बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पेशे से शिक्षक बेटे को आदेश दिया है कि वह अपने पिता के नाम के मकान को एक सप्ताह के भीतर खाली करे। हालांकि पिता को सरकारी पेंशन मिलती है इसलिए गुजारा भत्ता देने का आदेश रद्द कर दिया है। बेटे ने रायपुर कलेक्टर के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
सत्ती बाजार रायपुर के सेवालाल बघेल ने रायपुर कलेक्टर के समक्ष मेंटिनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट 2007 के तहत आवेदन लगाकर बताया था कि रायपुर में उसके मकान में बेटा और बहू रहते हैं। दोनों उसकी देखभाल नहीं करते। न उन्हें समय पर भोजन मिलता है और न ही इलाज कराया जाता है। उसके साथ गाली-गलौच भी की जाती है। मकान मेरे नाम पर है पर घुसने नहीं देते और एफआईआर दर्ज कराने की धमकी देते हैं। बेटा गरियाबंद में शिक्षक है और उसे 50 हजार रुपये सैलरी मिलती है, वह उसका देखभाल करने में सक्षम है। आवेदन में कलेक्टर से मांग की गई थी कि उसके मकान को बेटे से खाली कराया जाए और हर माह 10 हजार रुपये गुजारा भत्ता दिलाया जाए। कलेक्टर ने पिता को हर माह 5 हजार रुपये भत्ता देने और 7 दिन के भीतर मकान खाली करने का आदेश दिया था।
इस आदेश के खिलाफ बेटे नीरज बघेल ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी, जिसकी सुनवाई जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की सिंगल बेंच ने की। कोर्ट ने एक सप्ताह के भीतर मकान खाली करने के हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है। गुजारा भत्ता के संबंध में आदेश को इस आधार पर निरस्त कर दिया गया है कि पिता एफसीआई से रिटायर्ड है और उसे पेंशन मिलती है।