्रदान किया गया जिसे रूची और बढ़ी। इसके बाद योजना में नियोजन के लिये 100 दिन की मजदूरी के लिये तैयार योजना के अनुरूप भुमि सुधार, तालाब निर्माण, कुआं निर्माण, शेड निर्माण कार्य स्वीकृति हुई तथा कमजोर परिवार में 100 दिन रोजगार प्रदान करने में भूमिका अदा की।
पदमा ने मेट बनने के बाद अपने मजदूरों को कार्यस्थल पर सुविधा उपलब्ध कराने के दृष्टि से पीने का पानी एवं छावनी का भी व्यवस्था कराई जिससे मजदूरों को मध्यान्ह भोजन समय में पेयजल एवं छाव की सुविधा मिल सके। साथ ही उनके द्वारा प्रत्येक कार्यस्थल पर चिकित्सा सुविधा के लिए मेडिकल किट भी रखा गया। जिससे कार्य के दौरान किसी को चोट लगने पर या अन्य तात्कालिक उपचार प्राप्त मजदूरों को प्राप्त हो सके। उन्होनंे महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए विशेष प्रयास किया। महिलाओं को जागरूक करने के लिए घर-घर जाकर उन्हें समझाईश देने के साथ ही स्व-सहायता समूह को भी शामिल किया। जिससे महिलाओं में रोजागर के प्रति रुचि विकसित हुई। जिससे अब स्व-सहायता समूह की महिलाओं की भी आर्थिक स्थिति के साथ रोजागर के साधन में वृद्धि हुई। उन्होंने 100 दिवस का रोजगार प्राप्त करने के लिए भी ग्रामीण परिवार के सदस्यों को प्रोत्साहित किया। साथ ही वन अधिकार पट्टाधारी परिवार का भी चिन्हांकन कर उन्हें अतिरिक्त रोजगार दिवस उपलब्ध कराने का प्रयास किया। उन्होंने कोविड के दौरान भी उनके द्वारा मनरेगा कार्यस्थल पर ग्रामीणों को मास्क उपयोग, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन सहित अन्य कोविड नियमों का पालन कराया। साथ ही कोविड टीकाकरण में भी अपनी अहम भूमिका निभायी। उन्होंने अपने आस पास के सभी ग्रामीणों को टिका लगवाने के लिए प्रेरित किया।