रायपुर। समय के साथ-साथ समाज में धीरे-धीरे बदलाव आ रहे हैं लेकिन अभी भी तृतीय लिंग समुदाय के संबंध में अनेक चुनौतियाँ और समस्याएं हैं। तृतीय लिंग के संबंध में अभी भी लोगों की धारणाएं गलत है जिन्हें बदलने की आवश्यकता है। हमें शरीर से नहीं, हमारी आत्मा को देखिए, हमारी भी भावनाएँ हैं, संवेदनाएं हैं जिसे समझने की जरूरत है। उपर्युक्त बातें मैट्स यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग द्वारा तृतीय लिंग विमर्शः कल, आज और कल विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमीनार में आमंत्रित अतिथियों विषय विशेषज्ञों, विद्वानों एवं शोधार्थियों ने कहीं। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि अमेरिका के प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि एवं समालोचक डाॅ. प्रेम भारद्वाज ने तृतीय लिंग के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 1994 में टीएन शेषन ने तृतीय लिंग को मतदान का अधिकार प्रदान किया था। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने 15 अप्रैल 2014 को तृतीय लिंग समुदाय को संवैधानिक अधिकार दिए। किन्नर समुदाय को भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान सभी को वापस लौटने कहा था लेकिन किन्नर पूरे 14 वर्ष तक वहीं प्रतीक्षा करते रहे।
भगवान श्रीराम ने तब वरदान दिया था कि किन्नर जिन्हें भी आशीर्वाद देंगे उनका कभी अनिष्ट नहीं होगा। डाॅ. प्रेम भारद्वाज ने महाभारत काल का भी उदाहरण दिया और कहा कि तृतीय लिंग समुदाय समाज का अहम अंग है और उन्हें भी वही सारे अधिकार मिलने चाहिए जो सामान्य नागरिक को मिलते हैं। तृतीय लिंग विमर्श की प्रसिद्ध साहित्यकार भोपाल की डा. लता अग्रवाल ने कहा तृतीय लिंग समुदाय के संबंध में गहराई से विवेचना प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि तृतीय लिंग के अध्ययन से कई नए पहलू इस समुदाय को लेकर सामने आए जिनसे अब तक शोधार्थी सामने आए। डा. लता अग्रवाल ने तृतीय लिंग समुदाय के बारे में विस्तार से जानकारी दी और कहा कि हमें इस समुदाय के लोगों की पीड़ा, उनके दुख-दर्द को समझना चाहिए। मैट्स यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति गजराज पगारिया ने कहा कि हमारा प्रयास है कि हम अपने सामाजिक कर्तव्यों के निर्वहन की दिशा में रचनात्मक गतिविधियों का आयोजन करें। तृतीय लिंग समुदाय भी समाज का अहम हिस्सा है जिसे आगे बढ़ाने का पूरा प्रयास किया जाना चाहिए। मैट्स यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. के.पी. यादव ने तृतीय लिंग समुदाय से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकश डाला। उन्होंने कहा कि समाज से उपेक्षित रहे इस समुदाय को भी समाज की मुख्य धारा में आने का पूरा अधिकार है।
छत्तीसगढ़ राज्य तृतीय लिंग कल्याण बोर्ड की सदस्य एवं राज्य के पं. रविशंकर शुक्ल सम्मान से सम्मानित विद्या राजपूत ने कहा छत्तीसगढ़ के तृतीय लिंग समुदाय की उपलब्धियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने अपने जीवन के अनुभव भी साझा किए और कहा कि हमारा भी मन, आत्मा औरर हमारी भी संवेदनाएं हैं, हममें और आपमें कोई फर्क नहीं है, फर्क तो विचारों का है जिसे समझने की जरूरत है। छत्तीसगढ़ तृतीय लिंग कल्याण बोर्ड की सदस्य रवीना बरिहा ने भारत में प्राचीन काल, मध्यकाल और आधुनिक काल के किन्नर विमर्श से संबंधित साहित्य पर प्रकाश डाला एवं विस्तार से प्रमाण के साथ जानकारी प्रदान की जिसकी सभी ने तालियाँ बजाकर सराहना की। देश के प्रथम उभयलिंगी ज्योतिषी भैरवी अमरानी ने तृतीय लिंग समुदाय के प्रकारों और तृतीय लिंगी व्यक्तियों के साथ होने वाले अत्याचारों पर प्रकाश डाला। ट्रांस मेन पापी देवनाथ ने भी अपने जीवन के अनुभव साझा किए। इसके पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर किया गया। हिम्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डा.ॅ रेशमा अंसारी ने स्वागत भाषण देते हुए आयोजन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। इस संगोष्ठी में देश के विभिन्न राज्यों के शोधार्थियों ने अपने शोध पत्रों का वाचन किया। इनमे प्रमुख रूप से संतोष कुमार भागलपुर, भारती शिमला, अनूप कुमार कोलकाता, पवन राय कोलकाता, उषाबेन परमार गुजरात, सहित अनेक राज्यों के शोधार्थी शामिल थे। इस अवसर पर विश्व हिन्दी साहित्य समिति प्रयागराज के अध्यक्ष डा. शेख शहाबुद्दीन नियाम मुहम्मद शेख, काटन विश्वविद्यालय, असम के हिन्दी विभाग की प्राध्यापक डाॅ. रहमातुल्लाह, मैट्स यूनिवर्सिटी के कुलसचिव श्री गोकुलनंदा पंडा, डीन एकेडमिक डाॅ. ज्योति जनस्वामी सहित विश्वविद्यालय के सभी विभागों के विभागाध्यक्ष, प्राध्यापक, देश के विभिन्न राज्यो से आए शोधार्थी, विद्वान एवं विद्यार्थीगण उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन हिन्दी विभाग के सह प्राध्यापक डाॅ. कमलेश गोगिया, सहायक प्राध्यापक डाॅ. सुनीता तिवारी, शोधार्थी ज्योति होता, सहायक प्राध्यापक डाॅ. रमणी चंद्राकर, डा. सुपर्णा श्रीवास्तव, प्रियंका गोस्वामी ने किया।