दुर्ग : उजाड़ बंजर जमीन में ड्रिप से मल्चिंग पद्धति का उपयोग कर उगा रहीं कल्याणी प्रजाति के बैंगन

Update: 2021-03-19 14:37 GMT

रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरवा, घुरूवा, बाड़ी के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में बाड़ी जैसे परपंरागत पद्धति को लोग तो अपना ही रहे हैं, इसमें आधुनिक समय के अनुरूप नये प्रयोग भी कर रहे हैं। पाटन ब्लाक के ग्राम फेकारी में शक्ति स्व-सहायता समूह ने योजना के अंतर्गत मिली बाड़ी में नया प्रयोग किया है। उन्होंने बाड़ी के दो एकड़ जमीन में कल्याणी बैंगन की फसल लगाई है। इसके लिए ड्रिप आदि की सुविधा विभाग ने उपलब्ध कराई। समूह ने मल्चिंग की पद्धति का प्रयोग किया है। समूह की पदाधिकारी श्रीमती डामिन साहू ने बताया कि हम लोगों ने मल्चिंग पद्धति के बारे में सुना था। इससे पौधे के आसपास खरपतवार नहीं लगते, इससे पौधे को पर्याप्त पोषण प्राप्त होता है। श्रीमती साहू ने बताया कि ड्रिप पद्धति से काफी कम पानी लगता है। अभी केवल पाँच घंटे ही पानी देना पड़ता है, जबकि पास ही बाड़ी में भाजियों की फसल लगाई है वहाँ काफी समय देना पड़ता है। उप संचालक उद्यानिकी श्री सुरेश ठाकुर ने बताया कि कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे के निर्देश पर डीएमएफ के माध्यम से उद्यानिकी गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है और स्व-सहायता समूहों को बाड़ी विकास के लिए विशेष रूप से प्रेरित किया जा रहा है। फेकारी में बाड़ी में महिलाओं ने बैंगन के साथ ही खीरा भी लगाया है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन से बैंगन क्षेत्र विस्तार के अंतर्गत 37 हजार रुपए की अनुदान राशि दी गई है। मल्चिंग के लए 32 हजार रुपए की मदद दी गई है। ड्रिप इरीगेशन के लिए डीएमएफ के माध्यम से सहायता दी गई है। इसका उपयोग कर महिलाएं बड़ी मेहनत से कुशलता से अच्छा काम कर रही हैं जिससे अन्य समूहों को भी प्रेरणा मिलेगी।

दो एकड़ में लगाये हैं सात हजार पौधे- श्रीमती साहू ने बताया कि दो एकड़ जमीन में कल्याणी प्रजाति के बैंगन के 7 हजार पौधे लगाये हैं। इनमें एक साल में अनुमानतः एक पौधे में अनुमानतः पाँच किलोग्राम बैंगन की पैदावार होगी। मंडी में रेट पाँच रुपए प्रति किलोग्राम मान लें तो लगभग पौने दो लाख रुपए का बैंगन बिक जाएगा। इसके साथ ही बिल्कुल बगल से भाजी भी समूह की महिलाओं ने लगाई है। बाड़ी के बिल्कुल बगल से तालाब खुदवाया गया है जहाँ पर मछली पालन किया जाएगा।

सुबह मनरेगा में काम करती हैं दोपहर को अपनी बाड़ी में- समूह की महिलाएं सुबह मनरेगा में काम करने जाती हैं और दोपहर को अपनी बाड़ी में जुट जाती हैं। समूह की महिलाओं ने बताया कि वे यह नवाचार कर काफी खुश हैं। हम अपनी बाड़ी में ड्रिप लगा रही हैं मल्चिंग कर रही हैं और आधुनिक तकनीक सीख रही हैं। इससे हमारी आय तेजी से बढ़ेगी।

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