उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में किसानों के हित में अनेक योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में तीर्थ पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सरकार राम वन गमन पर्यटन परिपथ परियोजना के अंतर्गत उन स्थानों का विकास कर रही है जहां वनवास काल के दौरान श्री राम की स्मृतियां जुड़ी हैं।
छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक उत्पादन देने वाली धान की प्रजाति स्वर्णा जो कि आंध्र प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय द्वारा निकाली गई, उसे और छत्तीसगढ़ की पुरानी धान प्रजाति जीराशंकर दोनों प्रजातियों की प्लांट ब्रीडिंग के बाद इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने छत्तीसगढ़ देवभोग नाम की प्रजाति विकसित की। जो पतला चांवल की सुगंधित और मुलायम चावलों की प्रजाति में गिनी जाती है। इसका धान 135-140 दिन में पकता है और उत्पादन 45 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर आता है। कृषि मंत्रालय भारत सरकार की बीज विकास समिति ने वर्ष 2019 में छत्तीसगढ़ देवभोग को भारत के राज्य पत्र में स्थान दिया और इसे छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के लिए उत्पादन अनुशंसा दी। अब इसी चांवल का भोग अयोध्या में छत्तीसगढ़ के भांचा रामलला को चढ़ाया जाएगा।
गौरतलब है कि प्रदेश में बड़ी मात्रा में किसान छत्तीसगढ़ देवभोग धान की बुवाई कर रहे हैं। रायपुर और इससे जुड़े दुर्ग जिले में पाटन क्षेत्र, धमतरी जिले में देवभोग का उत्पादन जारी है, इन क्षेत्रों के किसानों से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कंपनियां जुड़ रही हैं। पहले इस किस्म के धान का पौधा 130-150 सेंटीमीटर तक होता था, लेकिन विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के साथ संयुक्त रूप से परियोजना चलायी, जिसमें परमाणु विकिरण के कारण पौधे की लंबाई 110 सेंटीमीटर तक करने के साथ ही उत्पादकता बढ़ाने में भी सफलता पाई।
उल्लेखनीय है कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा अब तक 200 से भी अधिक वेरायटी निकाली जा चुकी है। जिसमें 1987 से अब तक 40 वेरायटी के धान शामिल हैं। इनमें महामाया, पूर्णिमा, दंतेश्वरी, बम्लेश्वरी, दुबराज, दुबराज सेलेक्शन-1, विष्णुभोग सेलेक्शन-1, बादशाह भोग, तरुण भोग इत्यादि प्रजाति के धान शामिल हैं।