चिराग सी तासीर रखिए, सोचिए मत कि किसका घर रोशन हुआ

Update: 2021-01-22 05:28 GMT

ज़ाकिर घुरसेना/कैलाश यादव

कड़कड़ाती ठंड एवं बारिश में अन्नदाता जिसमें बच्चे बूढ़े जवान एवं महिलाएं भी शामिल है, सड़कों पर पड़े हैं ऐसी स्थिति में हम चैन से भला कैसे रह सकते हैं। ऊपर से सरकार इन अन्नदाताओं में आतंकवादी तलाश रही है। जनता में खुसुर-फुसुर है कि अन्नदाता अपनी मांगों के लिए जमा हुए हैं तो इसमें क्या गलत कर रहे हैं। अरे भाई जब कानून से किसान ही सहमत नहीं है तो जबरदस्ती क्यों लागू करने पर उतारू है। समझ में नहीं आ रहा। सरकार को चाहिए कि किसानों की मांगों को देखते हुए झुक जाना चाहिए। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि लगभग 2 माह होने को आ रहे हैं और सरकार अन्नदाताओं की व्यथा को समझ ही नहीं पा रही है और ना ही समझने की कोशिश कर रही है।

सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का

पिछले दिनों रिपब्लिक टीवी के अर्णब गोस्वामी का व्हाट्सएप कॉल का खुलासा हुआ इसमें देश की सेना एवं आंतरिक सुरक्षा की जानकारी लीक की गई थी। जनता में खुसुर-फुसुर है कि गोस्वामी सरकार समर्थक है। इसीलिए उनको आंच नहीं आ सकता, यही कोई दूसरा होता तो अभी तक देशद्रोह के मामले में अंदर हो गया होता। वैसे भी अगर सेना या सुरक्षा से जुड़ी जानकारी लीक करना राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आता है। पूरा देश स्तब्ध है संवेदनशील जानकारी एक पत्रकार को कैसे हो गई। लेकिन सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का।

सांच को आंच क्या

पिछले दिनों लगभग कई दर्जन पूर्व आईएएस और आईपीएस अधिकारियों ने प्रधानमंत्री जी को पत्र लिखकर पीएम केयर्स फंड में पारदर्शिता को लेकर अवगत कराया। पत्र लिखने वालों में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्य सचिव पीजाय उम्मेन भी शामिल थे। कहां से कितना पैसा आया, कितना खर्चा हुआ आदि सब पारदर्शी होना चाहिए। सब कुछ सही है तो जवाब देने में हर्ज क्या। जनता में खुसुर-फुसुर है कि प्रधानमंत्री जी अन्नदाताओं से मिलना जरूरी नहीं समझते तो हिसाब-किताब तो दूर की बात है।

अलीबाबा आ ही गए

हमारे यहां एक कहावत आम बोल-चाल में है अलीबाबा चालीस चोर। लेकिन हम बात कर रहे हैं अरबपति अली बाबा की जिन्होंने चीन के राष्ट्रपति की नीतियों का आलोचना कर दिए और मार्केट से स्वयं गायब हो गए। 3 महीने बाद प्रकट भी हो गए जनता में खुसुर-फुसुर है कि यही स्थिति तो हमारे यहां भी है, सरकार की आलोचना किए नहीं की उल्टी गिनती शुरू।

ड्रैगन फ्रूट का नाम भी बदला

पिछले दिनों ड्रैगन फ्रूट के नाम बदल कर कमलम रख दिया गया। अब इसे कमलम कहा जाएगा। लोग भी पीछे नहीं। कई फलों के नाम बदलने के सुझाव दिए। ड्रैगन शब्द ठीक नहीं लगता और यह फल कमल के आकार के दिखता है इसलिए इसे कमलम नाम दे दिया गया। यह तो महज इत्तेफाक है कि गुजरात भाजपा मुख्यालय का नाम भी कमलम है। बहरहाल नाम बदलने में क्या रखा है, स्वाद तो वही रहेगा। कुछ राजनीतिज्ञ अब इस पर मजे ले रहे हैं। कोई कह रहा हैं कि किसान बचेगा तो ही यह कमलम पैदा होगा। किसान ही नहीं रहेगा तो क्या खाक कमलम पैदा होगा।

शिवराज सिंह चौहान की दरियादिली

पिछले दिनों मध्यप्रदेश में लोग जहरीली शराब से लगभग डेढ़ दर्जन लोग मर गए। सीएम साहब ने आनन-फानन में अधिकारियों की मीटिंग रखी। एक अधिकारी ने कहा एक लाख की आबादी पर चार-पांच शराब दुकानें हैं जो कम है। दुकानों की संख्या बढ़ानी होगी तब जाकर यह सब रुकेगा। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कितने संवेदनशील है जनता के साथ-साथ पियक्कड़ों का भी ख्याल रखते हैं अब वहां ज्यादा से ज्यादा शराब दुकान खोलने की तैयारी की जा रही है। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती ने ट्विटकर बीजेपी शासित राज्यों में शराब बंदी की मांग की और कहा कि थोड़े से राजस्व के लिए शराब दुकान न कोले जाए।  

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