प्रदेश कांग्रेस नेताओं की अनदेखी कब तक

Update: 2024-08-20 06:03 GMT

प्रदेश स्तर के नेताओं को सेकेंड लाईन के नेता बनने से रोका गया

बिल्डर और दो नंबर के कार्य करने वाले, सट्टे और जुए के कारोबार से जुड़े लोगों को प्राथमिकता

राज्यसभा में 24 सालों में रायपुर एक भी नेता राज्यसभा सदस्य नहीं बनाया गया

आम कार्यकर्ताओं में भयंकर नाराजगी, मेहनत करते हम और पद प्रतिष्ठा पाते चमचे-दलाल

यूपी बिहार की तर्ज में नेताओं की सोच ही कांग्रेस पार्टी को हासिये पर लाकर खड़े कर दिया

बाहरी नेताओं को जमीनी हकीकत का अंदाजा नहीं कार्यकर्ताओं की पहचान नहीं, स्थानीय नेताओं की ताकत का अहसास नहीं

रायपुर raipur news (जसेरि)। राज्यसभा में वही लोग जाते हैं जिनकी राजयोग बलवान होता है। राज्यसभा में जाना यानी अपने लोगों को उपकृत करने का एक उपक्रम है जो राजनीतिक पार्टियां अपने खास लोगों को या अपने प्रतिव्दंदी को खुद के राजनीति में आड़े आते हैं या फिर बहुत काम का आदमी होता है उसे राज्यसभा में भेजा जाता है। यह राजनीति का वह पड़ाव है जहां से आप एक बार चमक दिखा कर अस्त हो जाएँगे या फिर पार्टी की धरोहर बन कर पार्टी को अपनी महत्वपूर्ण सेवाओं से लाभ पहुंचाते रहेंगे। इसलिए राज्यसभा में बाहरी व्यक्ति को ही प्राथमिकता दी जाती है। देश में जितने में राजनीतिक दल है जो सत्ता में रहते है या विपक्ष में महत्वपूर्ण भूमिका में रहते है वो भले ही स्थानीय होते है पर उन्हें स्थानीय राज्य से राज्यसभा में न भेज कर दूसरे राज्यों से राज्यसभा मनोनीत कर भेजा जाता है। राजनीति में सत्ता धारी दल की यही सबसे फायदा बोनस के रूप में होता है कि वो अपने खास चहेते या प्रतिव्दंदी की राज्या सभा में भेज कर अपने रास्ते को निष्कंटक बना लेता है ताकि वो सुरक्षित होकर राजकाज संभाल सके। chhattisgarh

chhattisgarh news प्रदेश को फायदा मिलते नहीं दिखता

प्रदेश अधिकतर प्रदेशों में सत्ताधरी पार्टी दूसरे प्रदेश के नेताओ को राज्यसभा में भेजती है जिसका फायदा प्रदेश को मिलते नहीं दिखता। दूसरी बात यदि प्रदेश के ही नेता को ही यदि राजयसभा में भेज दें तो भी आशातीत सफलता चुनाव में दिला नहीं पाते। क्योकि कमजोर स्थानीय नेता को ही कांग्रेस राजयसभा में भेजती है जो केवल उपस्थिति दर्ज करते देखे जाते हैं बल्कि प्रदेश के विकास के लिए आवाज या मांग करते नहीं देखे जाते। छत्तीसगढ़ में राजयसभा सांसदों की सूची देखे तो अधिकतर बाहरी नेताओ को तवज्जो दी गई है जो सिर्फ नाम मात्र के लिए देखे जाते हैं। मोतीलाल वोरा को छोड़ दें तो किसी अन्य राज्यसभा सांसद ने प्रदेश के विकास में कोई सक्रीय भागीदारी नहीं निभाई है। मोहसिना किदवई , केटी तुलसी, राजीव शुक्ला, रंजीत रंजन, तो बाहरी थे जिन्होंने छत्तीसगढ़ के कोई खास मुद्दे को लेकर मुखर होते नहीं देखे गए थे वहीं छाया वर्मा और फूलोदेवी नेताम की बात करें तो इन्होने तो अपने क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी को लीड भी नहीं दिला पाए थे। इन सब वजहों से स्थानीय कार्यकर्ताओ में नाराजगी और मायूसी देखी जाती है। कार्यकर्ता हताश होते हैं और पार्टी कमजोर होती है। जब भी राजयसभा का चुनाव हुआ है प्रत्याशी बाहर से ही थोपा जाता है जिससे पार्टी कमजोर ही होती है। वर्तमान स्थिति में लोकसभा में 99 सीट जीतने वाली कांग्रेस को राज्यसभा में दो सीटों का नुकसान होना है। क्योंकि उनके दो राज्यसभा सांसद लोकसभा के लिए चुन लिए गए हैं। ऐसी स्थिति में कम ज्यादा के खेल में राजनीति पार्टियों का एक दूसरे को तोडऩे का काम तो चलते ही रहता है। इसी कड़ी में कांग्रेस का अब तेलंगाना में बीआरएस को तोडऩे का मिशन दिखाई दे रहा है। देखा जाय तो बीआरएस के कई नेता पहले ही कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। अब राज्यसभा सांसद भी पाला बदल रहे हैं। तेलंगाना में बीआरएस के राज्यसभा सांसद के इस्तीफे का फायदा कांग्रेस मिला और खरगे राजयसभा ने नेता प्रतिपक्ष बने रहे। राजयसभा में नेता प्रतिपक्ष के लिए 26 सदस्यों की जरुरत पड़ेगी और कांग्रेस के पास सदस्यों की संख्या 27 होने वाली है ऐसे में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी बचना ही है।

राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी बचाने की चुनौती

दूसरी ओर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दो राज्यसभा सांसदों की जीत के बाद पार्टी राज्यसभा में उलझ गई है। राजयसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा और के सी वेणुगोपाल की जीत के बाद उन्हें अब राजयसभा से इस्तीफा देना पड़ा, अब कांग्रेस के सामने राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी बचाने की चुनौती खड़ी हो गई थी। दरअसल, कांग्रेस के राज्यसभा सांसदों ने जिन दो सीटों से इस्तीफा दिया है, उस पर दोबारा जीत नहीं मिलेगी। इस हालात से निपटने के लिए कांग्रेस ने तेलंगाना के बीआरएस सांसद को अपने पाले में कर लिया है। बीआरएस सांसद रहे केशव राव कांग्रेस जॉइन करने के बाद अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया। अब इस सीट से जीतने वाला कांग्रेस की राज्यसभा सांसदों की संख्या 27 हो जाएगी और सदन में नेता विपक्ष का पद सुरक्षित हो जाएगा। अभी कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खडग़े राज्यसभा में नेता विपक्ष हैं।

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