रायपुर। आरक्षण विधेयक मामले में हाईकोर्ट ने राज्यपाल से जवाब मांगा है। सोमवार को हुई सुनवाई के बाद राज्यपाल के सचिवालय को नोटिस जारी किया गया था। राजभवन ने स्थिति स्पष्ट करते हुए बताया है कि हाईकोर्ट राज्यपाल को नोटिस जारी नही कर सकता। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला भी सामने रखा है। जिसमे सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने राष्ट्रपति व राज्यपाल को नोटिस जारी करने पर पूर्णतः रोक लगाई है। राज्य सरकार ने आरक्षण संशोधन विधेयक 2022 पास कर प्रदेश में आरक्षण का प्रतिशत 76 प्रतिशत कर दिया था। दिसंबर आरक्षण संशोधन विधेयक राज्यपाल के पास पहुंचा पर उन्होंने अब तक इसमें दस्तखत नहीं किया है। इस मामले पर बिलासपुर के अधिवक्ता हिमांग सलूजा व राज्य सरकार ने राज्यपाल के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
जिसमें आज सुनवाई हुई। राज्य शासन की तरफ से देश के वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल हाईकोर्ट में पेश हुए। उनके साथ ही महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा भी राज्य शासन की तरफ से पैरवी कर रहे थे, तो वही अधिवक्ता हिमांग सलूजा की तरफ से सीनियर अधिवक्ता निर्मल शुक्ला व शैलेंद्र शुक्ला पैरवी कर रहे थे। आज सिंगल बेंच में हुई सुनवाई में अधिवक्ताओं ने तर्क प्रस्तुत करते हुए बताया कि राज्यपाल को विधानसभा के द्वारा पास विधेयक को 15 दिन तक ही अपने पास रोकने का अधिकार है। इसके बाद या तो उन्हें विधेयक वापस लौट आना पड़ता है या दस्तखत करने पड़ते हैं। पर राज्यपाल ने दोनों में से कोई भी कदम नहीं उठाया। ऐसा नहीं करने पर उन्हें विधेयक को राष्ट्रपति को भेज देना चाहिए था। पर राज्यपाल ने यह भी नहीं किया, जो कि संविधान के अनुच्छेद 200 का पूर्णतः उल्लंघन है। सुनवाई के बाद सिंगल बेंच के द्वारा राज्यपाल सचिवालय को नोटिस जारी कर 2 सप्ताह में मामले में जवाब मांगा। शाम होते होते राजभवन ने इसमे स्थिति भी स्प्ष्ट कर दी।