वकील पर दर्ज FIR रद्द, हाईकोर्ट से मिली राहत

छग

Update: 2024-11-23 06:57 GMT

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि किसी वकील की राय से किसी व्यक्ति या संस्था को वित्तीय नुकसान होता है, तो केवल इस आधार पर उसके खिलाफ आपराधिक मामला नहीं चलाया जा सकता। न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने यह टिप्पणी वकील रामकिंकर सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। याचिका में वकील ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर और आरोप पत्र को चुनौती दी थी। मामला भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई), बेमेतरा शाखा से जुड़ा है। वकील रामकिंकर सिंह पर आरोप था कि उन्होंने एक किसान क्रेडिट कार्ड लोन के लिए गिरवी रखी जमीन का "नॉन-इंकम्ब्रेंस सर्टिफिकेट" जारी किया था। बाद में यह पता चला कि उक्त जमीन के दस्तावेज फर्जी थे और कर्ज लेने वाले व्यक्ति ने तीन लाख रुपये का ऋण लेने के बाद उसे चुकाया नहीं। अगस्त 2018 में बैंक मैनेजर ने धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज कराई, जिसमें पुलिस ने वकील को भी आरोपी बनाया।

हाईकोर्ट ने कहा कि किसी वकील को तभी आरोपी बनाया जा सकता है, जब यह साबित हो कि उसने जानबूझकर और धोखाधड़ी के इरादे से किसी साजिश में सक्रिय भागीदारी की हो। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वकील के खिलाफ आपराधिक मामला चलाने के लिए ठोस साक्ष्य होना चाहिए, केवल राय देने या रिपोर्ट तैयार करने से उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता। याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के "सीबीआई हैदराबाद बनाम के. नारायण राव (2019)" मुकदमे का हवाला देते हुए तर्क दिया कि वकील पर तभी जिम्मेदारी तय होती है, जब वह धोखाधड़ी की साजिश में शामिल हो। उन्होंने यह भी कहा कि वकील ने केवल जमीन की सर्च रिपोर्ट तैयार की थी। उसका फर्जी दस्तावेजों से कोई संबंध नहीं है।

राज्य सरकार की ओर से डिप्टी एडवोकेट जनरल ने दलील दी कि जांच में वकील के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है, क्योंकि उन्होंने फर्जी दस्तावेजों पर आधारित रिपोर्ट तैयार की। हाईकोर्ट ने उपलब्ध साक्ष्यों का परीक्षण करते हुए पाया कि वकील ने केवल अपनी भूमिका के तहत रिपोर्ट तैयार की थी और धोखाधड़ी में उनकी किसी तरह की सक्रिय भागीदारी का कोई सबूत नहीं है। अदालत ने निचली अदालत द्वारा आरोप तय करने के आदेश को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को समाप्त कर दिया।


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