लेट नाइट पार्टियों में परोसी जा रही है शराब के साथ चरस-कोकीन!
पुलिस की सख्ती के बाद भी थम नहीं रहा नशे का अवैध कारोबार
पकड़े गए तस्करों ने किया खुलासा,ग्राहक तलाशने करते हैं सोशल मीडिया का इस्तेमाल
राजधानी के रईसजादे महंगे नशे की तलाश में भटकते रहते है वीआईपी रोड मेंजसेरि रिपोर्टर
रायपुर। राजधानी में अपराध के सिलसिले रुकने का नाम नहीं ले रहे है और नशाखोरी तो आसमान पर चढ़कर अपना व्यापार कर रहा है। रायपुर के कई ऐसे इलाके है जहां गांजा, जुआ, सट्टा, ड्रग्स, मारिजुआना, नशे के कफ सिरप भी मिल रहा है। रायपुर शहर आज नशे का एक बड़ा हब बन चुका है। युवाओं के लिए इस शहर खुलेआम लेट नाइट पार्टियां होती है। जिसके चलते युवा शराब, गांजा, चरस, ड्रग्स, कोकीन और ऐसे कई नशे के सामान है जो शहर के अंदर लाया जाता है और खुलेआम इसका काला व्यापार चल रहा है।
युवा ही निशाना
पुलिस का मानना है कि शहर के ज्यादातर नशेड़ी 30 साल से कम उम्र के हैं, और जब से एनसीबी रायपुर आई है उसके बाद से ही ड्रग्स का मामला शहर में आने लगा है। रायपुर पुलिस ने भी कुछ कॉलेजों के बाहर मैदानों और नाइट क्लबों के बाहर उन जगहों को चिन्हित किया था जो नशे की बिक्री के संभावित ठिकाने थे। बाद में मार्च में लॉकडाउन आने के बाद ये ठिकाने छोटी दुकानों और अलग-थलग स्थानों में शिफ्ट हो गए। पुलिस ने कुछ पान की दुकानों पर निगरानी बढ़ाई और कुछ को ड्रग स्पॉट के रूप में चिन्हित भी किया है। ऐसा पता चला कि मैरिजुआना के लिए संभावित कोड वर्ड 'पोपट पानÓ है। रायपुर में ड्रग्स लाने के लिए टाटीबंध रोड का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। रायपुर एक ऐसा शहर है जहां ड्रग्स आसानी से लाया भी जा सकता है।
ड्रग्स बना बहस का मुद्दा
पूरे शहर में ड्रग्स का नशा ही बहस का मुद्दा बना हुआ है कि आखिर रायपुर और उसके आसपास के वो कौन से इलाके हैं जहां नशे की वो खेप मिलती है, जिसे धड़ल्ले से रात की पार्टियों में इस्तेमाल किया जाता है। राजधानी में पुलिस की कोई कमी नहीं, हर गली हर चौराहे और हर रास्ते पर पुलिसवालों से तैनात एक जिप्सी आसानी से दिख जाएगी। रेलवे स्टेशन हों या रायपुर का खास मार्केट या फिर कोई पॉश इलाका पीसीआर गाडिय़ां या पुलिस की डॉयल 112 आसानी से दिख जाएगी। लेकिन पुलिस की ये मौजूदगी में ही नशे के कारोबारियों के हाथी के दांत की तरह सिर्फ दिखाने भर की है। सच तो ये है कि पुलिस के इर्द गिर्द ही हर धंधा हो रहा है। चाहे वो नशे में डूबी बस्तियां हों या फिर मदहोशी के अंधेरे में गुम डिस्कोथेक या फिर पब। ये है रायपुर का वो सच, जिससे यहां का बच्चा-बच्चा अच्छी तरह वाकिफ हो चुका है। नशे की खुराक की फिराक में घूमने वाले लोगों को अच्छी तरह पता है कि रायपुर के ऐसे कौन से ठिकाने हैं, जहां जाकर उनकी तलाश खत्म हो सकती है। लेकिन अगर कोई नहीं जानता तो वो शायद ही पुलिस है।
रईसजादों के साहबजादे महंगे नशे की तलाश में
ये बात बेशक छुपी हुई नहीं है कि राजधानी में कई रईसजादों के साहबजादे महंगे नशे की तलाश में अक्सर वीआईपी रोड से लेकर मरीन ड्राइव तक भटकते हुए देखे जाते हैं। कई बार देखा गया है कि ऐसे भटकते हुए लोगों का वास्ता उन ड्रग डीलर से हो जाता है जो रायपुर की गली-गली में नशा बेच रहे है। नशे से भी अच्छी तरह वाकिफ होते हैं। रायपुर में भी कुछ ऐसे ठिकाने है। जहां अक्सर ऐसे जरूरतमंद लोगों का जमघट देखा जाता है, जिन्हें मदहोशी में चूर होने के लिए नशे की जरूरत होती है। और इन्हीं ठिकानों पर पहुंचकर उनकी जरूरत पूरी हो जाती है जिसमें कोकीन, हेरोइन, चरस, शराब और गांजा शामिल है। रायपुर और उसके आस पास रेव पार्टी वगैरह में ड्रग्स का बहुत इस्तेमाल किया जाता है। सूत्रों की मानें तो बीते चार सालों में एक बार भी ड्रग्स की कोई बड़ी खेप नहीं पकड़ी गई। ड्रग्स का ये सारा खेल बड़े-बड़े तस्कर अंधाधुंध मुनाफे के लिए कर रहे हैं। जाहिर तौर पर ड्रग्स का कार्टेल रायपुर में नशा करने वालों की तादात बढ़ाता चला जा रहा है। नशे की लत का हाल ये है कि महिलाओं से लेकर बस्तियों के बच्चे तक नशे में धुत हैं और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं।
50 से 500 रुपए में उपलब्ध
राजधानी के कई इलाकों में मादक पदार्थों की तस्करी की जाती है, वहां इसे लोग माल, सामान या बाबाजी की बूटी के नाम से पुकारते हैं। ऐसे इलाकों में मादक पदार्थों की पुडिय़ा 50 से 500 रुपए तक में मिलती है। पूछने पर आसपास के लोगों ने बताया कि इन्हें खरीदने वाले सभी उम्र और आय वर्ग के लोग होते हैं। राजधानी के कई ऐसे पार्क हैं, जिनके आसपास इस धंधे से जुड़े लोग सक्रिय होते हैं। ये लोग पुलिस की आंखों में धूल झोंककर इस तस्करी को अंजाम देते हैं।
सोशल मीडिया पर तलाशते हैं ग्राहक : हेरोइन व अन्य मादक पदार्थों की तस्करी में बड़े स्तर पर बाहरी नागरिक भी शामिल होते हैं। समय-समय पर पकड़े गए इन तस्करों ने खुलासा किया कि वे ग्राहक तलाशने के लिए फेसबुक, व्हाट्सऐप जैसे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। यही कारण है कि स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी इनके चंगुल में आसानी से फंस जाते हैं और नशे के आदी बन जाते हैं।