संसार में अगर डरना है तो कर्म बंधन से डरो: मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी

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Update: 2024-08-19 17:08 GMT
Raipur. रायपुर। संभवनाथ जैन मंदिर विवेकानंद नगर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचनमाला जारी है। सोमवार को रायपुर के कुलदीपक तपस्वी मुनिश्री विजयजी म.सा. ने कहा कि संसार में डरना हो तो कर्म बंधन से डरो, रसपूर्वक पाप ना करो और यदि हो जाए तो बारंबार पश्चाताप करो। पाप के उदय के अंदर संताप चिंता करना व्यर्थ हैं, जो कर्म आपने बांधा है तो उदय में आएगा ही और उसे भोगना ही पड़ेगा। मुनिश्री ने कहा कि अनादि काल से संसार में जीव चार संज्ञा आहार, भय, मैथुन और परिग्रह के कारण भटक रहा है। अभी चातुर्मास में तप के कारण तपस्वियों का आहार संज्ञा में कंट्रोल है लेकिन चातुर्मास और पर्युषण के बाद जब जीव तपस्या नहीं करता है तब भरपूर आहार संज्ञा को पुष्ट करता है। आहार संज्ञा के कारण अत्यंत राग द्वेष के परिणाम से
आत्मा को कलुषित करता है।

मुनिश्री ने कहा कि जब जीव को कर्म का उदय आता है तो जीव भय की संवेदना से घिर जाता है । सामान्य जीव दुख के उदय से डरता है, आठ कर्म के उदय के कारण जीव मन में पश्चाताप करता है कि मुझे यह तकलीफ क्यों आई है। जब कर्म बंधन का अवसर था, तब आनंदपूर्वक संसार के सुखों को भोगकर कर्म बहुत बांध लिए और जब कर्म का उदय आया तो उसे वह सहन नहीं कर सकता। संसार में हर तरह का भय अच्छा भी नहीं होता है और खराब भी नहीं होता है। संसार में यदि भय रखना हो तो पाप का भय रखो। मुनिश्री ने कहा कि सम्पूर्ण निष्पाप जीवन संसार में केवल पांच महाव्रतधारी साधु साध्वियों का होता है। जीव संपूर्ण पाप मुक्त जीवन नहीं जी सकता है, कदम कदम पर आरंभ समारंभ के योग से कर्म बंधन करता रहता है। यदि संसार के कार्यो में रूचि लिए बिना कार्य करता रहेगा और मन में उसका पश्चाताप रखेगा तो कर्म का रस और स्थिति कमज़ोर बांधेगा एवं कर्म से जल्दी मुक्त होगा। मुनिश्री ने कहा कि जीवन के अंदर,धर्म के अंदर ऐसे बहुत से प्रसंग आते हैं यदि मैं कर लेता तो अच्छा होता,यह संताप होता है। साथ धर्म के मिले हुए अवसरों को पहचान कर,अपना कर जीवन को आराधनामय बनाना चाहिए।
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