मैं सही हूं यह है आत्मविश्वास लेकिन मैं ही सही हूं यह है अहंकार...

Update: 2021-07-16 06:06 GMT

ज़ाकिर घुरसेना/कैलाश यादव

भारत को आज़ाद हुए लगभग 75 बरस हो गए हैं, जिसे पाने के लिए देशवासियों को काफी लम्बी लड़ाई लडऩी पड़ी है तब जाकर आज़ादी हासिल हो पाई है। आज़ादी के आंदोलन में भी किसानो की मत्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन अफ़सोस आज किसानो को अपनी लड़ाई खुद लडऩी पड़ रही है वो भी प्रजातान्त्रिक सरकार से। कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का धरना अनवरत जारी है। किसान नेताओं ने कहा कि इस बार होने वाले संसद सत्र में वे सभी सांसदों से संसद के बाहर निवेदन और मांग करेंगे कि वे संसद में सिर्फ और सिर्फ किसानो के हित में ही बात करें और किसानो की आवाज़ बनें। लंबे समय से किसान तीन कृषि बिल के विरोध में धरनारत है। विपक्ष भी अपने हाथों से किसानों के मुद्दे को जाने नही देगा, विपक्षी सांसद संसद में इसके लिए जबरदस्त विरोध भी करेंगे और संसद चलने में एक प्रकार से बाधा भी उत्पन्न करेंगे । अब सवाल ये उठता है कि इतना विरोध होने के बावजूद मोदी सरकार किसानो से बात क्यों नहीं करती इसके पूर्व भी दो तिहाई बहुमत वाली सरकारें आयी थी लेकिन किसी बात का विरोध इतना लम्बा नहीं चला था। बातचीत से हल निकाल लिया गया था। किसान आंदोलन के चलते मंत्रियों की सुरक्षा में लगी बैरिकेडिंग को किसानों ने ट्रैक्टर से तोड़ दिया मजबूरन पुलिस को किसानो से भिडऩा भी पड़ा। जनता में खुसुर-फुसुर है कि मोदी जी को अडिय़ल रवैया छोड़कर अन्नदाताओ से एक बार फिर तत्काल बैठक कर इसका हल निकालना चाहिए। किसी ने ठीक ही कहा है मैं सही हूं  यह आत्मविश्वास है लेकिन मै ही सही हूं यह अहंकार है।

चुनाव जीतना ही मकसद

अभी देखा जा रहा है कि राजनीतिक पार्टियों का मकसद केवल सत्ता हासिल करना हो गया है। अभी हाल में ही हुए चुनाव में देखा गया है कि नेता किसी भी हद तक जा रहे हैं। चुनाव होने के बाद हिंसा भी यही कहानी बयां कर रही थी। कहीं औरतों के साथ बदसलूकी की जा रही तो कहीं आईपीएस अधिकारी को थप्पड़ मारा जा रहा है। खुले आम द्रौपदी चीरहरण का दृष्य लोगो ने चुनाव के दौरान देखा। सच्चाई दिखा रहे इलेक्ट्रानिक मीडिया के एक पत्रकार को भी बुरी तरह से पीटा गया। हालांकि एसपी के साथ बदलूकी करने वाले नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज जरूर कर ली गई लेकिन चुनाव निपटने के बाद जनहित में सारे केस वापस ले लिए जायेंगे। जब जब चुनाव नजदीक आया है राजनीतिक पार्टियां ऐसा कुछ बिल लेकर आती है जिससे समाज में नाइत्तेफाकी पैदा हो, सांप्रदायिक राजनीति की जमींन मजबूत हों, और वोटों का ध्रुवीकरण हो। जनसंख्या नियत्रण के मामले में सब किये धरे पर नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट ने पानी फेर दिया। सरकार जनता को ये बताना चाहती थी कि मुस्लिमो की जनसँख्या तेजी से बढ़ रही है। लेकिन सर्वे के आंकड़े से पता चला कि मुस्लिमो की प्रजनन प्रतिशत भी कम हो गई है। जनसँख्या नियंत्रण कानून की अभी जरुरत ही नहीं थी ये बिल तो सत्ता में बैठते ही लाना था चूँकि अभी चुनाव सामने है और एक वर्ग इसका विरोध करे और वोटों का आसानी से बंटवारा हो। इसी बात पर मिजऱ्ा ग़ालिब साहब याद आये कि दूरियां जब बढ़ी तो गलतफहमियां भी बढ़ गई, फिर उसने वो भी सुना जो मैंने कहा ही नहीं। अब पढ़ी लिखी जनता सब समझ चुकी है।

बार बार फेटने का क्या फायदा

पिछले दिनों मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ कई कद्दावर मंत्री हटा दिए गए। और जहां चुनाव होना है वहां से अधिकतर लोग मंत्री बना दिए गए। अब सवाल ये उठता है कि क्या मंत्री बदलने से अच्छे दिन आ जायेंगे,मंहगाई कम हो जाएगी, लोगो को रोजगार मुहैया हो जायेगा। जनता में खुसुर-फुसुर है कि जब ताश की गड्डी में सारे पत्ते जोकर और गुलाम हों तो बार फेटने से क्या फायदा।

आपा खोते नेता

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डीके शिवकुमार द्वारा अपने एक समर्थक को इसलिए पीट दिया गया कि वो सेल्फी ले रहा। एक कार्यक्रम में शिवकुमार जा रहे थे उसी दौरान एक समर्थक उनके साथ साथ सेल्फी लेने लगा फिर क्या शिव जी ने आव देखा न ताव समर्थक की धुलाई कर दी। इसी प्रकार रायपुर नगर निगम में महापौर के कक्ष में उपनेता प्रतिपक्ष मनोज वर्मा ने भी एक पत्रकार के साथ अभद्रता पर उतर आये। बाद में मामला समझाबुझाकर शांत किया गया। जिन कार्यकर्ताओ के मेहनत से ये नेता छोटे से बड़े हुए हैं उन्ही पर ये आपा खो रहे हैं। देखा ये जा रहा है कि नेतागण सहनशीलता के गुण खोते जा रहे हैं। जनता में खुसुर-फुसुर है कि नेता लोग इतनी जल्दी अपना आपा क्यों खो रहे हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि बातों का मिठास अंदर का भेद नहीं खोलती साहब, मोर को देखकर कौन कहता होगा कि यह सांप भी खाता होगा।

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