Chhattisgarh: मंहगा इलाज...निजी अस्पतालों में लूट का धंधा

Update: 2024-06-28 06:11 GMT

मरीजों की जान बचा कर भगवान कहलाने वाले डॉक्टर बन गए कारोबारी...

निजी अस्पतालों में हो रहा

रायपुर के निजी अस्पतालों में सबसे महंगा इलाज

छग के बाहर से आए डाक्टर हास्पीटल खोल कर आम लोगों को लूट रहे

निजी अस्पतालों में बाउंसर और दलालों की फौज

मरीजों और परिजनों से अशिष्टता, मारपीट

फीस न दे सकने पर इलाज-आपरेशन रोकने के साथ डेड बाडी भी नहीं देते

छग के आम, ग्रामीण व कम पढ़े लोगों को सही बीमारी व इलाज से भी अवगत नहीं कराते 

रायपुर Raipur News। निजी अस्पतालों Private Hospital में मरीज और उनके परिजनों से दुर्व्यवहार और मारपीट की खबरें अब आम हो गई हैं। एक ओर महंगे इलाज से जहां गरीब और मध्यम वर्ग के लोग बड़े प्राइवेट अस्पतालों में इलाज का हौसला नहीं कर पाते वहीं जो कोई अपना सबकुछ बिगाड़ कर इन अस्पतालों का रूख करते हैं उन्हें वहां के डाक्टरों-स्टाफ के मनमानियो और दुव्र्यवहार से दो-चार होना पड़ता है। हमारे देश के करीबन पचहत्तर प्रतिशत अस्पताल निजी क्षेत्र में हैं। मात्र पच्चीस प्रतिशत अस्पताल सरकार द्वारा संचालित किए जाते हैं, जिनमें भी अधिकतर अस्पतालों में डॉक्टर, नर्स एवं गुणवत्ता वाले चिकित्सीय संसाधनों का अभाव रहता है। ऐसे में सुविधा एवं संसाधनों से परिपूर्ण निजी अस्पतालों की मनमानी स्वाभाविक है। इनकी मनमानी भरे रवैये पर नकेल कसने के लिए सरकार को निजी अस्पतालों में हो रही सारी जांचों, उपलब्ध दवाइयों, सर्जरी, परामर्श तथा हो रहे हर प्रकार के इलाज के लिए दरें तय कर देनी चाहिए। निजी अस्पतालों में उपलब्ध आईसीयू बेड, वेंटिलेटर इत्यादी सुविधाओं की यथास्थिति ऑनलाइन होनी चाहिए। इन नियमों का उल्लंघन करने पर निजी अस्पताल पर कार्रवाई होनी चाहिए। इसके साथ-साथ सरकार को सरकारी अस्पतालों की संख्या, वहां पर डॉक्टरों, नर्सों एवं आधुनिक संसाधनों में वृद्धि पर ध्यान देना चाहिए। निजी अस्पतालों के डॉक्टरों की फीस भी निर्धारित की जानी चाहिए, वे कोई दूसरे ग्रह से नहीं आए हैं। हालत यह है कि आजकल कुछ डॉक्टर तो तत्काल टिकट की तरह तत्काल मरीजों को देखने की तीन गुनी फीस लेते हैं।

chhattisgarh news हमारे यहां सारे निजी अस्पतालों में सरकारी आदेशों की अनदेखी करना और मनमानी रकम वसूल करना एक आम सी बात है। शीर्ष सरकारी अफसरों और निजी अस्पतालों के मालिकों की सांठगांठ से सारे कायदे-कानून ताक पर रख दिए जाते है और जनता को भ्रमित करने के लिए नेताओं द्वारा प्राइवेट अस्पतालों की लूट खसोट का रोना शुरू कर दिया जाता है जबकि पक्ष-विपक्ष के नेताओं को अंदर का सारा खेल पता होता है। आरोप-प्रत्यारोप से असल मुद्दे को भटकाने की सस्ती राजनीति का ही परिणाम है जो आज निजी अस्पताल लूट खसोट का केंद्र है। सरकार अपनी चिकित्सा सेवाओं की बेहतरी के लिए हर बजट में करोड़ों रुपयों आवंटित करती है, फिर भी प्राइवेट अस्पतालों के आगे सरकारी अस्पताल उन्नीस ही दिखाई पड़ते हैै। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों का नहीं मिलना और जांच मशीनों का अभाव सामान्य बात है। इन सभी कारणों से मरीज निजी अस्पतालों में जाते हैं, जहां उनका आर्थिक शोषण किया जाता है। निजी अस्पताल में मरीजों को इलाज के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध रहती हैं। सरकारी अस्पतालों में इलाज व सर्व सुविधा तत्काल नहीं मिलना भी इसका बहुत बड़ा कारण है।

