जीवन में आप जैसा करोगे वैसा भोगो

Update: 2024-08-08 03:52 GMT

रायपुर raipur news । विवेकानंद नगर स्थित श्री संभवनाथ जैन मंदिर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचन माला में जीवन में विशेषज्ञता हासिल करने का व्याख्यान जारी है। इसी कड़ी में बुधवार को रायपुर के कुलदीपक तपस्वी रत्न मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी म.सा. ने कहा कि शुभ निमित्त के आलंबन से जीवन में शुभ भावों की वृद्धि होती है।जीवन में अशुभ भाव के निमित्त बहुत मिलते हैं,अशुभ भाव में ले जाने के लिए बहुत लोग प्रेरित करते हैं लेकिन जो विशेषज्ञ होता है वो शुभ निमित्त की पहचान करके अपने भावों में वृद्धि कर अपनी आत्मा की शुद्धि के लिए निरंतर प्रयास करता है। raipur

 chhattisgarh news मुनिश्री ने कहा कि जैसे आपको चातुर्मास का शुभ निमित्त मिला, गुरु भगवंतो का योग मिला,प्रेरणा मिली और आपने सिद्धि तप स्वीकार किया। इससे आप अपनी आत्मा को शुद्ध करने तपस्या कर रहे हैं। ऐसे ही शुभ निमित्तों से आप में शुभ भावों की उत्पत्ति होती है, इसीलिए इन शुभ भावों का हमेशा सेवन करना चाहिए। मुनिश्री ने कहा कि शुभ निमित्त मिलने से शुभ भाव बढ़ते हैं लेकिन विशेषज्ञता तभी है जब आपको शुभ भावों को ग्रहण करना आता हो। शुभ क्रिया करते-करते शुभ भाव आते हैं और अशुभ क्रिया करते-करते अशुभ भाव आते हैं। शुभ भाव को लाने के लिए अपने जीवन में शुभ निमितों को बढ़ाना चाहिए। क्रिया करते करते ही भाव वृद्धि होगी। इनके लिए शुभ आलंबन को पकड़ कर रखना होगा। हम आपको प्रेरित कर सकते हैं लेकिन शुभ निमित्तों को तो आपको ही पकड़ कर रखना होगा। सिद्धि तप का पारणा करने के बाद भी जीवन में नित्य तप अवश्य होते रहना चाहिए।

जीवन में आप जैसा करोगे वैसा भोगोगे : मुनिश्री तीर्थप्रेम विजयजी

मुनिश्री तीर्थप्रेम विजयजी म.सा. ने आज की प्रवचन माला में कहा कि जीवन में यदि आप ऐसा कार्य कर रहे हैं जिससे पाप का बंध होता है तो उस पाप के परिणाम को भी आप ही भोगोगे। आप परिवार के लिए ना जाने किस पाप से पैसा ला रहे हो लेकिन आपके पाप कर्म को भोगना आप ही को पड़ेगा। आपकी पीड़ा को बांटने,आपके पाप को बांटने में आपके परिवार का कोई सहभागी नहीं बनेगा। जीवन में हम जो करते हैं उसे हमें ही भोगना पड़ता है। जीवन में जब पीड़ा आती है तो कोई हिस्सेदार नहीं होता लेकिन जीवन में जब पैसा और सुख और सुख के साधन आते हैं तो सभी हिस्सेदार बनते हैं। आपने अपने जीवन में बहुत कमाया,बहुत कमाया लेकिन उसका सदुपयोग करना चाहिए।

मुनिश्री ने कहा कि धन की तीन गति होती है। पहला दान,दूसरा भोग और तीसरा नाश, इनमें श्रेष्ठ उपयोग दान है। दान करने से पुण्य की प्राप्ति भी होती है और धर्म लाभ भी होता है। धन का भोग तो सभी करते हैं और जो दान भी नहीं करता और भोग भी नहीं करता तो उस धन का नाश भी हो जाता है। रुपए पड़े रहेंगे तो क्या उपयोग,तिजोरी में पड़े पड़े कीड़े पड़ जाएंगे तो धन खराब हो जाएगा। आज रायपुर में 100 से अधिक भाग्यशाली पुण्यशाली लोग सिद्धि तप कर रहे हैं। भले ही आपने सिद्धि तप नहीं किया लेकिन जो कर रहे हैं उनके लिए आपके मन में भाव आना चाहिए कि उनका पारणा आप ही कराकर धर्मलाभ लेंगे।


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