महंगा इलाज, मोटी फीस

निजी अस्पतालों में इलाज के नाम पर मरीजों से तगड़ी फीस वसूली जाती है और मिल-बांटकर खाने के इस खेल में कई लोग शामिल होने से इस मनमानी पर रोक नहीं लग पाती है। बेचारा मरीज मजबूर है, क्योंकि उसे लगता है कि निजी अस्पतालों में ही सही इलाज होता है। निजी अस्पताल प्राइवेट कारपोरेट कंपनियों की तरह चलाए जा रहे हैं। समाज की सेवा करने के बजाय इनका मकसद सिर्फ मुनाफा कमाना है। निजी अस्पताल लाभ को महत्व देते हैं। आम तौर पर इनके मालिकों का प्रभावशाली नेताओं से सीधा संबंध होता है। ऐसे में ये बिना किसी डर के मनमाने तरीके से अस्पताल चलाते हैं। एक ओर सरकारी अस्पतालों की खस्ताहाल व्यवस्थाओं की तस्वीरें आती रहती है, वहीं दूसरी ओर निजी अस्पतालों के तथाकथित सर्वसुविधा युक्त व्यवस्थाओं के नाम पर लूट खसोट की कहानी भी रोज उजागर होती रहती है। निजी अस्पतालों में बेहतर इलाज के नाम पर मरीजों से वसूली आम है। निजी अस्पताल सरकारी दांवपेच से बचना जानते हैं। समाज सेवा व सीएसआर के नाम पर दी जाने वाली राशि से ये अपनी छवि धूमिल होने से बचा लेते है। निजी अस्पतालों की मनमानी पर अंकुश नहीं लगने का प्रमुख कारण सरकारी कारिंदों की मिलीभगत का होना है। रक्षक ही जब भक्षक बन जाते हैं तो सभी जनहित की योजनाओं का धरातल पर उतरना मुश्किल हो जाता है । चिरंजीवी योजना बेहतर योजना है किंतु निजी अस्पतालों पर अंकुश नहीं लगाया गया तो यह भी कारगर नहीं हो पाएगी। निर्दोष जनता को इसका खमियाजा भुगतना पड़ता है।

जिस प्रकार डॉक्टर यूनियन या कर्मचारी यूनियन होती है, उसी प्रकार पेशेंट यूनियन दबाव समूह के रूप में बनाई जाए। इस यूनियन में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो। इसके अलावा निजी अस्पतालों के खिलाफ अव्यवस्था व लापरवाही मिलने पर त्वरित कार्रवाई की कोशिश की जाए। लापरवाह डॉक्टर तथा स्टाफ के लाइसेंस जब्त होने चाहिए। उनके नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिए, ताकि दूसरे भी सीख लें। निजी अस्पतालों के डॉक्टरों की फीस भी निर्धारित की जानी चाहिए, वे कोई दूसरे ग्रह से नहीं आए हैं। हालत यह है कि आजकल कुछ डॉक्टर तो तत्काल टिकट की तरह तत्काल मरीजों को देखने की तीन गुनी फीस लेते हैं। निजी अस्पतालों में गुणवत्तापूर्ण भोजन के नाम पर मरीजों को बेवक़ूफ़ बनाया जाता है। जूस के नाम पर प्रिजर्वेटिव्स जूस और नाश्ते के नाम पर फास्ट फूड देते हैं। प्रशिक्षित स्टाफ भी नहीं रहता इन अस्पतालों में, ना ही उपकरणों की सुध लेने वाला कोई है। सब कुछ भगवान भरोसे चल रहा है। इन अस्पतालों में शिकायत पेटिका होनी चाहिए। साथ ही इनको आरटीआइ के दायरे में लाया जाना चाहिए। निजी अस्पतालों के लिए लोकायुक्त जैसे पद सृजित किए जा सकते हैं, जो शिकायत मिलने पर कार्रवाई करें। सरकारों को निजी अस्पतालों को अपने अधीन कर लेना चाहिए। सरकार को एक विधेयक यह भी लाना चाहिए कि किसी भी सरकारी या निजी अस्पताल में मरीज यदि मर जाता है तो उसका सारा मेडिकल बिल माफ कर दिया जाएगा। इससे निजी अस्पताल इलाज में लापरवाही नहीं करेेंगे।

सरकारी अस्पतालों में भी लापरवाही, गलत पीएम रिपोर्ट देने का आरोप

बिलासपुर जिला अस्पताल की डॉक्टर पूजा चौरसिया की मौत खुदकुशी नहीं, बल्कि हत्या थी। पूजा की मां द्वारा निजी फोरेंसिक एक्सपर्ट से कराई गई जांच के बाद पुलिस को मिली एफएसएल रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। दरअसल, डॉ. पूजा की मौत 10 मार्च को हुई थी। पूजा की मां रीता चौरसिया उस समय अमेरिका में थीं। इसकी सूचना मिलने पर वह देश लौटीं। उनके आने के बाद पूजा का पोस्टमार्टम हुआ। पूजा की मां रीता ने कहा, ‘जब मैं जिला अस्पताल पहुंची तब देखा कि पूजा के सिर में खून लगा हुआ था। उसके कान से खून बहकर सिर तक पहुंचा था। उन्होंनें पूजा की पीठ पर चोट के बड़े-बड़े निशान भी मिले। इसे देख कर हत्या का शक हुआ। दामाद अनिकेत पर पहले से शक था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मामले में मृतका के पति डॉ. अनिकेत कौशिक की भूमिका संदिग्ध है। अनिकेत और जिम ट्रेनर सूरज ही पूजा को कार से महादेव हॉस्पिटल लेकर गए थे। पास का हॉस्पिटल छोड़ डेढ़ किमी दूर पूजा को ले जाना भी सवाल खड़े करता है। डॉ. पूजा को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में जिम ट्रेनर सूरज गिरफ्तार है। एंटेमॉर्टम रिपोर्ट में सामने आया कि शरीर पर किसी भारी वस्तु से प्रहार किया गया था, जबकि पोस्टमॉर्टम में दम घुटने से मौत बताई गई। पीएम करने वाले डॉक्टर और अस्पताल प्रशासन पर भी शक है। 

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